पारसी धर्म

पारसी द्वारा स्थापित ईरानी धर्म
(ज़रथुष्ट्री धर्म से अनुप्रेषित)

पारसी पंथ अथवा ज़ोरोएस्ट्रिनिज़म फ़ारस का राजपंथ हुआ करता था। यह ज़न्द अवेस्ता नाम के ग्रन्थ पर आधारित है। इसके संस्थापक ज़रथुष्ट्र हैं,[1] इसलिये इसे ज़रथुष्ट्री पंथ भी कहते हैं। जोरोएस्ट्रिनिइजम दुनिया के सबसे पुराने एकेश्वरवादी धर्मों में से एक है।[2] दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व की संभावित जड़ों के साथ, पारसी धर्म 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में लिखित इतिहास में प्रवेश करता है।[3] यह लगभग ६०० ईसा पूर्व से ६५० सीई तक एक सहस्राब्दी से अधिक के लिए प्राचीन ईरानी साम्राज्यों के राज्य धर्म के रूप में कार्य करता था, लेकिन ६३३-६५४ के फारस की मुस्लिम विजय और पारसी लोगों के बाद के उत्पीड़न के बाद ७ वीं शताब्दी सीई से इसमें गिरावट आई।[4] हाल के अनुमानों में पारसी की वर्तमान संख्या लगभग ११०,०००–१२०,००० है,[5][6] जिसमें से अधिकांश भारत, ईरान और उत्तरी अमेरिका में रहते हैं; माना जाता है कि उनकी संख्या घट रही है।

पारसी पंथ
पारसी चिह्न
कुल जनसंख्या

c. 70,000

खास जनसंख्या के क्षेत्र
c. 70% भारत में,
5% पाकिस्तान में,
तथा श्रीलंका में,
25% अन्य स्थानों पर,
मुख्यतः यूनाइटेड किंगडम में।
Languages
गुजराती,अंग्रेजी,मराठी
Religion
ज़रथुष्ट्र पंथ

ज़न्द अवेस्ता के अब कुछ ही अंश मिलते हैं। इसकी भाषा अवेस्तन भाषा है।

पारसी पंथ की शिक्षा हैः हुमत, हुख्त, हुवर्श्त जो संस्कृत में सुमत, सूक्त, सुवर्तन अथवा सुबुद्धि, सुभाष, सुव्यवहार हुआ।

अहुरा मज़्दा

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पारसी एक ईश्वर को मानते हैं, जिसे अहुरा मज़्दा (होरमज़्द) कहते हैं।

अग्नि को ईश्वरपुत्र समान और अत्यन्त पवित्र माना जाता है। उसी के माध्यम से अहुरा मज़्दा की पूजा होती है। पारसी मंदिरों को आतिश बेहराम कहा जाता है।

स्पेन्ता अमेशा

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स्पेन्ता अमेशा इनके सात (अथवा छः) .फ़रिश्ते हैं। वेरिगोद्

पारसी विश्वास के मुताबिक अहुरा मज़्दा का दुश्मन दुष्ट अंगिरा मैन्यु (आहरीमान) है।

ऐतिहासिक रूप से पारसी पंथ की शुरुआत 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुई। एक ज़माने में पारसी धर्म (जोरोएस्ट्रिनिइजम) ईरान का राजपंथ हुआ करता था। उन्होंने भारत में शरण ली। तब से आज तक पारसियों ने भारत के उदय में बहुत बड़ा योगदान दिया है। ईरान पारसी देश हुआ करता था। फारसियों के इस्लाम ग्रहण करने के उपरांत समस्त ईरान को मुस्लिम देश बना दिया गया।

पारसी त्यौहार

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पंथ के बारे में

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प्राचीन फारस (आज का ईरान) जब पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला एक विशाल साम्राज्य था, तब पैगंबर जरथुस्त्र ने एक ईश्वरवाद का संदेश देते हुए पारसी पंथ की नींव रखी। Atd जरथुस्त्र व उनके अनुयायियों के बारे में विस्तृत इतिहास ज्ञात नहीं है। कारण यह कि पहले सिकंदर की फौजों ने तथा बाद में अरब के आक्रमणकारियों ने प्राचीन फारस का लगभग सारा मज़हबी एवं सांस्कृतिक साहित्य नष्ट कर डाला था। आज हम इस इतिहास के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, वह ईरान के पहाड़ों में उत्कीर्ण शिला लेखों तथा वाचिक परंपरा की बदौलत है।

सातवीं सदी ईस्वी तक आते-आते फारसी साम्राज्य अपना पुरातन वैभव तथा शक्ति गँवा चुका था। जब अरबों ने इस पर निर्णायक विजय प्राप्त कर ली तो अपने पंथ की रक्षा हेतु अनेक जरथोस्ती धर्मावलंबी समुद्र के रास्ते भाग निकले और उन्होंने भारत के पश्चिमी तट पर शरण ली।

यहाँ वे 'पारसी' (फारसी का अपभ्रंश) कहलाए। आज विश्वभर में मात्र सवा से डेढ़ लाख के बीच जरथोस्ती हैं। इनमें से आधे से अधिक भारत में हैं।

