चिन्तामणि घोष

भारतीय प्रिन्टर (1854-1928)

चिन्तामणि घोष (१८५४ - १९२८) भारत के महान प्रिन्टर एवं इण्डियन प्रेस, प्रयाग के स्वामी थे। उन्होने सन् १८८४ में इस प्रेस की स्थापना की थी जिससे हिन्दी साहित्य की हजारों पुस्तकें प्रिन्ट हुईं। चिंतामणि घोष ने प्रथम सर्वश्रेष्ठ मासिक 'सरस्वती' द्वारा और हिंदी के अनेक ग्रंथों को छापकर हिंदी साहित्य की जितनी सेवा की है, उतनी सेवा हिंदी भाषा भाषी किसी प्रकाशक ने शायद ही की होगी।

चिंतामणि घोष ने 1884 में इंडियन प्रेस की स्थापना की और 1899 में नागरी प्रचारिणी सभा से प्रस्ताव किया कि सभा एक सचित्र मासिक पत्रिका के संपादन का भार ले जिसे वे प्रकाशित करेंगे। नागरी प्रचारिणी सभा ने इसका अनुमोदन तो कर दिया किंतु संपादन का भार लेने में अपनी असमर्थता जताई। अंत में संपादन का भार एक समिति को सौंपने पर सहमति बनी। इस समिति में पाँच लोग थे। वे थे बाबू श्याम सुंदर दास, बाबू राधाकृष्ण दास, बाबू कार्तिक प्रसाद , बाबू जगन्नाथ दास और किशोरीलाल गोस्वामी। और इस तरह 'सरस्वती' की योजना को अंतिम रूप मिला।

जनवरी 1900 में इसका प्रकाशन प्रारंभ हुआ। प्रवेशांक के मुखपृष्ठ पर पाँच चित्र थे-सबसे ऊपर वीणावादिनी सरस्वती का चित्र था। ऊपर बाईं ओर सूरदास और दाईं ओर तुलसीदास तथा नीचे बाईं ओर राजा शिव प्रसाद सितारेहिंद और बाबू हरिश्चंद्र के चित्र थे। पत्रिका के नाम के नीचे लिखा रहता था-काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अनुमोदन से प्रतिष्ठित। पत्रिका के प्रकाशक चिंतामणि बाबू ने पत्रिका का नीति वक्तव्य इस तरह घोषित किया था-

परम कारुणिक सर्व शक्तिमान जगदीश्वर की असीम अनुकम्पा ही से ऐसा अनुपम अवसर आकर प्राप्त हुआ है कि आज हम लोग हिंदी भाषा के रसिक जनों की सेवा में नए उत्साह से उत्साहित हो एक नवीन उपहार लेकर उपस्थित हुए हैं जिसका नाम सरस्वती है। इसके नवजीवन धारण करने का केवल यही मुख्य उद्देश्य है कि हिंदी रसिकों के मनोरंजन के साथ ही भाषा के सरस्वती भंडार की अंगपुष्टि, वृद्धि और यथार्थ पूर्ति हो तथा भाषा सुलेखकों की ललित लेखनी उत्साहित और उत्तेजित होकर विविध भावभरित ग्रंथराजि को प्रसव करे।[1]
  1. भारतीय पत्रकारिताः नींव के पत्थर, डा. मंगला अनुजा, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, संस्करण-1996, पृष्ठ-215-216

बाहरी कड़ियाँ

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