हिन्दू धर्म के महाकाव्य महाभारत में जयद्रथ सिंधु प्रदेश के राजा थे। इनका विवाह कौरवों की एकमात्र बहन दुःशला से हुआ था। जयद्रथ सिंधु नरेश वृद्धक्षत्र के पुत्र थे। वृद्धक्षत्र के यहाँ जयद्रथ का जन्म काफी समय बाद हुआ था और उन्हें साथ ही यह वरदान प्राप्त हुआ कि जयद्रथ का वध कोई सामान्य व्यक्ति नहीं कर पायेगा। उसने साथ ही यह वरदान भी प्राप्त किया कि जो भी जयद्रथ को मारकर जयद्रथ का सिर ज़मीन पर गिरायेगा, उसके सिर के हज़ारों टुकड़े हो जायेंगे।

जयद्रथ द्रोपदी का अपहरण करते हुए

जयद्रथ का वध अर्जुन ने किया था।

जब द्रोण ने चक्रव्यूह का निर्माण किया था तब जयद्रथ ने चक्रव्यूह के अंदर अभिमन्यु के वध मैं अहम भूमिका निभाया था । अर्जुन, श्री कृष्ण के अतिरिक्त केबल अभिमन्यु को ही चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना ज्ञात था परंतु उस से बाहर निकलना नही तो पांडव सेना से यह निचाया किया गया को जिस द्वार को अभिमन्यु खोलेगा बाकी के पांडव उसे बंद नही होने देंगे पर जयद्रथ ने पांडवों को द्वार पर ही रोक लिया ऐसा सिर्फ इसी कारण संभंब हुआ क्योंकि उसे महादेव से ये वरदान प्राप्त था की एक दिन के लिए अर्जुन के अतिरिक्त उसे कोई पांडव परास्त नहीं कर पाएगा । कोरबो के अभिमन्यु की हत्या करना जब अर्जुन को ज्ञात हुआ तब वो अत्यधिक क्रोधित हो उठा और उसने यह प्रतिज्ञा किया की अगर वो कल सूर्यास्त के पश्चात जयद्रथ का वध ना कर सका तो वो अग्नि समाधि ले लेगा ।

जयद्रथ के सुरक्षा केलिए कौरव सेनापति द्रोण ने अत्यंत कठिन व्यूह का निर्माण किया जिसके कारण अर्जुन का जयद्रथ का वध करना कठिन हो पड़ा तब श्री कृष्ण ने अपनी माया से एक नकली सूर्यास्त करवा जिसे जयद्रथ भ्रमित हो गया और ऊषाहा के कारण व्यूह से बाहर आ गया । तब अर्जुन ने बाण चला कर जयद्रथ का शिर धड़ से अलग कर दिया और लगातार बाण चलाकर उसके शिर को उसके पिता के गोद में फेक दिया जिसे वरदान के कारण उसके पिता के शिर के हजारों टुकड़े हो गए ।

उसका वध अर्जुन ने किए।