फारस के शहंशाह विश्तास्प के शासनकाल में पैंगबर जरथुस्त्र ने दूर-दूर तक भ्रमण कर अपना संदेश दिया। उनके अनुसार ईश्वर एक ही है (उस समय फारस में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी)। इस ईश्वर को जरथुस्त्र ने 'अहुरा मजदा' कहा अर्थात 'महान जीवन दाता'।

अहुरा मजदा कोई व्यक्ति नहीं है, बल्कि सत्व है, शक्ति है, ऊर्जा है। जरथुस्त्र के दर्शनानुसार विश्व में दो आद्य आत्माओं के बीच निरंतर संघर्ष जारी है।

इनमें एक है अहुरा मजदा की आत्मा, 'स्पेंता मैन्यू'। दूसरी है दुष्ट आत्मा 'अंघरा मैन्यू'। इस दुष्ट आत्मा के नाश हेतु ही अहुरा मजदा ने अपनी सात कृतियों यथा आकाश, जल, पृथ्वी, वनस्पति, पशु, मानव एवं अग्नि से इस भौतिक विश्व का सृजन किया।

वे जानते थे कि अपनी विध्वंसकारी प्रकृति तथा अज्ञान के चलते अंघरा मैन्यू इस विश्व पर हमला करेगा और इसमें अव्यवस्था, असत्य, दुःख, क्रूरता, रुग्णता एवं मृत्यु का प्रवेश करा देगा।

मनुष्य, जो कि अहुरा मजदा की सर्वश्रेष्ठ कृति है, की इस संघर्ष में केन्द्रीय भूमिका है। उसे स्वेच्छा से इस संघर्ष में बुरी आत्मा से लोहा लेना है। इस युद्ध में उसके अस्त्र होंगे अच्छाई, सत्य, शक्ति, भक्ति, आदर्श एवं अमरत्व। इन सिद्धांतों पर अमल कर मानव अंततः विश्व की तमाम बुराई को समाप्त कर देगा।

कुछ अधिक वैज्ञानिक कसौटी पर पंथ को परखने वाले 'स्पेंता मैन्यू' की व्याख्या अलग तरह से करते हैं। इसके अनुसार 'स्पेंता मैन्यू' कोई आत्मा नहीं, बल्कि संवृद्धिशील, प्रगतिशील मन अथवा मानसिकता है।

अर्थात यह अहुरा मजदा का एक गुण है, वह गुण जो ब्रह्माण्ड का निर्माण एवं संवर्द्धन करता है। ईश्वर ने स्पेंता मैन्यू का सृजन इसीलिए किया था कि एक आनंददायक विश्व का निर्माण किया जा सके। प्रगतिशील मानसिकता ही पृथ्वी पर मनुष्यों को दो वर्गों में बाँटती है। सदाचारी, जो विश्व का संवर्द्धन करते हैं तथा दुराचारी, जो इसकी प्रगति को रोकते हैं। जरथुस्त्र चाहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर तुल्य बने, जीवनदायी ऊर्जा को अपनाए तथा निर्माण, संवर्द्धन एवं प्रगति का वाहक बने।

पैगंबर जरथुस्त्र के उपदेशों के अनुसार विश्व एक नैतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था को स्वयं को कायम ही नहीं रखना है, बल्कि अपना विकास तथा संवर्द्धन भी करना है। जरथोस्ती पंथ में जड़ता की अनुमति नहीं है।

विकास की प्रक्रिया में बुरी ताकतें बाधा पहुँचाती हैं, परंतु मनुष्य को इससे विचलित नहीं होना है। उसे सदाचार के पथ कर कायम रहते हुए सदा विकास की दिशा में बढ़ते रहना है।

जीवन के प्रत्येक क्षण का एक निश्चित उद्देश्य है। यह कोई अनायास शुरू होकर अनायास ही समाप्त हो जाने वाली चीज नहीं है। सब कुछ ईश्वर की योजना के अनुसार होता है।

सर्वोच्च अच्छाई ही हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। मनुष्य को अच्छाई से, अच्छाई द्वारा, अच्छाई के लिए जीना है। 'हुमत' (सद्विचार), 'हुउक्त' (सद्वाणी) तथा 'हुवर्षत' (सद्कर्म) जरथोस्ती जीवन पद्धति के आधार स्तंभ हैं।

जरथोस्ती पंथ में मठवाद, ब्रह्मचर्य, व्रत-उपवास, आत्म दमन आदि की मनाही है। ऐसा माना गया है कि इनसे मनुष्य कमजोर होता है और बुराई से लड़ने की उसकी ताकत कम हो जाती है।

निराशावाद व अवसाद को तो पाप का दर्जा दिया गया है। जरथुस्त्र चाहते हैं कि मानव इस विश्व का पूरा आनंद उठाए, खुश रहे। वह जो भी करे, बस एक बात का ख्याल अवश्य रखे और वह यह कि सदाचार के मार्ग से कभी विचलित न हो।

