जालन्धर एक दैत्य था जो भगवान शंकर का पुत्र और असुरों का राजा था। उसके जन्म दाता पिता भगवान शिव थे किन्तु उसके पालक पिता का नाम दम्भासुर था।

जालन्धर की उत्पति संपादित करें

समुद्र मन्थन के समय भगवान शंकर का वीर्य समुद्र में चला गया था और उस वीर्य से जालन्धर का जन्म हुआ। शिवमहापुराण के अनुसार जालन्धर का वास्तविक नाम शंखचूड़ था किन्तु जल से उत्पन्न होने के कारण उसे जालन्धर कहा गया। लिंगपुराण के अनुसार जालन्धर की कद काठी और सूरत भगवान शिव के ही समान थी।

विवाह संपादित करें

जालन्धर का विवाह असुर कुल में हिरण्याक्ष के पुत्र कालनेमि की कन्या वृन्दा से हुआ था उसे वरदान था कि उसकी पत्नी का सतीत्व जब तक नष्ट नहीं होगा तब तक उसे मारना असम्भव होगा।

जालन्धर का अन्त संपादित करें

ब्रह्मा से वर मांगने के बाद जालन्धर को अपनी शक्ति का अभिमान हो गया उसने असुरों की सेना का नेतृत्व किया और भगवान शिव से युद्ध करने के लिए पहुंच गया। भगवान शिव ने उसे मारने के बहुत प्रयत्न किए किंतु उसकी पत्नी वृन्दा का सतीत्व नष्ट न होने के कारण देवाधीदेव महादेव उसे मार नही पा रहे थे अन्त में भगवान विष्णु ने जालन्धर के रूप में वृन्दा का सतीत्व नष्ट किया और भगवान शिव ने उसे मार डाला। भगवान विष्णु ने एक शिला के रूप में वृन्दा के पौधे के रूप से विवाह किया उसे आज देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। वृन्दा का वह पौधे का रूप तुलसी और भगवान विष्णु का शिला रूप शालिग्राम कहलाता है।

पूर्व जन्म की कथा संपादित करें

जालन्धर पूर्व जन्म में श्रीकृष्ण का परम भक्त सुदामा था। राधा के श्राप के कारण उसका जन्म जालन्धर के रूप में असुर कुल में हुआ। जब सुदामा ने श्राप से मुक्ति पाने का उपाय पूछा तो राधा ने सुदामा को कहा कि वे असुर जाति में भगवान शिव के पुत्र के रूप में जन्म ले किन्तु उनका पालन पोषण माता पार्वती या भगवान शिव ना करे बल्कि एक असुर ही उनका पालन पोषण करे और अन्त में शिव द्वारा संहारने पर ही उन्हें असुर जाति से मुक्ति मिलेगी।