टॉडगढ
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अजमेर जिले के अंन्तिम छोर में अरावली पर्वत श्रृंखला में मन मोहक दर्शनीय पर्यटक स्थल टॉडगढ़ बसा हुआ है जिसके चारो और एवं आस पास सुगंन्धित मनोहारी हरियाली समेटे हुए पहाडिया एवं वन अभ्यारण्य है। क्षेत्र का क्षेत्रफल 7902 हैक्टेयर है जिनमें वन क्षेत्र 3534 हैक्टेयर, पहाडिया 2153 हैक्टेयर, काश्त योग्य 640 हैक्टेयर है। टॉडगढ़ को राजस्थान का मिनी माउण्ट आबू भी कहते हैं, क्यों कि यहां की जलवायु माउण्ट आबू से काफी मिलती है व माउण्ट आबू से मात्र 5 मीटर समुद्र तल से नीचा हैं। टॉडगढ़ का पुराना नाम बरसा वाडा था। जिसे बरसा नाम के गुर्जर जाति के व्यक्ति ने बसाया था। बरसा गुर्जर ने तहसील भवन के पीछे देव नारायण मंदिर की स्थापना की जो आज भी स्थित है।
यहां आस पास के लोग बहादुर थें एवं अंग्रेजी शासन काल में किसी के वश में नही आ रहे थे, तब ई.स. 1821 में नसीराबाद छावनी से कर्नल जेम्स टॉड पोलिटिकल ऐजेन्ट ( अंग्रेज सरकार ) हाथियो पर तोपे लाद कर इन लोगो को नियंत्रण करने हेतु आये। यह किसी भी राजा या राणा के अधीन नही रहा किन्तु मेवाड़ के महाराणा भीम सिह ने इसका नाम कर्नल टॉड के नाम पर टॉडगढ़ रख दिया तथा भीम जो वर्तमान में राजसमंद जिले में हैं टॉडगढ़ से 14किमी दूर उत्तर पूर्व में स्थित है, का पुराना नाम मडला था जिसका नाम भीम रख दिया। 1857 ई.स. में भारत की आजादी के लिये हुए आंदोलन के दौरान ईग्लेण्ड स्थित ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सेना में कार्यरत सैनिको को धर्म परिवर्तित करने एवं ईसाई बनाने हेतु इग्लेण्ड से ईसाई पादरियो का एक दल जिसमें डॉक्टर, नर्स, आदि थें ये दल जल मार्ग से बम्बई उतरकर माउण्ट आबू होता हुआ ब्यावर तथा टॉडगढ़ आया। धर्म परिवर्तन के विरोध में टॉडगढ़ तथा ब्यावर में भारी विरोध हुआ जिससे दल विभाजित होकर ब्यावर नसीराबाद, तथा टॉडगढ़ में अलग अलग विभक्त हो गया।
टॉडगढ़ में इस दल ने विलियम रॉब नाम ईसाई पादरी के नेतृत्व में ईसाई धर्म प्रचार करना प्रारम्भ किया। शाम सुबह नजदीक की बस्तियो में धर्म परिवर्तन के लिये जाते तथा दिन को चर्च एवं पादरी हाउस/टॉड बंगला ( प्रज्ञा शिखर ) का निर्माण कार्य करवाया। सन् 1863 में राजस्थान का दूसरा चर्च ग्राम टॉडगढ़ की पहाडी पर गिरजा घर बनाया और दक्षिण की और स्थित दूसरी पहाडी पर अपने रहने के लिये बंगला बनाया जिसमें गिरजा घर के लिये राज्य सरकार द्वारा राशि स्वीकृत की है। पश्चिम में पाली जिला की सीमा प्रारम्भ, समाप्त पूर्व उत्तर व दक्षिण में राजसमंद जिला समाप्ति के छोर से आच्छादित पहाडिया प्राकृतिक दृश्य सब सुन्दरता अपने आप में समेटे हुए है।
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान टॉडगढ़ क्षेत्र से 2600 लोग (सैनिक) लडने के लिये गये उनमें से 124 लागे (सैनिक) शहीद हो गये जिनकी याद में ब्रिटिश शासन द्वारा पेंशनर की पेंशन के सहयोग से एक ईमारत बनवाई “फतेह जंग अजीम” जिसे विक्ट्री मेमोरियल धर्मशाला कहा जाता है। (जिसमें लगे शिलालेख में इसका हवाला है।) प्राचीन स्थिति में कुम्भा की कला व मीरा की भक्ति का केन्द्र मेवाड रण बांकुरे राठौडो का मरूस्थलीय मारवाड। मेवाड और मारवाड के मध्य अरावली की दुर्गम उपत्यकाओं में हरीतिमायुक्त अजमेर- मेरवाडा के संबोधन से प्रख्यात नवसर से दिवेर के बीच अजमेर जिले का शिरोमणी कस्बा हैं।
इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड “राजपूताना का इतिहास” (ANNALS ANTIQUITIAS OF RAJASTHAN) के रचियता की कर्मभूमि बाबा मेषसनाथ व भाउनाथ की तपोभूमि क्रान्तिकारी वीर रावत राजूसिंह चौहान , विजय सिह पथिक, व राव गोपाल सिंह खरवा के गौरव का प्रतीक, पवित्र दुधालेश्वर महादेव की उपासनीय पृश्ष्ठभूमि यही नही बहुत कुछ छुपा रहस्य हैं टॉडगढ़ !
