लौहचुम्बकीय पदार्थों में चुम्बकीय शैथिल्य (मैग्नेटिक हिस्टेरिसिस) बहुत जानी-पहचानी परिघटना है। जब लौहचुम्बकीय पदार्थ के ऊपर कोई वाह्य चुम्बकीय क्षेत्र लगाया जाता है तो इसके आणविक द्विध्रुव स्वयं को उस वाह्य क्षेत्र की दिशा में घुमा लेते हैं। किन्तु उस क्षेत्र को शून्य कर देने के बाद भी इन परमाणविक द्विध्रुओं का कुछ भाग उसी दिशा में बना रहता है। इसी कारण लोहे को चुम्बकित करने के बाद उसका चुम्बकत्व अनन्त काल तक बना रह सकता है। और यदि इसे विचुम्बकित करना हो तो इसके लिये उल्टी दिशा में वाह्य चुम्बकीय क्षेत्र लगाना पड़ता है। चुम्बकीय शैथिल्य एक प्रकार की स्मृति के सदृश है जिसका उपयोग कम्प्यूटर के आरम्भिक दिनों में स्मृति (मेमोरी) के रूप में किया जाता था।

CRGO के लिये शैथिल्य पाश (लूप)
चुम्बकन का सैद्धान्तिक मॉडल (Stoner–Wohlfarth model) चुम्बकीय क्षेत्र h के साथ चुम्बकन m के परिवर्तन का ग्राफ। मूलबिन्दु से आरम्भ करके वक्र का ऊपर जा रहा भाग 'आरम्भिक चुम्बकन वक्र' (initial magnetization curve) है। स्ंतृपि (सैचुरेशन) के बाद यह वक्र नीचे आने लगता है और फिर ऊपर उठता है। इस पाश (लूप) को 'मुख्य लूप' कहते हैं। अक्षों द्वारा काटे गए भाग hc तथा mrs को क्रमशः निग्राहिता (coercivity) और and चुम्बकत्वावशेष (remanence) कहते हैं।

शैथिल्य के कारण ऊर्जा ह्रास

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ट्रान्सफॉर्मर, मोटर आदि युक्तियों में जो चुम्बकीय क्रोड उपयोग में लाया जाता है उसके बी-एच वैशिष्ट्य (B-H characteristics) शैथिल्य-युक्त होता है। उसके कारण उसके क्रोड में ऊर्जा की हानि होती है जिसे शैथिल्य ह्रास (हिस्टेरिसिस लॉस) कहते हैं। इसे कम करने के लिए ऐसे क्रोड का उपयोग किया जाता है जिसके बी-एच लूप का क्षेत्रफल कम से कम हो; क्योंकि बी-एच लूप का क्षेत्रफल, प्रत्येक ए.सी. चक्र में, क्रोड के ईकाई द्रव्यमान में होने वाली ऊर्जा हानि को दर्शाता है।

इन्हें भी देखें

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