भौतिक सुख-सुविधाओं से संपन्न जीवन की मनाही नहीं है, लेकिन यह भी कहा गया है कि समाज से तुम जितना लेते हो, उससे अधिक उसे दो। किसी का हक मारकर या शोषण करके कुछ पाना दुराचार है। जो हमसे कम सम्पन्न हैं, उनकी सदैव मदद करनी चाहिए।

जरथोस्ती पंथ में दैहिक मृत्यु को बुराई की अस्थायी जीत माना गया है। इसके बाद मृतक की आत्मा का इंसाफ होगा। यदि वह सदाचारी हुई तो आनंद व प्रकाश में वास पाएगी और यदि दुराचारी हुई तो अंधकार व नैराश्य की गहराइयों में जाएगी, लेकिन दुराचारी आत्मा की यह स्थिति भी अस्थायी है। आखिर जरथोस्ती पंथ विश्व का अंतिम उद्देश्य अच्छाई की जीत को मानता है, बुराई की सजा को नहीं।

अतः यह मान्यता है कि अंततः कई मुक्तिदाता आकर बुराई पर अच्छाई की जीत पूरी करेंगे। तब अहुरा मजदा असीम प्रकाश के रूप में सर्वसामर्थ्यवान होंगे। फिर आत्माओं का अंतिम फैसला होगा।

इसके बाद भौतिक शरीर का पुनरोत्थान होगा तथा उसका अपनी आत्मा के साथ पुनर्मिलन होगा। समय का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और अहुरा मजदा की सात कृतियाँ शाश्वत धन्यता में एक साथ आ मिलेंगी और आनंदमय, अनश्वर अस्तित्व को प्राप्त करेंगी।

इन्हें भी देखे

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  1. "क्या शिया मुसलमान नहीं पारसी धर्म के अनुयायी हैं?".
  2. "देखें: अपने ही मुल्क ईरान से कैसे बेदखल हुए पारसी!".
  3. "ZOROASTRIANISM i. HISTORY TO THE ARAB CONQUEST – Encyclopaedia Iranica". Encyclopædia Iranica. अभिगमन तिथि 2019-07-13.
  4. Rivetna, Roshan. "The Zarathushti World, a 2012 Demographic Picture" (PDF). Fezana.org.
  5. "Zoroastrians Keep the Faith, and Keep Dwindling". Laurie Goodstein. 6 September 2006. अभिगमन तिथि 25 September 2017.
  6. Deena Guzder (9 December 2008). "The Last of the Zoroastrians". Time. अभिगमन तिथि 25 September 2017.

बाहरी कड़ियाँ

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  • Kulke, Eckehard: The Parsees in India: a minority as agent of social change. München: Weltforum-Verlag (= Studien zur Entwicklung und Politik 3), ISBN 3-8039-00700-0
  • Ervad Sheriarji Dadabhai Bharucha: A Brief sketch of the Zoroastrian Religion and Customs
  • Dastur Khurshed S. Dabu: A Handbook on Information on Zoroastrianism
  • Dastur Khurshed S. Dabu: Zarathustra an his Teachings A Manual for Young Students
  • Jivanji Jamshedji Modi: The Religious System of the Parsis
  • R. P. Masani: The religion of the good life Zoroastrianism
  • P. P. Balsara: Highlights of Parsi History
  • Maneckji Nusservanji Dhalla: History of Zoroastrianism; dritte Auflage 1994, 525 p, K. R. Cama, Oriental Institute, Bombay
  • Dr. Ervad Dr. Ramiyar Parvez Karanjia: Zoroastrian Religion & Ancient Iranian Art
  • Adil F. Rangoonwalla: Five Niyaeshes, 2004, 341 p.
  • Aspandyar Sohrab Gotla: Guide to Zarthostrian Historical Places in Iran
  • J. C. Tavadia: The Zoroastrian Religion in the Avesta, 1999
  • S. J. Bulsara: The Laws of the Ancient Persians as found in the "Matikan E Hazar Datastan" or "The Digest of a Thousand Points of Law", 1999
  • M. N. Dhalla: Zoroastrian Civilization 2000
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  • D. F. Karaka: History of The Parsis including their manners, customs, religion and present position, 350 p, illus.
  • Piloo Nanavatty: The Gathas of Zarathushtra, 1999, 73 p, (illus.)
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  • Dr. Sir Jivanji J. Modi: The Religious Ceremonies and Customs of The Parsees, 550 Seiten
  • Mani Kamerkar, Soonu Dhunjisha: From the Iranian Plateau to the Shores of Gujarat, 2002, 220 p
  • I.J.S. Taraporewala: The Religion of Zarathushtra, 357 p
  • Jivanji Jamshedji Modi: A Few Events in The Early History of the Parsis and Their Dates, 2004, 114 p
  • Dr. Irach J. S.Taraporewala: Zoroastrian Daily Prayers, 250 p
  • Adil F.Rangoonwalla: Zoroastrian Etiquette, 2003, 56 p
  • Rustom C Chothia: Zoroastrian Religion Most Frequently Asked Questions, 2002, 44 p
  • UNESCO Parsi Zoroastrian Project
  • Zoroastrian Influence Upon Jewish Conceptions Of Satan
  • https://web.archive.org/web/20070216105733/http://parsiana.com/