जेम्स वेब खगोलीय दूरदर्शी

अप्रक्षेपित अंतरिक्ष दूरदर्शी

जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरदर्शी (James Webb Space Telescope (JWST)) एक प्रकार की अवरक्त अंतरिक्ष वेधशाला है। यह हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी का वैज्ञानिक उत्तराधिकारी और आधुनिक पीढ़ी का दूरदर्शी है, जिसे 25 दिसंबर 2021 को एरियन ५ राकेट से प्रक्षेपित किया गया। इसका मुख्य कार्य ब्रह्माण्ड के उन सुदूर निकायों का अवलोकन करना है जो पृथ्वी पर स्थित वेधशालाओं और हबल दूरदर्शी के पहुँच के बाहर है। JWST, नासा और यूनाइटेड स्टेट स्पेस एजेंसी की एक परियोजना है जिसे यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA), केनेडियन स्पेस एजेंसी (CSA) और पंद्रह अन्य देशों का अन्तरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त है।

जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरदर्शी
सामान्य जानकारी
संगठन नासा,[1] ईएसए एवं सीएसए के महत्वपूर्ण योगदान के साथ
मुख्य ठेकेदार नॉरथ्रोप ग्रुमान
बाल एयरोस्पेस
प्रक्षेपण दिनांक 25 दिसम्बर 2021[2]
प्रक्षेपण स्थल गुआना स्पेस सेंटर ELA-3
कोरु, फ्रेंच गुआना
प्रक्षेपण वाहन एरियन 5 (योजनाबद्ध)
मिशन समयावधि 5 वर्ष (रचना)
10 वर्ष (लक्ष्य)
द्रव्यमान 6,200 कि॰ग्राम (220,000 औंस)
Type of orbit L2
Orbit height पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर
परिक्रमण काल 1-वर्ष
स्थापन स्थल पृथ्वी से 15 लाख किमी दूर्
(पृथ्वी-सूर्य द्वितिय लग्रांज बिंदु वृहत कक्षा)
दूरदर्शी प्रकार Korsch (Three-mirror anastigmat)
तरंगदैर्ध्य 0.6 (नारंगी) से 28.5 µm (माइक्रॉन) (मिड-इंफ्रारेड)
व्यास 6.5 मी॰ (21 फीट)
संग्रहीत क्षेत्र 25 मी2 (270 वर्ग फुट)
फोकल लंबाई 131.4 मी॰ (431 फीट)
उपकरण
NIRCam Near IR Camera
NIRSpec Near IR Spectrograph
MIRI Mid IR Instrument
NIRISS Near Infrared Imager and Slitless Spectrograph
FGS Fine Guidance Sensor
Website NASA United States
ESA b Europe
CSA/ASC Canada
CNES France

इसका असली नाम अगली पीढ़ी का अंतरिक्ष दूरदर्शी (Next Generation Space Telescope (NGST)) था, जिसका सन २००२ में नासा के द्वितीय प्रशासक जेम्स एडविन वेब (१९०६-१९९२) के नाम पर दोबारा नामकरण किया गया। जेम्स एडविन वेब ने केनेडी से लेकर ज़ोंनसन प्रशासन काल (१९६१-६८) तक नासा का नेतृत्व किया था। उनकी देखरेख में नासा ने कई महत्वपूर्ण प्रक्षेपण किए, जिसमे जेमिनी कार्यक्रम के अंतर्गत बुध के सारे प्रक्षेपण एवं प्रथम मानव युक्त अपोलो उड़ान शामिल है।

JWST की कक्षा पृथ्वी से परे पंद्रह लाख किलोमीटर दूर लग्रांज बिन्दु L2 पर होगी अर्थात पृथ्वी की स्थिति हमेंशा सूर्य और L2 बिंदु के बीच बनी रहेगी। चूँकि L2 बिंदु में स्थित वस्तुएं हमेंशा पृथ्वी की आड़ में सूर्य की परिक्रमा करती है इसलिए JWST को केवल एक विकिरण कवच की जरुरत होगी जो दूरदर्शी और पृथ्वी के बीच लगी होगी। यह विकिरण कवच सूर्य से आने वाली गर्मी और प्रकाश से तथा कुछ मात्रा में पृथ्वी से आने वाली अवरक्त विकिरणों से दूरदर्शी की रक्षा करेगी। L2 बिंदु के आसपास स्थित JWST की कक्षा की त्रिज्या बहुत अधिक (८ लाख कि.मी.) है, जिस कारण पृथ्वी के किसी भी हिस्से की छाया इस पर नहीं पड़ेगी। सूर्य की अपेक्षा पृथ्वी से काफी करीब होने के बावजूद JWST पर कोई ग्रहण नहीं लगेगा।