स्थिति
संपादित करेंराजस्थान राज्य के दक्षिण में अरावली पवर्तमाला के मध्य में स्थित हैं। राष्ट्रीय राज मार्ग नं. 8 अजमेर व राजसमंद के मध्य भीम कस्बे से मात्र 14 किमी दूर दक्षित में स्थित है। अगर हम अक्षांश देषान्तर की बात करें तो टॉडगढ़ 25डिग्री 42”0” उत्तरी अक्षांश व 73 डिग्री 58”0” पूर्वी देशांतर पर स्थति है टॉडगढ़ अजमेर जिले का सीमान्त कस्बा है। टॉडगढ़ की समद्र तल से उंचाई 3281 फीट हैं।
धरातलीय स्वरूप
संपादित करेंअरावली पर्वतमाला के मध्य स्थत होने से यहां का धरातल पहाडी है। टॉडगढ़ कस्बा पूरा का पूरा ही पहाडी के चारो और बसा हुआ है इसके कुछ मजरे भी पहाडी पर बसे है तो कई मजरे पहाडियों की तलहटी में बसे हैं पहाड़ी क्षेत्र होने से यहां पर सीढ़ीनुमा खेती की जाती है।
मिट्टीयां
संपादित करेंपहाडी क्षेत्र होने से मोटे तौर पर भूरी मिट्टी पायी जाती हैं मगर पहाडियों की तलहटी में काली मिट्टी पायी जाती हैं कुछ क्षेत्रो में लाल व सफेद मिट्टी भी पायी जाती है। तथा उपजाउ धरातल व मिट्टीयां हैं।
प्रवाह तंत्र
संपादित करेंटॉडगढ़ क्षेत्र में बडी नदी तो नह है मगर इस क्षेत्र में वर्षा का पानी यहां के एनीकट व तालाबो को भरता हुआ राजसमंद क्षेत्र में बरार होता हुआ लसाणी गांव की नदी में जाकर मिल जाता हैं जो आगे चल कर खारी नदी में व खारी बनास में व बनास चम्बल में व चम्बल यमुना में व यमुना गंगा में मिल कर बंगाल की खाडी में मिल जाती है।
वनस्पति
संपादित करेंमानसूनी वर्षा वाला क्षेत्र होने के कारण यहां पर पतझण वन पाये जाते हैं ग्राम टॉडगढ़ का कुल वन क्षेत्र 5 बीघा 10 बिस्वा 10 विस्वांसी हैं जो बहुत ही कम है टॉडगढ़ में 2 भाग हो जाने के कारण अधिकांश भाग मालातो की बैर में चला गया क्यों कि टॉडगढ़ रावली अभ्यारण वाला क्षेत्र मालातो की बैर में चला गया। यहां पर प्रमुख रूप से नीम, बरगद, पीपल, आम, सीताफल, सालर, ढाक, बबूल व इमली आदि वृक्ष अधिक मात्रा में पाये जाते हैं इन वृक्षो की पत्तियां एक वर्ष में एक बार गिर जाने के कारण इन्हें पतझड वन भी कहते हैं।
जलवायु
संपादित करेंपहाडी क्षेत्र होने के कारण यहां का मौसम ठण्डा रहता है गर्मी के दिनो में गर्मी कम पडती हैं। यहां पर सर्दी का तापमान औसत 16 से 18 डिग्रीC व गमी में औसत तापमान 35 से 40 डिग्रीC तक रहता है। यहां पर औसत वार्षिक वर्षा 500मि.मि. के आस पास होती है यहां सर्दी मौसम अक्टूबर से जनवरी तक, गर्मी का मौसम फरवरी से मई तक व वर्षा का मौसम जून से सितम्बर तक रहता हैं कभी कभी शीतकालीन मानसून से भी वर्षा हो जाती हैं जिसे मावट कहते हैं।
जनसंख्या
