झनक झनक पायल बाजे (1955 फ़िल्म)
झनक झनक पायल बाजे १९५५ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। फ़िल्म का निर्देशन वी शांताराम ने किया है और निर्माता वी शांताराम का ही अपना निर्माता घर राजकमल कलामंदिर है। इस फ़िल्म को सन् १९५६ में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
झनक झनक पायल बाजे | |
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झनक झनक पायल बाजे का पोस्टर | |
निर्देशक | वी शांताराम |
लेखक | देवन शरार (डायलॉग) |
कहानी | देवन शरार |
निर्माता | राजकमल कलामंदिर |
अभिनेता |
संध्या, मदन पुरी, भगवान |
छायाकार | जी बालाकृष्ण |
संपादक | चिंतामणी बोरकर |
संगीतकार | वसन्त देसाई |
प्रदर्शन तिथि |
१९५५ |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
संक्षेप
संपादित करेंशास्त्रीय नृत्य के गुरु मंगल किसी सभा में नृत्यांगना नीला (संध्या) का नृत्य देखते हैं और फिर उनका पुत्र व शिष्य गिरधर (गोपी कृष्ण) नृत्य करने के लिए यह कह कर मैदान में उतरता है कि जो अभी देखा गया वह लटक मटक था नृत्य नहीं। नीला गिरधर के नृत्य से इतनी मोहित हो जाती है कि गुरु जी से अनुरोध करती है कि उसे अपनी शिष्या बना लें। पहले इन्कार करने के बाद अन्त में गुरु जी मान जाते हैं लेकिन नीला के आगे दो शर्तें रखते हैं। पहली शर्त यह कि वह अपना समस्त जीवन कला पर न्योछावर कर देगी और दूसरी यह कि अभी शीघ्र आने वाली एक नृत्य प्रतियोगिता में ताण्डव वाले प्रसंग में गिरधर के साथ युगल नृत्य करना होगा। नीला दोनों शर्तें मान लेती है और गिरधर और नीला प्रतियोगिता की तैयारी के लिये अभ्यास में लग जाते हैं। धीरे-धीरे दोनों को आपस में प्रेम होने लगता है। मणिलाल (मदन पुरी), जो कि एक अमीर आदमी है और नीला से शादी करने का मनसूबा बनाये हुये है, गुरु जी को समझाता है कि दोनों में आपस में प्रेम होने लगा है लेकिन गुरु जी उसकी बात की अनसुनी कर देते हैं।
जब गुरु जी कुछ समय के लिये जाते हैं, तो दोनों एक दूसरे के प्रेम प्रवाह में खो जाते हैं और अभ्यास करने के बजाय टहल कर अपना समय व्यतीत करते हैं। गुरु जी जब वापस लौटकर सारा नज़ारा देखते हैं तो क्रोधित होकर अपने पुत्र से नाता तोड़ने की बात करते हैं क्योंकि उनका मानना होता है कि अब किसी भी हाल में गिरधर नृत्य प्रतियोगिता नहीं जीत पायेगा। अपने प्रेमी का भविष्य डूबता हुआ देख नीला यह नाटक रचती है कि वह वास्तव में मणिलाल से प्रेम करती है। आहत गिरधर वापस लौट जाता है और अपने नृत्य अभ्यास में अपने को झोंक देता है। नीला नदी में डूबकर आत्महत्या करने की कोशिश करती है लेकिन एक साधू द्वारा बचा ली जाती है जो उसे अपने साथ ले जाते हैं और नीला कृष्ण भक्ति में लीन हो जाती है।
एक दिन गिरधर नीला के पास आता है और उससे अपने प्यार का इज़हार करता है लेकिन नीला उसको पहचानने से भी इन्कार कर देती है। क्रोधित होकर गिरधर अपने पिता के साथ वापस चला जाता है। प्रतियोगिता वाले दिन वह साधू नीला को उस मंदिर में ले जाते हैं जहाँ प्रतियोगिता होनी है। मणिलाल ने गिरधर को नीचा दिखाने के उद्देश्य से गिरधर की नयी सहनर्तकी को प्रतियोगिता में हिस्सा न लेने के लिए पहले ही मना लिया था। नीला उस नर्तकी की जगह ले लेती है और नृत्य के दौरान ही गिरधर को यह समझाने की कोशिश करती है कि उसने तो गिरधर के भविष्य की ख़ातिर यह सब स्वांग रचा था। गिरधर और नीला मिलकर एक अद्भुत युगल नृत्य प्रस्तुत करते हैं जिसकी वजह से भारत नटराजन का ख़िताब गिरधर को मिल जाता है। नीला मंच से बाहर जाने लगती है तो गुरु जी उससे अपनी गुरु दक्षिणा मांगते हैं। उसके राज़ी होने पर गुरु जी उसको मंच पर गिरधर के पास ले कर आते हैं और दोनों के घुंघरू आपस में बांध कर दोनों के विवाह की स्वीकृती प्रदान करते हैं।
मुख्य कलाकार
संपादित करेंसंगीत
संपादित करेंइस फ़िल्म में संगीत वसन्त देसाई का था।
गीत | गायक/गायिका | गीतकार | |
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१ | झनक झनक पायल बाजे | उस्ताद अमीर ख़ान | हसरत जयपुरी |
२ | छियो राम छियो | मोहम्मद रफ़ी | हसरत जयपुरी |
३ | हमें गोपी ग्वाला कहते हैं | लता मंगेशकर, मन्ना डे | देवन शरार |
४ | जो तुम तोड़ो पिया | लता मंगेशकर | मीराबाई |
५ | कैसी है ये मोहब्बत की सज़ा | लता मंगेशकर | देवन शरार |
६ | कृष्ना जो तुम तोड़ो पिया | लता मंगेशकर | मीराबाई |
७ | मेरे ऐ दिल बता | लता मंगेशकर | हसरत जयपुरी |
८ | नैन सो नैन नाही मिलाओ | लता मंगेशकर, हेमन्त कुमार | हेमन्त कुमार |
९ | रुत बसन्त आयी बन उपवन | हसरत जयपुरी | |
१० | संइया जाओ जाओ | लता मंगेशकर | हसरत जयपुरी |
११ | सीता बन को चली | लता मंगेशकर, मन्ना डे | सरस्वती कुमार दीपक |
१२ | सुनो सुनो सुनो जी | लता मंगेशकर | हसरत जयपुरी |
रोचक तथ्य
संपादित करें- भारत में रंग पद्धति से बनाई गयी पहली फ़िल्मों में से एक है।
परिणाम
संपादित करेंबॉक्स ऑफ़िस
संपादित करेंयह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस में सुपर हिट की श्रेणी में आती है।
समीक्षाएँ
संपादित करेंनामांकन और पुरस्कार
संपादित करेंइस फ़िल्म को सन् १९५६ में चार श्रेणियों में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार - वी शांताराम
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन पुरस्कार - कानु देसाई
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ ध्वनि परिकल्पना पुरस्कार - ए के परमार