जालन्धर नाथ
जालन्धरनाथ अथवा जलंधरनाथ, नाथ संप्रदाय के एक प्रमुख संत थे और इनकी गिनती नवनाथों में होती है। उन्हें मत्स्येंद्रनाथ का समकालीन और गुरुभाई माना जाता है।[1] आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हें मत्स्येंद्रनाथ का समकालीन और कृष्णपाद, जिन्हें कानिपा अथवा कानिफनाथ के नाम से भी जाना जाता है, का गुरु माना है।[2] साथ ही यह भी माना है कि इनकी साधना पद्धति मत्स्येन्द्रनाथ और गोरखनाथ की पद्धति से भिन्न थी।[2]
जलंधरनाथ को कुछ लोग दत्तात्रेय का शिष्य मानते हैं।[3] साथ ही यह भी बताया जाता है कि इन्होने अपने शिष्य कृष्णपाद के साथ कापालिक संप्रदाय की स्थापना की थी।[1]
उपरोक्त मान्यताओं के विपरीत, तिब्बती परंपरा में इन्हें मत्स्येन्द्रनाथ का गुरु माना गया है और उक्त मत अनुसार इनका जन्म नगरभोग देश के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ बताया जाता है।[4] हठयोग में इनके नाम पर एक बंध का नाम जालंधरबंध भी बताया जाता है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इन्हें अंतिम सिद्ध और पहला नाथ माना है।[5]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ प्रकाश, सत्य (1960). प्राचीन भारत में रसायन का विकास. Subodh Pocket Books. ISBN 978-81-85134-06-2.
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: ISBN / Date incompatibility (help) - ↑ अ आ हजारी प्रसाद, द्विवेदी (2007). नाथ सिद्धों की रचनायें. किताबघर प्रकाशन. ISBN 978-81-89859-20-6. अभिगमन तिथि: 4 फरवरी 2022.
- ↑ जयराम, सिंह; एन. बी., सिंह (2019). नाथ पंथ और गुरु गोरक्षनाथ. Educreation Publishing. अभिगमन तिथि: 4 फरवरी 2022.
- ↑ चन्द्रमौलि मणि, त्रिपाठी (2009). Apani Yaddashta Kaise Badhayen. Prabhat Prakashan. ISBN 978-81-7315-667-0.
- ↑ "Nath Sahitya | नाथ साहित्य एवं नाथ पंथ के प्रमुख प्रवर्तक". HindiShri. 18 फरवरी 2020. मूल से से 4 फ़रवरी 2022 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 4 फरवरी 2022.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- हिंदी साहित्य का इतिहास, आचार्य रामचंद्र शुक्ल (हिंदी विकिस्रोत पर)