ज्वारीय शक्ति या ज्वारीय ऊर्जा जल विद्युत का एक रूप है जो ज्वार से प्राप्त ऊर्जा को मुख्य रूप से बिजली के उपयोगी रूपों में परिवर्तित करती है। समुद्र में आने वाले ज्वार-भाटा की उर्जा को उपयुक्त टर्बाइन लगाकर विद्युत शक्ति में बदल दिया जाता है। इसमें दोनो अवस्थाओं में विद्युत शक्ति पैदा होती है - जब पानी ऊपर चढ़ता है तब भी और जब पानी उतरने लगता है तब भी। इसे ही ज्वारीय शक्ति (tidal power) कहते हैं। यह एक अक्षय उर्जा का स्रोत है।

सेंट मोलो का ज्वार-केन्द्र

ज्वारीय शक्ति का अभी भी बहुत कम उपयोग आरम्भ हो पाया है किन्तु इसमें भविष्य के लिये अपार उर्जा प्रदान करने की क्षमता निहित है। ज्वार-भाटा के आने और जाने का समय काफी सीमा तक पहले से ही ज्ञात होता है जबकि इसके विपरीत पवन उर्जा और सौर उर्जा का पूर्वानुमान अपेक्षाकृत कठिन कार्य है।

ज्वार के उठने और गिरने से शक्ति उत्पन्न होने की ओर अनेक वैज्ञानिकों का ध्यान समय समय पर आकर्षित हुआ है और उसको काम में लाने की अनेक योजनाएँ समय समय पर बनी हैं। पर जो योजना आज सफल समझी जाती है, वह ज्वार बेसिनों का निर्माण है। ये बेसिन बाँध बाँधकर या बराज बनाकर समुद्रतटों के आसपास बनाए जाते हैं। ज्वार आने पर इन बेसिनों को पानी से भर लिया जाता है, फिर इन बेसिनों से पानी निकालकर जल टरबाइन चलाए जाते और शक्ति उत्पन्न की जाती है। अब तक जो योजनाएँ बनी हैं वे तीन प्रकार की है। एक प्रकार की योजना में केवल एक जलबेसिन रहता है। बाँध बाँधकर इसे समुद्र से पृथक् करते हैं। बेसिन और समुद्र के बीच टरबाइन स्थापित रहता है। ज्वार उठने पर बेसिन को पानी से भर लिया जाता है और जब ज्वार आधा गिरता है तब टरबाइन के जलद्वार का खोलकर उससे टरबाइन का संचालन कर शक्ति उत्पन्न करते हैं।

एक अन्य बेसिन में ज्वार के उठने और गिरने दोनों समय टरबाइन कार्य करता है। जल नालियों द्वारा बेसिन भरा जाता है और दूसरी नालियों से टरबाइन में से होकर खाली किया जाता है।

दूसरे प्रकार की योजना में प्राय: एक ही क्षेत्रफल के दो बेसिन रहते हैं। एक बेसिन ऊँचे तल पर, दूसरा बेसिन नीचे तल पर होता है। दोनों बेसिनों के बीच टरबाइन स्थापित रहता है। उपयुक्त नालियों से दोनों बेसिन समुद्र से मिले रहते हैं तथा सक्रिय और अविरत रूप से चलते रहते हैं। ऊँचे तलवाले बेसिन को उपयुक्त तूम फाटक (Sluice gates) से भरते और नीचे तलवाले बेसिन के पानी को समुद्र में गिरा देते हैं। तीसरे प्रकार की योजना में भी दो ही बेसिन रहते हैं। यहाँ समुद्र से बेसिन को अलग करनेवाली दीवार में टरबाइन लगी रहती है। एक बेसिन से पानी टरबाइन में आता और दूसरे बेसिन से समुद्र में गिरता है। दोनों बेसिनों के शीर्ष स्थायी रखे जाते हैं। एक बेसिन से पानी टरबाइन में आता और दूसरे बेसिन से समुद्र में गिरता है। दोनों बेसिनों के शीर्ष स्थायी रखे जाते हैं।

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