टूट-फूट (वियर और टियर) ऐसी क्षति को कहते हैं, जो किसी वस्तु के सामान्य तौर पर [1]घिसने या जीर्ण होने या [2]पुराने होने के परिणामस्वरूप स्वाभाविक और अपरिहार्य रूप से होती है। इसका प्रयोग कानूनी संदर्भ में विशेष रूप से विनिर्माताओं द्वारा वारंटी अनुबंधों में किया जाता है। इसके तहत यह निर्धारित किया जाता है कि टूट-फूट (वियर और टियर) से होने वाली क्षति को वारंटी में कवर नहीं किया जायेगा।

यह उपेक्षित जूता टूट-फूट और मौसम के असामान्य प्रभाव के कारण खराब हो गया है।

टूट-फूट (वियर और टियर) मूल्यह्रास का ऐसा प्रकार है, जो तब होना माना जाता है जब किसी वस्तु का उचित देखभाल व रखरखाव के साथ पूर्णत: उपयोग कर लिया जाता है। उदाहरण के लिए, बारंबार आघातों से हथौड़े के अग्र-भाग पर प्रभाव पड़ सकता है। अभिकल्पित कार्य करने हेतु हथौड़े के सामान्य प्रयोग में इस प्रभाव को रोकना असंभव है और यदि इसे रोकने का कोई भी प्रयास किया जाता है तो इसकी कार्यक्षमता बाधित होगी। साथ ही, यह अपेक्षा भी की जाती है कि हथौड़े का सामान्य उपयोग करने से यह अपने यथोचित जीवनकाल के दौरान इतना नही टूटेगा कि इसकी मरम्मत न की जा सके।

टूट-फूट (वियर और टियर) की परिघटना उष्मागतिकी के दूसरे नियम को दर्शाती है, जिसके तहत वस्तुएँ समय के साथ अपने मूल स्वरूप और कार्य से अलग हो जाती है जब तक कि उन्हें बनाए रखने के लिए किसी बाह्य बल से प्राप्त ऊर्जा का उपयोग नहीं किया जाता है। यदि किसी वस्तु को मरम्मत करके ठीक करना संभव नही है तो उसे उपभोज्य माना जाता है। बीयरिंग और ओ-रिंग जैसे पार्ट्स को मशीन का अंदर घिसने के लिए निर्माण किया जाता है और समय-समय पर इन्हें नये पार्ट्स से बदलना आवश्यक होता है; पेपर, कार्डबोर्ड, वस्त्र और प्रोड्क्ट पैकेजिंग जैसी उपभोज्य सामग्रियों का उनके प्रयोजित उपयोग व एक निर्धारित जीवनकाल के साथ निर्माण किया जाता है। उदाहरण के लिए, किराना दुकानदार ग्राहकों को किराने का सामान ले जाने के लिए कागज या प्लास्टिक के थैला प्रदान करता है, लेकिन यह माना जाता है कि थैले पर टूट-फूट (वियर और टियर) का प्रभाव पड़ने से पहले ही इसका जीवनकाल समाप्त हो जायेगा।

टिकाऊ वस्तुएँ (जैसे ऑटोमोबाइल, भारी मशीनरी, मेनफ्रेम कंप्यूटर, वाद्य-यंत्र, पिस्तौल, वॉटर हीटर) ऐसे घिसने वाले पुर्ज़ों के साथ विनिर्मित किए जाते हैं जिन्हें आम तौर पर नये पुर्ज़ों से बदलना पड़ता है। किसी वस्तु का टिकाऊपन निर्धारित करने का एक तरीका यह है कि क्या सेवारत तकनीशियन या मरम्मत करने वाला विशिष्ट रूप से उसकी मरम्मत करने का प्रयास करेगा।