JWST प्राथमिक वैज्ञानिक मिशन के मुख्य चार घटक है। पहला, बिग-बैंग के पश्चात ब्रह्माण्ड में बनी सबसे पहली आकाशगंगा और सबसे पहले बने तारे की खोज करना। दूसरा, आकाशगंगाओं का गठन और उनके विकास का अध्ययन करना। तीसरा, तारों का गठन और ग्रहीय प्रणालीयों को समझना तथा चौथा, जीवन की उत्पत्ति और ग्रहीय प्रणालीयों का अध्ययन करना। इन सभी कार्यों का विश्लेषण दृश्य प्रकाश की अपेक्षा अवरक्त प्रकाश में अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकता है। यही कारण है कि JWST के उपकरण हबल टेलिस्कोप की तरह दृश्य या पराबैंगनी उपाय वाले नहीं होंगे बल्कि इसमें बड़ी मात्रा में अवरक्त प्रकाश को इकट्ठा करने की क्षमता होगी। JWST की वर्तमान डिजाइन इस प्रकार बनाई गई है कि यह ०.६ (नारंगी प्रकाश) से लेकर २८ माइक्रोमीटर (लगभग १००° K (-१७३°C, -२८०°F) की गहरी अवरक्त विकिरण) विस्तार की तरंगादैर्ध्यों का आसानी से पता लगा लेगी।

 
नासा के गोडार्ड में प्रदर्शन के लिए रखा वेब टेलिस्कोप का एक मॉडल . इस मॉडल का आकर वही है जो वेब टेलिस्कोप का वास्तविक आकार है

किसी वजह से इस वेधशाला को जून २०१४ से पहले प्रक्षेपित नहीं किया जा सकेगा तथा वर्तमान कार्यक्रम के अनुसार लगभग ६.२ टन द्रव्यमान वाले इस टेलिस्कोप को ' गुयाना अंतरिक्ष केंद्र' कोरु, फ्रेंच गुयाना से प्रक्षेपण वाहन ' एरियन ५ ' कि मदद से कक्षा में स्थापित किया जाएगा |स्थापित होने के लगभग ६ महीने बाद यह वेधशाला कम से कम अगले पांच वर्षों के लिए वैज्ञानिक मिशन के लिए सौंप दी जाएगी |इस वेधशाला को इस प्रकार तैयार किया जा रहा है कि वैज्ञानिक मिशन की विस्तार की सम्भावनाओं के हिसाब से इसकी मौजूदा क्षमताओं को बढ़ाकर इसकी निर्धारित कार्यकाल अवधि बढाई जा सकेगी।

