टुंडीखेल (नेपाली: टुंडीखेल) (नेपाल भाषा: तिनिख्या) नेपाल की राजधानी काठमांडू के मध्य में स्थित घास से ढका एक बड़ा मैदान है और यह काठमांडू के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है। यह क्षेत्र आकार में आयताकार है और इसका अभिविन्यास उत्तर-दक्षिण है। यह उत्तर में रत्न पार्क और दक्षिण में 1941 के शहीदों को समर्पित स्मारक शहीद गेट के मध्य स्थित है। इसका इतिहास मल्ल राजवंश के समय के दौरान अर्थात कम से कम 18वीं शताब्दी के प्रारंभ का है। यह एक सैन्य परिशिक्षण मैदान है। साथ ही यहाँ घोड़ों की दौड़ और धार्मिक उत्सव भी मनाये जाते हैं। सार्वजनिक पार्क और पशु चरागाह के रूप में भी इसका प्रयोग काठमांडू में होता है। टुंडीखेल को काठमांडू के फेफड़े के रूप में भी वर्णित किया जाता है क्योंकि यहाँ के पेड़-पौधों के जरिए सारे शहर में निरंतर ताजी हवा का आदान-प्रदान चलता रहता है। शहर के लोग हवा और व्यायाम का आनंद लेने के लिए सुबह और शाम टुंडीखेल में आते हैं।[1]

धरहरा से टुंडीखेल

प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, गोरखा सैनिकों को दूर युद्ध के मैदानों में भेजे जाने से पहले यहाँ प्रशिक्षण दिया जाता था। मैदान के बीच में एक बड़ा सा पेड़ खड़ा था, जो इस मैदान का प्रतीक था परन्तु 1960 के दशक के मध्य में उस पेड़ को हटा दिया गया। 1960 में एक छोटा विमान भी इस घास के मैदान पर उतरा था। टुंडीखेल का ज़िक्र नेपाल के लोककथाओं में भी हुआ है। कहा जाता है कि पौराणिक काल में देवताओं और राक्षसों का यहाँ आगमन-प्रस्थान होता रहता था। यहाँ कई धार्मिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं, और कई पवित्र मंदिर परिधि पर स्थित हैं। 3-5 कि॰मी॰ की लंबाई और लगभग 300 मीटर की चौड़ाई के साथ यह कभी एशिया के सबसे बड़े परेड मैदानों में से एक के रूप में प्रतिष्ठित था। आज विभिन्न बुनियादी ढांचों के निर्माण के लिए चारों तरफ से अतिक्रमण ने इसे अपने मूल आकार से आधे से भी कम कर दिया है।[2][3][4][5]

त्योहार संपादित करें

घोड़ा जात्रा टुंडीखेल में आयोजित होने वाले शानदार त्योहारों में से एक है। यह मार्च महीने के आसपास आयोजित होता है। इसके मुख्य कार्यक्रम में घुड़दौड़ शामिल है। इस त्योहार के पीछे एक मान्यता जो सदियों से चली आ रही है कि घोड़ों को एक निवासी दानव की आत्मा को जमीन में रौंदने के लिए पूरे मैदान में सरपट दौड़ाया जाता है।[6][7]

पाहां चह्रे उत्सव का आयोजन भी यहाँ होता है। इस संगीत कार्यक्रम के दौरान देवी-देवताओं के बीच जलती हुई मशालों का आदान-प्रदान किया जाता है। समारोह अगले दिन दोपहर में फिर आसन, काठमांडू में दोहराया जाता है।[8]

टुंडीखेल वह स्थान भी है जहां काठमांडू के लोग दीपूजा मनाते हैं, जिसे दिगु पूजा के रूप में भी जाना जाता है।[9]

मान्यताओं में संपादित करें

यहाँ के लोगों के अनुसार आदमखोर गुरुमापा को शांत करके पास के जंगल से काठमांडू लाया गया, जहाँ उनका पूर्वनिवाश था। लेकिन कुछ समय बाद उसने शहर के लोगों को आतंकित करना और बच्चों को ले जाना शुरू कर दिया। लोग अंततः उसे शहर से बाहर जाने और टुंडीखेल में रहने के लिए एक वार्षिक दावत के वादे के साथ मनाने में सफल रहे। इसलिए हर साल मार्च की पूर्णिमा की रात को उनके भोज के लिए उबले हुए चावल और भैंस के मांस का ढेर खुले मैदान में छोड़ दिया जाता है।[10]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Sharma, Nirjana (23 May 2011). "Tundikhel the Capital's lungs". The Kathmandu Post. Kathmandu. अभिगमन तिथि 27 January 2014.[मृत कड़ियाँ]
  2. Proksch, Andreas; एवं अन्य (1995). Images of a century: the changing townscapes of the Kathmandu Valley. Deutsche Gesellschaft für Technische Zusammenarbeit. पृ॰ 46. अभिगमन तिथि 5 December 2013.
  3. Rai, Hemlata (16 August 2002). "Shrinking Tundikhel". Nepali Times. अभिगमन तिथि 5 December 2013.
  4. Sengupta, Urmi (24 July 2017). "Diminishing public space: Not just Tundikhel, every inch of public space that is at risk of disappearing deserves reinvention". The Kathmandu Post. Kathmandu. Retrieved 24 July 2017.
  5. Sengupta, Urmi (2017), Ruptured space and spatial estrangement: (Un)making of public space in Kathmandu, Urban Studies
  6. Proksch, Andreas; एवं अन्य (1995). Images of a century: the changing townscapes of the Kathmandu Valley. Deutsche Gesellschaft für Technische Zusammenarbeit. पृ॰ 40. अभिगमन तिथि 5 February 2014.
  7. "Ghode Jatra to 'trample the demon's spirit' being marked". The Himalayan Times. 10 April 2013. मूल से 16 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2013.
  8. Sāyami, Dhūsvānm (1972). The Lotus & the Flame: An Account on Nepalese Culture. Department of Information, Ministry of Communication, H.M.G., Nepal. पृ॰ 35.
  9. Lewis, Todd T. (2000). Popular Buddhist Texts from Nepal (PDF). Albany: State University of New York Press. पृ॰ 115. मूल (PDF) से 22 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 February 2014.
  10. Bisht, Kapil (November 2011). "A walk into the heritage". ECS Nepal. मूल से 11 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 December 2013.