सुभाष काक
सुभाष काक (कश्मीरी: शारदा लिपि: 𑆱𑆶𑆨𑆳𑆰 𑆑𑆳𑆑, देवनागरी: सुभाष काक, नस्तालीक़: سُباش كاک, जन्म 26 मार्च 1947) प्रमुख भारतीय-अमेरिकी कवि, दार्शनिक और वैज्ञानिक हैं। वे अमेरिका के ओक्लाहोमा प्रान्त में सङ्गणक विज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं। वेद, कला और इतिहास पर उनके कई ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं।[1]
उनका जन्म श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में राम नाथ काक और सरोजिनी काक के यहाँ हुआ। उनकी शिक्षा कश्मीर और दिल्ली में हुई।[2]
कविता और जीवन का मर्म
संपादित करेंकविता जीवन की पहेलियों पर प्रकाश डालती है। सुभाष काक की शैली सरल है पर इस सरलता के भीतर विचारों की जटिलता छिपी हुई है। वह प्रकृतिवाद के समर्थक हैं। प्रकृति के माध्यम से वह जटिल मानव भाव प्रस्तुत करते हैं। विख्यात विद्वान और आलोचक गोविन्द चन्द्र पाण्डेय ने उनकी कविता की अङ्ग्रेज़ी के विलियम वर्द्स्वर्थ (William Wordsworth) की रचनाओं से तुलना की है। पाण्डेय लिखते हैं --
- उनकी भाषा और शैली आन्तरिक गाम्भीर्य को सरल प्रासादिकता से प्रस्तुत करती है जैसी कभी शेषनाग सरोवर का सलिल। उनकी भाव-भूमि स्मृतियों की पच्चीकारी से अलङ्कृत है। उनके बिम्ब प्रकृति और सहज मानवता से बराबर जुड़े रहते हैं। इन कविताओं को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि न सिर्फ कवि एक बीते शैशव और सुदूर प्रदेश की स्मृतियों से अभिभूत है बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर की बदलती परिस्थिति की आशङ्काओं से भी चिन्तित है। उनकी कविताएं अनुभव रस से सिक्त हैं, वे उलझी बौद्धिकता और आन्तरिक विसङ्गतियों से दुर्बोध नहीं हैं। [3]
उनकी कविता ने हिन्दी के समकालीन मार्ग और विधि से दूर नये रूप की स्थापना का प्रयत्न किया है। उनकी कविता के कई संग्रह प्रकाशित -- व अन्य भाषाओं में अनूदित -- हो चुके हैं।[4][5]
संस्कृति और दर्शन
संपादित करेंवे भारतीय विद्या में निपुण और साहित्य, दर्शन, कला, एवं संस्कृति के सहृद-मर्मज्ञ हैं। वेदकाल का बहुत समय से लुप्त उन्होंने एक ज्योतिष ढूँढ निकाला है जिससे भारत की संस्कृति, विज्ञान और कालक्रम पर नया प्रकाश पडता है। इनमें से सबसे रोचक १०८ अङ्क, जो भारतीय संस्कृति में बहुत आता है, की व्याख्या है। प्रमुख देवी-देवताओं के १०८ नाम हैं, जपमाला में १०८ दाने, १०८ धाम हैं, आदि। इनके शोध ने दिखाया है कि वैदिक काल में यह ज्ञान था कि सूर्य और चन्द्रमा पृथिवी से क्रमशः लगभग १०८ गुणा निजि व्यास की दूरी पर हैं। आधुनिक ज्योतिष ने तो यह भी दिखाया है कि सूर्य का व्यास पृथिवी के व्यास से लगभग १०८ गुणा है।[6] पिण्ड और ब्रह्माण्ड के समीकरण के कारण मानव अपने व्यक्तिगत आध्यात्मिक यात्रा में भी इस संख्या को पाता है, यह वेद की धारणा है।[7]
इस शोध का विद्वानों ने स्वागत किया है। अमेरिका के वेदपण्डित वामदेव शास्त्री ने इस शोध को स्मारकीय उपलब्धि (monumental achievement) कहा है।[8]
कनाडा के विख्यात आचार्य क्लास क्लास्टरमेयर के अनुसार, "मेरी बहुत देर की समझ थी कि ऋग्वेद में भाषाशास्त्र और इतिहास के परे बहुत कुछ था। यह है वह!... यह एक युगान्तककारी खोज (epoch-making discovery) है।"[9]
उनका दार्शनिक दृष्टिकोण पुनर्गमनवाद से प्रेरित है, जिसके अनुसार विश्व में प्रतिरूप विभिन्न अनुमाप में पुनरावृत, अथवा दोहरते, हैं और कवि और कलाकार इसीका चित्रण करते हैं। इसका प्रयोग कर उन्होंने भारतीय कला और संस्कृति की विवेचना की है। [10] [11] उनके अनुसार पुनर्गमन ही विश्व का समझना सम्भव करता है।
वे संस्कृत के भी विद्वान हैं, इस भाषा में उन्होंने वेदान्त के नए सूत्र (प्रज्ञा सूत्र) की रचना की है।
विज्ञान की सीमाएं
संपादित करेंविज्ञान में इनका योगदान भौतिक शास्त्र और संगणन शास्त्र पर हुआ है। उन्होंने कृत्रिम बुद्धि (Artificial Intelligence) की सीमा पर शोध किया है और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सङ्गणक बुद्धि कभी भी मानव बुद्धि की सीमा पर नहीं पहुंच सकती है।[12] उनके अनुसार भौतिक सिद्धान्तों का एकीकरण - जो पिछले कुछ दशकों में विज्ञान का प्रमुख लक्ष्य रहा है - असफल रहेगा। पार्थव और आध्यात्मिक में निरन्तर द्वन्द्व बना रहेगा। वह अपने यमल परोक्षक के समाधान के कारण समाचार पत्रों में बहुत चर्चित रहे हैं।[13]
ग्रन्थ
संपादित करें- मृतक नायक (The Conductor of the Dead)
- लन्दन सेतु (The London Bridge)
- मन्दिर की सीढ़ियाँ
- इश्बर रहस्य
- एक ताल, एक दर्पण (1999)[2]
- प्रज्ञा सूत्र (2003)
- चिनार उपवन (The Chinar Garden) [3]
- मिट्टी का अनुराग (2007) [4]
- अन्य ग्रन्थ