पहली आकाशगंगा और पहलें तारे की खोज

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बिग बैंग के लगभग ४० करोड़ वर्ष बाद ब्रह्माण्ड अत्यधिक घना था। तब ना ही कोई आकाशगंगा अस्तित्व मे आई थी और ना ही किसी तारे का जन्म हुआ था। वैज्ञानिक इस बात को जानना चाहते हैं कि आखिर बिग बैंग के पश्चात वास्तव में हुआ क्या था ? आशा है वेब दूरबीन इस राज पर से पर्दा हटाएगा तथा आकाशगंगा और तारों के निर्माण की गुत्थी सुलझेगी।
बिग बैंग के पश्चात जब ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई तब चहुँ ओर केवल मूलभूत कणों (स्वतन्त्र इलेक्ट्रॉन और स्वतन्त्र प्रोटॉन) का राज था। इसके करीब चार लाख वर्ष बाद जैसे जैसे तापमान गिरने लगा इलेक्ट्रोन और प्रोटोन ने आपसी साझेदारी से हाइड्रोजन परमाणु (एक इलेक्ट्रोन + एक प्रोटोन) बनाया। साझेदारी की यह प्रक्रिया पुनर्संयोजन कहलाती है। जैसे ही इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन का मिलन हुआ फोटॉन अर्थात् प्रकाश का जन्म हुआ। इस बिंदु पर ब्रह्माण्ड अपारदर्शी से पारदर्शी होने लगा। 'पुनर्संयोजन का युग' हमारे ब्रह्माण्डीय इतिहास का वह पूर्व बिंदु है जिसमें हम प्रकाश के किसी भी रूप के साथ पीछे जाकर देख सकते हैं। ब्रह्माण्ड की समयरेखा का सर्वोत्तम उदाहरण ब्रह्माण्ड में चहुँ ओर व्याप्त ' ब्रह्माण्डीय सुक्ष्मतरंग पृष्ठभूमि ' है जिसे हम आज COBE और WMAP की सहायता से देखते हैं |ब्रह्माण्ड में एक और बड़ा परिवर्तन तारों के निर्माण के बाद हुआ। सिद्धांत अनुमान लगाते हैं कि सुपरनोवा विस्फोट के पहले कुछ लाख वर्ष तक दहकने वाले प्रथम तारे (सबसे पहले बने तारे) सूर्य से ३० से ३०० गुना बड़े थे और उनकी चमक सूर्य से लाखो गुना अधिक थी। इन तारों का उर्जायुक्त पराबैंगनी प्रकाश हाइड्रोजन परमाणु को इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन में विभाजित करने में सक्षम था। सुदूर क्वासर के वर्णक्रम के अध्ययन से लगता है कि इस समय ब्रह्मांड की आयु संभवतः एक अरब वर्ष होगी। यह ' पुनः आयनीकरण युग ' कहलाता है। यह वह युग था जब अधिकांश हाइड्रोजन प्रथम तारे की बढ़ती विकिरण से नष्ट हो गई। पुनः आयनीकरण हमारे ब्रह्माण्डीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। इसका अध्ययन कर हम पूर्व तारों की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। परन्तु वैज्ञानिक यह नहीं जानते कि वास्तव में प्रथम तारे का निर्माण कब हुआ और पुनः आयनीकरण की प्रक्रिया कब शुरू हुई |ब्रह्माण्डीय इतिहास में प्रथम तारे का उद्भव ' अंध युग ' के अंत की एक निशानी है। इस अवधि को प्रकाश के पृथक स्रोत की अनुपस्थिति के रूप में पहचाना जाता है। इन पहले के सूत्रों को समझना आवश्यक है क्योंकि इसने बाद में बनने वाले आकाशगंगा जैसे विशाल निकायों के गठन को बहुत प्रभावित किया। प्रकाश के प्रथम स्रोत की भूमिका उस बीज के सामान है जिसने बाद में विशाल निकायों का निर्माण किया। हो सकता है प्रथम तारों ने सुपरनोवा जैसे विस्फोट से ध्वस्त होकर ब्लेक होल बनायें हो और यह ब्लेक होल तारों और गैसों को निगलकर ' छोटी क्वासर 'बनाई हो जिसने निरंतर वृद्धि कर विशाल ब्लेक होल का निर्माण किया हो जो आज की आकाशगंगा के केंद्र में पाया गया है। ब्रह्माण्ड की संरचना की गठन की गुत्थी सुलझाने के लिए वेब कई महत्वपूर्ण सवालों का पता करने में हमारी मदद करेगा। जैसे कि पुनः आयनीकरण कब और कैसे हुआ ? वें कौन से स्रोत है जो पुनः आयनीकरण के कारण बने ? प्रथम आकाशगंगा क्या है ?

आकाशगंगाओं का गठन और उनके विकास का अध्ययन

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आकाशगंगाएं, ब्रह्माण्ड रूपी इमारत की साक्षात ईंटे है। सिद्धांत और प्रेक्षण भी हमें आकाशगंगाओं की बनावट की शानदार रूपरेखा देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि छोटे निकाय पहले बने तथा उनके परस्पर मिलन से बड़े निकायों का निर्माण हुआ। यह प्रक्रिया आज भी (मंदाकिनी के साथ उसके बौने साथियों के विलय के रूप में तथा मंदाकिनी की ओर भविष्य की संभावित टक्कर के लिए बढ़ती एंड्रोमेडा निहारिका के रूप में) देखी जा सकती है। बिग बैंग के एक अरब वर्ष बाद बनी आकाशगंगाओं का अवलोकन समय रेखा में पीछे की ओर जाकर किया जाएगा हालांकि तब की आकाशगंगाएं आज की आकाशगंगाओं की अपेक्षा छोटी और ज्यादा अनियमित थी जबकि कुछ का स्वरूप वर्त्तमान आकाशगंगाओं से काफी मिलता जुलता है। यह एक विश्मयकारी बात है।
इस दिशा में अब तक बहुत कार्य हुए हैं बावजूद कई सवाल अभी भी सुलझने बाकी है। हम नहीं जानते कि वास्तव में आकाशगंगाओं का निर्माण कैसे हुआ ? उनके आकार को कौन नियंत्रित करता है ? उनके भीतर तारों का निर्माण कैसे होता है ? रासायनिक तत्वों कि उत्पत्ति कैसे हुई और केंद्रीय ब्लेक होल के संपूर्ण आकाशगंगा पर प्रभाव के बावजूद इन तत्वों का आकाशगंगाओं के माध्यम से पुनः वितरण किस प्रकार हुआ ? छोटे और बड़े निकायों के टक्कर के फलस्वरूप एकीकरण जैसी विस्फोटक घटनाओं का वैश्विक प्रभाव क्या होता है ?