संपादित करेंजनसंख्या एक महत्वपूर्ण संसाधन है अगर हम टॉडगढ़ क्षेत्र की जनसंख्या की बात करें तो मुख्य कस्बे के लगभग 30 % लोग अन्यत्र अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए बारह पलायन कर चुके है इस लिए यहां कई घर या तो पूर्ण रूप से खाली पडे है यां उनके वृद्व माता पिता यहां पर रहते हैं। अधिकांश लोगेा का पलायन गुजरात, महाराष्ट्र या तमिलनाडु की ओर हैं। ग्राम टॉडगढ़ की 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 2272 हैं तथा ग्राम पंचायत टॉडगढ़ के ग्राम गुजरगम्मा की जनसंख्या 1117, कानातो की बैर की जनसंख्या 704, कानाखेजरी की जनसंख्या 642, लूणेता की जनसंख्या 575, व कैलावास की जनसंख्या 512 हैं।
आर्थिक क्रियाएं (व्यवसाय)
संपादित करेंटॉडगढ़ कस्ते के अलावा अन्य राजस्व ग्रामों के अधिकांश लोगो की प्रमुख व्यवसाय कृषि है। पिछले 10-12 वर्षो में यहां के लोग पुलिस व सैना में अधिक भर्ती होते थे मगर अब दिन प्रतिदिन कमी आती जा रही हैं जिनके पास जमीन नही है वह मजदूरी करते है और जब मजदूरी नही मिलती है तो मजदूरी के लिए जयपुर, जोधपुर व अन्य बडे शहरो मे जाते हैं। टॉडगढ़ कस्बे की बात करें तो यहां अगल अलग जाति व धर्मो के लोग रहते है, और अधिकत अपने जाति के अनुसार परम्परागत व्यवसाय ही करते है जैसे दर्जी अपना पुस्तेनी काम कपडे सिलने का काम करते है और कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने का, यहां के अधिकांश जैन समाज व जिनकी आर्थिक स्थति अच्छी थी वो लोग राज्य के बाहर गुजरात महाराष्ट्र व दक्षिण भारत में अपना व्यवसाय चला रहे है।
टॉडगढ़ ग्राम पंचायत की आर्थिक क्रियाएं व कृषि
संपादित करेंटॉडगढ़ कस्बे के अलावा अन्य राजस्व ग्रामों में अधिकांश लोगो का प्रमुख व्यवसाय कृषि है। यहां पर मुख्य रूप से दो प्रकार की फसले पैदा होती है। खरीफ की फसल में मक्का, ज्वार, मूंगफली, तिल, मूंग, उड़द बोया जाता है। रबी की फसल में गेहूं, जौ, चना, सरसों आदि बोया जाता हैं। यहां पर कृषि पूर्ण रूप से मानसून पर निर्भर हैं। ऊँचाई के कारण कुएं भी बहुत कम है और भूमिगत जल भी कम है। सिंचाई का प्रमुख साधन कुएं है। आजकल इन कुओं पर बिजली की मोटर लगने लगे हैं। कृषि में मशीनों का उपयोग भी बढ रहा हैं। रासायनिक खाद, दवाओं का भी उपयोग बढा हैं।
राजस्व ग्राम | कुल भूमि बीघा में | कुल भूमि वर्ग.मी. | कुल कृषि योग्य भूमि बीघा में | कुल कृषि क्षेत्र वर्ग मीटर में |
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टॉडगढ़ | 2476.10.5 | 3962429.7 | 133.5.15 | 213265.45 |
कैलावास | 1286.07.10 | 2058170.6 | 51.5.5 | 82024.95 |
कानातो की बैर | 1662.13.5 | 2660272.5 | 113.3.5 | 181063.07 |
लूणेता | 1952.07.15 | 3123827.3 | 78.16.0 | 126095.04 |
कानाखेजडी | 1187.18.0 | 1900656.9 | 60.10.0 | 96809.4 |
गुजरगम्मा | 2783.01.15 | 4453901.2 | 82.14.5 | 132353.41 |
यातायात के साधन
