जल्पेश मंदिर पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में मैनागुड़ी से 7-8 किमी दूर जरदा नदी के तट पर स्थित है। [1] भ्रामरी शक्तिपीठ के भैरव जल्पेश हैं। मंदिर का निर्माण सुंदर बंगाली हिंदू स्थापत्य शैली में किया गया था।

जल्पेश मंदिर
भगवान शिव का जल्पेश मंदिर
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताशिव
त्यौहारमहाशिवरात्रि
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिमैनागुड़ी
ज़िलाजलपाईगुड़ी
राज्यपश्चिम बंगाल
देशभारत
वास्तु विवरण
निर्माताबिश्व सिंह
स्थापित1524 ई.

1563 (पुनर्निर्माण)
1653 (राजा प्राण नारायण द्वारा पुनर्निर्मित)

30 जनवरी 1899 (रानी जगदेश्वरी देवी द्वारा पुनः स्थापना)

कोचबेहार के महाराजा नर नारायण के पिता बिश्व सिंह ने 1524 में जल्पेश मंदिर की स्थापना की थी। बाद में उन्होंने 1563 में मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। फ़िर 100 साल बाद राजा प्राण नारायण ने 1663 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। [2] [3]

कोचबेहार के राजा लक्ष्मी नारायण के शासनकाल के दौरान, महिदेव रायकत ने कोच राजवंश की आज्ञा मानने से इनकार करते हुए 1621 ई. में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। तब से यह मंदिर बैकुंठपुर के रायकतों की देखरेख में था। इसका जीर्णोद्धार 30 जनवरी 1899 को राजा जगेंद्र देव रायकत की पत्नी रानी जगदेश्वरी देवी द्वारा किया गया था। [3] [4]

26 अप्रैल 2015 को सुबह 11:41 बजे (IST) जलपाईगुड़ी ज़िले में भूकंप आया। भूकंप की अवधि 58 सेकेंड थी। शुरुआत में भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7.5 थी, लेकिन अंत में इसकी तीव्रता 7.8 रही। उत्तर वङ्ग विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञानी सुबीर सरकार ने बताया कि जलपाईगुड़ी में आए भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.9 थी। भूकंप के कारण प्राचीन जल्पेश मंदिर की दीवारों और शिखर में कई दरारें आ गईं। [5]

पीठासीन देवता

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मंदिर में पूजे जाने वाले देवता जल्पेश के रूप में भैरव हैं। मंदिर के अंदर एक शिवलिंग है जिसे 'अनादि' कहा जाता है। यहां का शिवलिंग जल-लिंग है। यानि कि यहां पर एक भूमिगत छिद्र में शिवलिंग विराजमान है। [6]

त्यौहार और मेले

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इस मंदिर में मनाया जाने वाला मुख्य त्योहार महाशिवरात्रि है। तीर्थयात्री भगवान शिव की पूजा करने के लिए जुलाई-अगस्त और फरवरी-मार्च में आते हैं। श्रावण माह के दौरान मंदिर में श्रावणी मेला आयोजित किया जाता है। १७वीं शताब्दी में मंदिर के निर्माण के बाद से ही यहां शिवरात्रि के अवसर पर एक प्रसिद्ध मेला शुरू हुआ। यह मेला पश्चिम बंगाल के सबसे पुराने मेलों में से एक है। मेले में हज़ारों की संख्या में लोग जुटते हैं। जब डुआर्स भूटान का हिस्सा थे, तो पहाड़ियों और मैदानों में व्यापार मैनागुड़ी के आसपास केंद्रित था। फलस्वरूप इस मेले का व्यापारिक महत्व बहुत बढ़ गया। भारत की आज़ादी से पहले इन मेलों में हाथी बेचे जाते थे। मेले के लिए नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और आसपास के अन्य राज्यों से लोग यहां आते हैं। [7] [8]

  1. "জল্পেশ মন্দির". জল্পেশ মন্দির (Bengali में). अभिगमन तिथि 2019-04-11.
  2. "Cooch Behar Government: Royal History : Book of Facts and Events". www.coochbehar.gov.in (अंग्रेज़ी में). मूल से 23 October 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 April 2023.
  3. "বহু প্রাচীন মন্দির, যার সঙ্গে জড়িয়ে আছে রাজকাহিনিও". bengali.indianexpress.com (Bengali में). मूल से 5 April 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 April 2023. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "bengali-indianexpress1" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  4. "শিব চতুর্দশী উপলক্ষ্যে জমজমাট শৈবতীর্থ জল্পেশ". kolkata24x7.com (Bengali में). मूल से 7 April 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 April 2023.
  5. "ফের ভূকম্পে ফাটল জল্পেশের মন্দিরে". Anandabazar (Bengali में). मूल से 5 April 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 April 2023.
  6. "Jalpesh Mandir (জল্পেশ মন্দির) – Mahashivaratri is the key festival celebrated in this temple". dooars.info (अंग्रेज़ी में). मूल से 5 April 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 April 2023.
  7. "পর্যটক টানতে ঢেলে সাজা হচ্ছে জল্পেশ, জটিলেশ্বর". Anandabazar (Bengali में). मूल से 7 April 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 April 2023.
  8. "জল্পেশ জমজমাট". Anandabazar (अंग्रेज़ी में). मूल से 5 April 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 April 2023.