तारों का गठन और ग्रहीय प्रणालीयों को समझना

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सितारा सदीयों से खगोलविज्ञान का एक उत्कृष्ट विषय रहा है। विस्तृत अवलोकन और कंप्यूटर सिमुलेसन से हाल के दिनों में हम तारों को समझने लगे हैं। अब से १०० वर्ष पहले हम नहीं जानते थे कि तारों को दहन शक्ति नाभकीय संलयन से मिलती है और ५० वर्ष पहले हम यह नहीं जानते थे कि तारे लगातार बनते बिगड़ते रहते हैं। हमें आज भी इसका विस्तृत ज्ञान नहीं है कि गैस और धूल के बादलों से तारे कैसे बनते हैं, अधिकाँश तारे समूह में क्यों बनते हैं, उनमें से ग्रहों का निर्माण कैसे होता है। हमें इसका भी विस्तृत ज्ञान नहीं है कि कैसे वें धातुओं को विकसित और मुक्त कर नई पीढ़ी के तारों और ग्रहों के पुनर्निर्माण के लिए वापस अंतरीक्ष में जाते हैं। कई मामलों में यह पुराने तारे नयें तारों की निर्माण प्रक्रिया में बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं।
अवलोकन बताते हैं कि अधिकाँश तारों का निर्माण द्वि-तारा प्रणाली में होता है और उनमें से कईयों के ग्रह भी होते हैं। हालांकि बड़ी संख्या में खोजे गए विशाल ग्रहों की कक्षाएँ उनके तारों के काफी करीब पायी गई, यह एक आश्चर्य की बात थी। हम यह जानते हैं कि सूर्य से थोड़े बड़े और ठण्डे तारों के आसपास ग्रहों का पाया जाना सामान्य बात है।

जीवन की उत्पत्ति और ग्रहीय प्रणालीयों का अध्ययन

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पृथ्वी की उत्पत्ति और जीवन को आधार देने की इसकी क्षमताओं को जानना संपूर्ण खगोलविज्ञान के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है। यह JWST विज्ञान मिशन का केंद्र बिंदु है और इसके मूल को जानने के लिए छोटे पिंडों के गठन को समझना जरुरी है कि कैसे उन्होंने आपसी मेल से बड़े पिंड बनाएं, उन्होंने अपनी वर्तमान कक्षाएं कैसे प्राप्त की, कैसे बड़े पिंड एक प्रणाली (जैसे कि हमारी सौर प्रणाली या सौर मंडल) के भीतर अन्य पिंडों को प्रभावित करते हैं तथा छोटे और बड़े पिंडों के उन रासायनिक और भौतिक इतिहास के बारे में जानना जिसने पृथ्वी बनाई और जीवन के लिए आवश्यक पूर्ववर्ती रसायनों को वितरित किया। सौरमंडल के बाहरी हिस्से में स्थित ठन्डे निकाय और धूल पूर्व सौर प्रणाली की परिस्थितियों के प्रमाण है जिनकी सीधी तुलना अन्य तारों के इर्दगिर्द नजर आने वाले ठन्डे निकायों और धूल से कर सकते हैं |
JWST ग्रहीय प्रणालियाँ और जीवन की उत्पत्ति विषय का लक्ष्य ग्रहीय प्रणालियों (हमारी सौर प्रणाली सहित) के भौतिक एवं रासायनिक गुणों का निर्धारण करना और उन प्रणालियों में जीवन की उत्पत्ति के लिए आवश्यक क्षमता की जांच करना है | JWST इन निरीक्षित निकायों की इन्फ्रारेड और मिड इन्फ्रारेड तस्वीरें तथा स्पेक्ट्रोमिकी उपलब्ध कराएगा | JWST में सौर प्रणाली के गतिशील लक्षयों का निरीक्षण करने की भी क्षमता है जिससे हम बाहरी ग्रहों, धूमकेतुओं और कुइपर बेल्ट की वस्तुओं का अध्ययन कर सकेंगे |
 
