माता ज्वाला देवी शक्ति के 51 शक्तिपीठों मे से एक है यह धूमा देवी का स्थान बताया जाता है। चिंतपूर्णी, नैना देवी, शाकम्भरी शक्तिपीठ, विंध्यवासिनी शक्तिपीठ और वैष्णो देवी की ही भांति यह एक सिद्ध स्थान है । यहाँ पर भगवती सती की महाजिह्वा भगवान विष्णु जी के सुदर्शन चक्र से कट कर गिरी थी । मंदिर मे भगवती के दर्शन नौ ज्योति रूपों मे होते हैं जिनके नाम क्रमशः महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, हिंगलाज भवानी, विंध्यवासिनी,अन्नपूर्णा, चण्डी देवी, अंजना देवी और अम्बिका देवी है । उत्तर भारत की प्रसिद्ध नौ देवियों के दर्शन के दौरान चौथा दर्शन माँ ज्वाला देवी का ही होता है । आदि शंकराचार्य लिखित अष्टादश महाशक्तिपीठ स्तोत्र के अन्तर्गत है । स्तोत्र पर ज्वाला देवी को वैष्णवी बोला है ।

ज्वाला देवी मंदिर
ज्वालामुखी मंदिर
ज्वाला देवी मन्दिर
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताज्वाला जी
त्यौहारनवरात्र
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिज्वाला जी हिमाचल प्रदेश
राज्यहिमाचल प्रदेश
देशभारत
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वास्तु विवरण
निर्माताभूमिचंद राजा
निर्माण पूर्णसतयुग
ज्वाला देवी शक्तिपीठ
ज्वाला जी
town
Jwalamukhi Devi Temple
ज्वाला देवी शक्तिपीठ is located in हिमाचल प्रदेश
ज्वाला देवी शक्तिपीठ
ज्वाला देवी शक्तिपीठ
Location in Himachal Pradesh, India
ज्वाला देवी शक्तिपीठ is located in भारत
ज्वाला देवी शक्तिपीठ
ज्वाला देवी शक्तिपीठ
ज्वाला देवी शक्तिपीठ (भारत)
निर्देशांक: 31°52′32″N 76°19′28″E / 31.8756100°N 76.3243500°E / 31.8756100; 76.3243500निर्देशांक: 31°52′32″N 76°19′28″E / 31.8756100°N 76.3243500°E / 31.8756100; 76.3243500
CountryIndia
StateHimachal Pradesh
DistrictKangra
ऊँचाई557.66 मी (1,829.59 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल5,361
Languages
 • OfficialHindi
समय मण्डलIST (यूटीसी+5:30)
वाहन पंजीकरणHP 83

पौराणिक कथा संपादित करें

प्राचीन किंवदंतियों में ऐसे समय की बात आती है जब राक्षस हिमालय के पहाड़ों पर प्रभुत्व जमाते थे और देवताओं को परेशान करते थे। भगवान विष्णु के नेतृत्व में, देवताओं ने उन्हें नष्ट करने का फैसला किया। उन्होंने अपनी ताकत पर ध्यान केंद्रित किया और विशाल लपटें जमीन से उठ गईं। उस आग से एक छोटी बच्ची ने जन्म लिया। उसे आदिशक्ति-प्रथम 'शक्ति' माना जाता है।

सती के रूप में जानी जाने वाली, वह प्रजापति दक्ष के घर में पली-बढ़ी और बाद में, भगवान शिव की पत्नी बन गई। एक बार उसके पिता ने भगवान शिव का अपमान किया सती को यह स्वीकार ना होने के कारण, उसने खुद को हवन कुंड मे भस्म कर डाला। जब भगवान शिव ने अपनी पत्नी की मृत्यु के बारे में सुना तो उनके गुस्से का कोई ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने सती के शरीर को पकड़कर तीनों लोकों मे भ्रमण करना शुरू किया। अन्य देवता शिव के क्रोध के आगे कांप उठे और भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने सती के शरीर को चक्र के वार से खंडित कर दिया। जिन स्थानों पर ये टुकड़े गिरे, उन स्थानों पर इक्यावन पवित्र 'शक्तिपीठ' अस्तित्व में आए। "सती की जीभ ज्वालाजी (610 मीटर) पर गिरी थी और देवी छोटी लपटों के रूप में प्रकट हुई। ऐसा कहा जाता है कि सदियों पहले, एक चरवाहे ने देखा कि अमुक पर्वत से ज्वाला निकल रही है और उसके बारे मे राजा भूमिचंद को बताया। राजा को इस बात की जानकारी थी कि इस क्षेत्र में सती की जीभ गिरी थी। राजा ने वहाँ भगवती का मंदिर बनवा दिया

ज्वालामुखी युगों से एक तीर्थस्थल है। मुगल बादशाह अकबर ने एक बार आग की लपटों को एक लोहे की चादर से ढँकने का प्रयास किया और यहाँ तक कि उन्हें पानी से भी बुझाना चाहा। लेकिन ज्वाला की लपटों ने इन सभी प्रयासों को विफल कर दिया। तब अकबर ने तीर्थस्थल पर एक स्वर्ण छत्र भेंट किया और क्षमा याचना की। हालाँकि, देवी की सामने अभिमान भरे वचन बोलने के कारण देवी ने सोने के छत्र को एक विचित्र धातु में तब्दील कर दिया, जो अभी भी अज्ञात है। इस घटना के बाद देवी में उनका विश्वास और अधिक मजबूत हुआ। आध्यात्मिक शांति के लिए हजारों तीर्थयात्री साल भर तीर्थ यात्रा पर जाते हैं।

ज्वाला माता की प्राचीन मंदिर राजस्थान राज्य के अलवर जिले में कलसारा गांव में है जो बताया जाता है की यह मंदिर भी ज्वाला माता की शक्ति पीठ के रूप में है और यहां इस्थापित मूर्ति प्राचीन समय की ही है इस गांव के जाट परिवार के डोकराका परिवार की यह कुलमाता है यह परिवार आज भी माता की पूजाकर्ता है

यह सूचना भी इसी परिवार के सुनिल चौधरी (डोकराका परिवार का सदस्य) के द्वारा दी गई है