संपादित करेंटॉडगढ़ पहाडी क्षेत्र है अत यहां पर केवल सडक मार्ग का ही उपयोग होता हैं टॉडगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग नं 8 से 8 किमी दूर दक्षित मे बग्गड से मिल जाता है और यहां से 14 किमी उत्तर में भीम है और पूर्व में टॉडगढ़ 6 किमी दूर बरार ( फुतियाखेडा) से राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 8 से मिल जाता है। ग्राम पंचायत मुख्यालय से कानाखेजडी, लूणेता, गुजरगम्मा राजस्व ग्राम पक्की सडक से जुडै है शेष राजस्व ग्राम कानातो की बैर व कैलावास कच्ची सडक से जुडे है। टॉडगढ़ आने जाने के लिए पर्याप्त मात्रा में बस के साधन उपलब्ध हैं यहां पर राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम की बसे के साथ ग्रामीण सेवा की बसों द्वारा छोटे छोटे मजरो से भी जुड गया है और इसके साथ निजी बसो का संचालन भी होने से काफी सुविधा उपलबध है और इसके अतिरिक्त जीप व कार सेवा भी उपलब्ध होने से सारी समस्या हल हो जाती हैं अगर 14 किमी दूर हम भीम कस्बें में चले जाय तो हमें अहमदाबाद, राजकोट, व सूरत तक जाने वाली बसें मिल जाती है।
दर्शनीय स्थल
संपादित करेंप्राचीन टॉडगढ़ नगर की बात करें तो टॉडगढ़ में बहुत बडा क्षेत्र आता था। माजातो की बैर ग्राम पंचायत का पूरा क्षेत्र टॉडगढ़ में ही आता था। इस पूरे क्षेत्र का हम अध्ययन करें तो यहां पर कई ऐतिहासिक एवं भौगोलिक बातें है जिन्हे विकसित कर हम इस क्षेत्र को एक पर्यटक केन्द्र केरूप में विकसित किया जा सकता है और दोनो ग्राम पंचायत के कई बेराजगारो को रोजगार मिल सकता हैं व एक बहुत अछा पर्यटक केन्द्र भीम बन सकता है इस सन्दर्भ मे समय समय पर यहां के लोगो ने आवाज भी उठायी थी और इसका असर भी होने लगा है।
- 1. दुधालेश्वर – विवरण आगे दर्ज हैं।
- 2. प्रज्ञा शिखर – विवरण आगे दर्ज हे।
- 3. ब्रिटिश कालीन चर्ज ( गिरजाकर) – विवरण आगे दर्ज हैं
- 4. पीपलाज माता का मंदिर – विवरण आगे दर्ज है।
- 5. महादेव मंदिर – यह स्थान टॉडगढ़ तेजाजी मंदिर से पाडल सीसी सडक पर नर्सरी तालाब के किनारे स्थित एक सुन्दर एवं पुराना शिव मंदिर है।
- 6. बडा का माजाती का मंदिर एवं सन सेट पोईंट :- स्थान टॉडगढ़ से लगभग 3 किमी पर ग्राम मालातो की बैर में स्थति है विवरण आगे दर्ज हैं।
- 7. देव जी का मंदिर :- यह मंदिर पुराना ऐतिहासिक मंदिर जो कि टॉडगढ़ बसा तभी से पूजा जा रहा है जो तेजारी मंदिर के पास स्थित हैं।
- 8. शीलता माता मंदिर :- यह प्रज्ञा शिखर के पास टॉडगढ़ देवगढ सडक पर स्थित एक भव्य मंदिर हैं विवरण आगे दर्ज हैं।
- 9. तेजाजी का मंदिर :- टॉडगढ़ में ही स्थति है जो पुराना मंदिर है जहां पर दूर दूर से र्स दंश के केस ठीक होने हेतु आते हैं हर वर्ष मेला लगता हैं।
- 10. धर्मा की तलाई :- यह टॉडगढ़ से बराखन सडक होते हुए कानपुरिया से 3.500 किमी दूर कच्ची सडक से पहाडी पर राजस्थान के गुरूशिखर के बाद दूसरी सबसे उंची चोटी हैं।
- 11. मांगट जी महाराज का मंदिर :- यह स्थान टॉडगढ़ से 17 किमी दूर बडाखेडा से सरूपा पक्की सडक से पहाडी पर 4 किमी उपर स्थति एक पुराना धार्मिक स्थल है विवरण आगे दर्ज है इसी स्थान के पास कुण्डामाता का मंदिर का दर्शनीय स्थान भी है।