L2 rendering
 
प्रस्तुत आरेख में सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के पांच लांग्रांजीयन बिन्दुओं दिखाया गया है, JWST L2 पर स्थित होगा, जहां से पृथ्वी और सूर्य हमेंसा इसके पीछे की ओर होंगे

JWST की कक्षा अंडाकार होगी और इसकी त्रिज्या अर्ध-स्थायी द्वितीय लाग्रांज बिंदु L2 के आसपास आठ लाख किलोमीटर (५ लाख मील) होगी। पृथ्वी -सूर्य L2 बिंदु (जहां से वेब टेलिस्कोप अपनी कक्षा में परिक्रमा करेगा) की पृथ्वी से दूरी पंद्रह लाख किलोमीटर (९,३०,००० मील) है। यह दूरी पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच कि दूरी से चार गुना अधिक है। इतनी लम्बी दूरी पर स्थित होने के कारण प्रक्षेपण के पश्चात वेब टेलिस्कोप की सेवा लेना हबल टेलिस्कोप की अपेक्षा बहुत कठिनाई भरा कार्य होगा। इसके चिंतन की फिलहाल कोई योजना नहीं है।

वें वस्तुएँ जो पृथ्वी की कक्षा से बाहर स्थित होती है साधारणतया सूर्य का एक चक्कर लगाने में एक वर्ष से ज्यादा समय लेती है। हालांकि L2 बिंदु पर गुरुत्वाकर्षणीय खिंचाव (विशेषकर सूर्य का और पृथ्वी का अतिरिक्त खिंचाव) संतुलित होता है। इसका अर्थ यह है कि JWST और पृथ्वी, सूर्य कि परिक्रमा साथ-साथ करेंगे। सूर्य और पृथ्वी का संयुक्त गुरुत्वाकर्षण बल अंतरिक्ष यान को इस बिंदु पर थाम कर रखेगा। सैद्धांतिक रूप से अंतरिक्ष यान को L2 से होकर गुजरने वाली कक्षा में परिक्रमा करने के लिए किसी अतिरिक्त धक्के कि जरुरत नहीं होगी, यह स्वतः ही पृथ्वी के साथ-साथ सूर्य की परिक्रमा करता रहेगा।

प्रकाशिकी

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हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी से ली गई केरीना निहारिका की दो छवियाँ . दृश्य प्रकाश में ली गई छवि (ऊपर) अवरक्त प्रकाश में ली गई छवि (निचे)

JWST हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी (HST) का सच्चा उत्तराधिकारी इस मायने में है कि यह अपेक्षाकृत अधिक से अधिक तारों को देखने में सक्षम है। तुलना करने के लिए हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी से ली गई केरीना निहारिका की दो छवियों को लेते हैं (बायाँ चित्र)। दोनों एक ही खगोलीय निकाय के चित्र है। उपरी चित्र दृश्य प्रकाश में लिया गया है जबकि निचला चित्र अवरक्त प्रकाश में लिया गया है। दोनों चित्रों को ध्यान से देखने पर स्पष्ट है कि अवरक्त प्रकाश में लिए गए चित्र में अधिक तारों को देखा जा सकता है जबकि उसी स्थान की दृश्य प्रकाश में लिए गए चित्र में अपेक्षाकृत कम तारे नजर आते हैं।

दृश्य वर्णक्रम की नजरें गैस और धूल के पार ठीक से नहीं देख सकती, जिससे छवियाँ धुंधली मिलती है जबकि अवरक्त वर्णक्रम में आसानी से पार देखा जा सकता है। लगभग सभी प्रकार की गैसें और धूल दृश्य प्रकाश में ली गई छवियों को धुंधला कर दृश्य को पूर्ण रूप से गायब कर देती है। इसके विपरीत अवरक्त प्रकाश में गैस और धूल के पीछे स्थित तारों की स्पष्ट छवि मिलती है। अवरक्त खगोलिकी, अंतरिक्ष के धूसर क्षेत्रों (जैसे कि आण्विक बादल) को भेद सकती है, ग्रहों का पता लगा सकती है और यहाँ तक कि ब्रह्माण्ड के शुरूआती दिनों की उच्च लाल-विचलन वस्तुओं को भी देख सकती है।