- The Loom of Time (2016), DKPrintworld, New Delhi ISBN 8124608741
- The Circle of Memory: An Autobiography (2016), Mount Meru Publishing, Mississauga, Ontario, ISBN 978-1-988207-17-9
- Matter and Mind (2016), Mount Meru Publishing, Mississauga, Ontario, ISBN 978-1-988207-13-1
- Mind and Self (2016), Mount Meru Publishing, Mississauga, Ontario, ISBN 978-1-988207-06-3
- Computing Science in Ancient India; Munshiram Manoharlal Publishers Pvt. Ltd (2001)
- The Wishing Tree: Presence and Promise of India कल्पतरु: भारत की उपस्थिति एवं प्रतिश्रुति (Third Edition) Aditya Prakashan (2015), ISBN 978-8177421538
- The Gods Within: Mind, Consciousness and the Vedic Tradition, Munshiram Manoharlal Publishers Pvt. Ltd (2002) ISBN 81-215-1063-5
- The Asvamedha: The Rite and Its Logic, Motilal Banarsidass Publishers, (2002) ISBN 81-208-1877-6
- The Prajna Sutra: Aphorisms of Intuition, DK Printworld, 2007. ISBN 81-246-0410-X
- The Architecture of Knowledge: Quantum Mechanics, Neuroscience, Computers and Consciousness, Motilal Banarsidass, 2004, ISBN 81-87586-12-5
- "Recursionism and Reality: Representing and Understanding the World", 2005.
- Advances in Communications and Signal Processing, Springer-Verlag, 1989. (with W.A. Porter).
- Advances in Computing and Control, Springer-Verlag, 1989. (with W.A. Porter and J.L. Aravena).
- Consciousness and the universe : quantum physics, evolution, brain & mind, Cosmology Science Publishers, 2011. (with Roger Penrose and Stuart Hameroff) ISBN 9780982955208, ISBN 0982955200
- The Nature of Physical Reality भौतिक तथ्यता का स्वरूप (2016)Third edition. ISBN 978-1-988207-08-7
- India at Century's End भारत शताब्दी के अन्त में (1994)
- en:In Search of the Cradle of Civilization सभ्यता के स्रोत की ढूंढ (1995, 2001)
- en:The Astronomical Code of the Rigveda ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष . Aditya Prakashan (2016), ISBN 978-8177421590
- Computing Science in Ancient India प्राचीन भारत का संगणन शास्त्र (2001)
- The Gods Within आन्तरिक देवता (2002)
- The Asvamedha अश्वमेध यज्ञ (2002)
- en:The Architecture of Knowledge
- Arrival and Exile: Selected Poems (2016), Mount Meru Publishing, Mississauga, Ontario, ISBN 978-1-988207-15-5
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "हिन्दु समाचारपत्र में साक्षात्कार". मूल से 24 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 दिसंबर 2013.
- ↑ "Distinguished Alumni Awards" [विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार]. मूल से 14 जुलाई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 दिसंबर 2013.
- ↑ गोविन्द चन्द्र पाण्डे, प्राग्वाच, एक ताल, एक दर्पण, १९९९
- ↑ "स्टेट पत्रिका". मूल से 18 जनवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 नवंबर 2013.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 18 जनवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 जून 2014.
- ↑ सु. काक,Birth and Early Development of Indian Astronomy. [1] Archived 2016-02-10 at the वेबैक मशीन In "Astronomy Across Cultures: The History of Non-Western Astronomy", Helaine Selin (editor), Kluwer Academic, Boston, 2000, pp. 303-340.
- ↑ सु. काक, ऋग्वेद का कूट-ज्योतिष (2000)
- ↑ 'दि एस्ट्रोनोमिकल कोड ऑफ दि ऋग्वेद' के जिल्द से, मुंशीराम मनोहरलाल, नई दिल्ली, २०००।
- ↑ 'दि एस्ट्रोनोमिकल कोड ऑफ दि ऋग्वेद' के जिल्द से, मुंशीराम मनोहारलाल, नई दिल्ली, २०००।
- ↑ सु. काक, रीति और यज्ञ Archived 2015-01-20 at the वेबैक मशीन
- ↑ सु. काक, संगीत Archived 2015-09-23 at the वेबैक मशीन
- ↑ सु. काक, मानव और कृत्रिम बुद्धि, ACM Ubiquity, 2005
- ↑ "फिज़-ओर्ग". मूल से 19 फ़रवरी 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 फ़रवरी 2007.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- सुभाष काक की रचनाएँ कविता कोश में
- अनुभूति पत्रिका में कविता
- कविता कोश में सुभाष काक
- भौतिक और संगणन शास्त्र की arXiv रचनाएं
- लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के जालपृष्ठ पर काक के प्रकाशनों की सूची
- ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवर्सिटी केजालपृष्ठ पर काक के बारे में
- मस्तिष्क और चेतना भाषण
- साक्षात्कार