हमारे नजदीक स्थित तारों (जैसे की सूर्य) की अपेक्षा दूर स्थित अधिकतर तारे नवीकृत या जवान है तथा उनका जन्म समय काल में बिगबैंग के काफी करीब हुआ है। चूँकि ब्रह्माण्ड फ़ैल रहा है इसलिए इन नवीकृत तारों से हम तक पहुँचने वाला प्रकाश, वर्णक्रम में लाल-विचलन प्रदर्शित करता है और यही कारण है कि इन्हें अवरक्त प्रकाश में आसानी से देखा जा सकता है। अवरक्त प्रकाश का उपयोग सक्रिय आकाशगंगाओं के कोर का अवलोकन करने कि लिए भी होता है जो कि प्रायः गैस और धूल से आच्छादित होता है।

नियर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ (NIRSpec)

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नियर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ वेब दूरबीन के चार उपकरणों में से एक है। यह एक बहु-वस्तु स्पेक्ट्रोग्राफ है जो एक साथ 100 से अधिक खगोलीय वस्तुओं का अवलोकन करने में सक्षम है। यह निम्न, मध्यम और उच्च-रेजोल्युसन स्पेक्ट्रोस्कोपिय अवलोकन द्वारा वेब दूरबीन के चार मुख्य विज्ञान उद्देश्यों को आधार प्रदान करेगा। नियर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोग्राफ यूरोपीय उद्योग द्वारा ईएसए के विनिर्देशों के लिए निर्मित हुआ है तथा इएसटीइसी, नीदरलैंड में ईएसए जेडब्ल्युएसटी परियोजना द्वारा प्रबंधित है।[3]

मिड इन्फ्रारेड उपकरण (MIRI)

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मिड इन्फ्रारेड उपकरण वेब दूरबीन के चार उपकरणों में से एक है। यह उपकरण मध्यम और निम्न-रेजोल्युसन स्पेक्ट्रोस्कोपी की सीधी तस्वीरें तथा कोरोनाग्राफिक तस्वीरें उपलब्ध कराएगा। इसके द्वारा वेब दूरबीन के सभी प्राथमिक विज्ञान उद्देश्यों में महत्वपूर्ण योगदान की उम्मीद है। मिड इन्फ्रारेड उपकरण यूरोप और अमरीका के बीच एक साझेदारी के रूप में विकसित किया गया था - इनमें मुख्य भागीदार राष्ट्रीय वित्त पोषित यूरोपीय संस्थान (मीरी यूरोपीय कंसोर्टियम) का एक संघ, जेट प्रोपल्सन प्रयोगशाला (जेपीएल), ईएसए तथा नासा का गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर (जीएसएफसी) है।[3]

मुख्य दर्पण

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वेब दूरबीन का मुख्य दर्पण बेरिलियम धातु पर सोने की कोटिंग कर बनाया गया है। यह एक केंद्र के चारों ओर दो वलयों में व्यवस्थित षटकोण आकार के १८ खंडो से मिलकर बना एक दर्पण है। प्रत्येक खंड का व्यास (आमने सामने की दो भुजाओं के बीच की दूरी) १.३ मीटर और वजन लगभग २० किलो (४६ पौंड) है।

 
हबल के प्राथमिक दर्पण के साथ तुलना
 
निर्माण के दौरान मुख्य दर्पण का परीक्षण किया जा रहा है

जेम्स वेब टेलिस्कोप के विज्ञान लक्ष्यों में से एक है समय धारा में पीछें की ओर जाकर उस समय को देखना जब आकाशगंगाएं युवावस्था में थी। वेब यह कार्य सुदूर की उन आकाशगंगाओं के निरीक्षण से करेगा जो हमसे १३ अरब प्रकाशवर्ष दूर है। सूदूर स्थित ऐसी बेजान वस्तुओं को देखने के लिए वेब को एक बड़े दर्पण की जरुरत पडेगी। दर्पण का क्षेत्रफल जितना अधिक होगा वह उतना ही अधिक प्रकाश इकट्ठा कर सकेगा और निरीक्षित वस्तु उतनी ही अधिक बारीकी से देखी जा सकेगी। यदि हबल टेलिस्कोप के २.४ मीटर दर्पण का आकार बढ़ाकर वेब की आवश्यकताओं के अनुकूल बना दिया जाए तो इतने बड़े और वजनी दर्पण को बनाना और उसको अंतरिक्ष में स्थापित करना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। इससे पहले अंतरिक्ष में इतना बड़ा दर्पण कभी नहीं ले जाया गया है। इस समस्या के हल के लिए वेब दल ने एक नया रास्ता खोजा। उन्होंने एक ऐसा दर्पण बनाने का निश्चय किया जो वजन में हल्का हो और बहुत मजबूत भी हो। आखिरकार उन्होंने दर्पण को बेरिलियम धातु से बनाने का निर्णय लिया।

बेरिलियम एक हल्की धातु है (परमाणु चिन्ह Be) और यह अपने वजन के हिसाब से बहुत मजबूत होती है। इसमे ऐसे अनेक गुण है जो वेब के मुख्य दर्पण की आवश्यकताओं को पूरा करता है। बेरिलियम विभिन्न तापमानों में भी अपने आकार को स्थिर बनाएं रखने में सक्षम है। साथ ही यह विद्युत् और ताप का अच्छा सुचालक है और इसमे चुम्बकीय गुण भी नहीं पाया जाता है।

इतने बड़े दर्पण को प्रक्षेपण यान के अंदर रखना भी अपने आप में एक समस्या है। इतना बड़ा दर्पण यान में समा नहीं सकता और प्रकाशिकी इसके आकार को छोटा करने की इजाजत नहीं देता | इस समस्या के हल के लिए वेब दल ने दर्पण को ऐसे कई खण्डों में बनाने का निर्णय लिया जिसे समेटकर आकार इतना छोटा किया जा सके की यह यान में आसानी से समा जाए | वेब दूरदर्शी को उसकी कक्षा में स्थापित करने के बाद दर्पण को खोल दिया जाएगा जिससे यह अपना पूर्व आकार प्राप्त कर लेगा।

साझेदारी

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नासा, ईएसए और सीएसए 1996 से दूरबीन के लिए सहयोगी है। निर्माण और प्रक्षेपण में ईएसए की भागीदारी का 2003 में उनके सदस्यों द्वारा अनुमोदन किया गया तथा 2007 में ईएसए और नासा के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। पूर्ण भागीदारी, प्रतिनिधित्व और अपने खगोलविदों के लिए वेधशाला के प्रयोग के बदले में, ईएसए एनआईआर स्पेक उपकरण, एमआईआरआई उपकरण की ऑप्टिकल बेंच असेंबली, एरियन-5 ईसीए लांचर और अभियान के समर्थन के लिए मानव शक्ति प्रदान कर रहा है।[4][5] सीएसए, फाइन गाइडेंस सेंसर और इंफ्रारेड इमेजर स्लीटलेस स्पेक्ट्रोग्राफ[6] के साथ साथ अभियान के समर्थन के लिए मानव शक्ति प्रदान करेगा।

साझेदार देश

दृश्यावली

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शीर्ष का तीन चौथाई हिस्सा
तली (सूर्य-सम्मुख हिस्सा)
  1. "NASA JWST FAQ "Who are the partners in the Webb project?"". NASA. मूल से 13 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 नवम्बर 2011.
  2. "The James Webb Space Telescope". NASA. मूल से 10 मार्च 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 मार्च 2012.
  3. इएसए वेबसाइट Archived 2014-07-29 at the वेबैक मशीन के सौजन्य से
  4. ESA Media Relations Service (9 जून 2004). European agreement on James Webb Space Telescope’s Mid-Infrared Instrument (MIRI) signed. प्रेस रिलीज़. http://www.esa.int/esaSC/Pr_10_2004_s_en.html. अभिगमन तिथि: 6 मई 2009. 
  5. "ESA Science & Technology: Europe's Contributions to the JWST Mission". मूल से 18 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 सितंबर 2013.
  6. "Canadian Space Agency "Eyes" Hubble's Successor: Canada Delivers its Contribution to the World's Most Powerful Space Telescope – Canadian Space Agency". मूल से 12 अप्रैल 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 सितंबर 2013.

बाहरी कड़ियाँ

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