- 12. गोरमघाट :- टॉडगढ़ से सीधा 12 किमी दूर व सडक मार्ग से 25 किमी दूर कामलीघाट से फुलाद रेलवे लाईन पर स्थित एक दर्शनीय स्थान पर जो राजसमंद में आता है यहां पर रेलवे लाईन का (यू) आकार का टर्न एवं गुफा शानदार व मनमोहक हैं।
- 13. हनुमान प्रतिमा :- टॉडगढ़ से 10 किमी दूर लाखागुडा ग्राम के पास 72 फिट उंची हनुमान प्रतिमा हैं जो पर्यटको का दर्शनीय स्थल है जिला राजसमंद में आता हैं।
- 14. तीन होटल :- (1) टॉडगढ़ में एक यूनाईटेड 21 रॉयल रिसोर्ट टॉडगढ़, (2) हिल वैली रिसोर्ट मेडिया, (3) अमर विलास मालातो की बैर।
- 15. प्राचीन तहसील भवन :- (1) टॉडगढ़ मं ही स्थित है अंग्रेजो के समय से बनी तहसील है जो वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चल रहा हैं (2) इसमें पुरानी ट्रेजरी, जैल, जिसमें स्वतंत्रता सैनानि विजय सिंह पथिक कैद रहे थे जिन्होने 1915 में बिजोलिया किसान आंदोलन का नेतृत्व किया। इस जेल को काटकर विजय सिह पथिक फरार हो गये थे।
- 16. वीर रावत राजू चौहान स्मार्क :- यह स्थान टॉडगढ़ से 6 किमी दूरी पर फुतिया खेडा में चौराहे पर इनकी भव्य प्रतिमा स्थत हैं।
- 17. विक्ट्री मेमोरियल फौजी धर्मशाला :- यह टॉडगढ़ में ही स्थत है द्वितिय विश्वयुद्व में शहीद यहां के निवासीयों की याद मे बनी फौजी धर्मशाला हैं।
- 18. कातर घाटी सडक :- टॉडगढ़ से बराखन सडक पर 6 किमी पर विहंगम दृश्य सजोए अद्भुत सडक है जिसमें यू टर्न (मोड) है जिसका सम्वत् 1956 में अंग्रेजो द्वारा निर्माण करवाया गया। उस समय भयंकर अकाल पडा था जिसमें आस पास के ग्रामीणो द्वारा इसका निर्माण किया गया था।
- 19. टॉडगढ़ रावली वन्य जीव अभ्यारण :- यह स्थान टॉडगढ़ मालातो की बैर आसन बराखन पंचायत क्षेत्र से मारवाड पाली जिले के मध्य बने नदी नालो से आच्छादित व वन क्षेत्र है जिमें दुधालेश्वर महादेव का धार्मिक स्थल फोरेस्ट की होटले एवं जंगली जानवरी शेर आदि हैं।
- 20. बागलिया भग्गड गुफा मामारेल टॉडगढ़ :- विवरण आगे हैं
- 21. विदेशी पर्यटन :- इस क्षेत्र में विदेशी पर्यटक काफी मात्रा में हर वर्ष आते है जो कि आट्रेलिया, इग्लेण्ड, इटली, अमरीकन, स्पेन इजराईल, नार्वे, अर्जेण्टिना, इत्यादि।
दुधालेश्वर
संपादित करेंपरिचय
संपादित करेंटॉडगढ़ कस्बे से 7 किमी दूर टॉडगढ़ रावली अभ्यारण के बीचो बीच स्थित है धार्मिक आस्था केन्द्र दुधालेश्वर महादेव। यहां पर हर रोज हजारो श्रद्वालु दर्शन का लाथ उठाते है जहां पर कई प्रकार के जंगली जानवर व घना वन पाया जाता है यह वन रक्षित वन में आता है वन अधिकारियो की चौकी भी यहां पर है इस वन में बाघ , भालू, हिरण, चीता, सांभर, आदि कई जंगली जानवर पाये जाते है। इसे बाघ अभ्यारण क्षेत्र भी बना रखा है इस क्षेत्र और विकसित कर इसे पर्यटन को बढावा दिया जा सकता हैं।
इतिहास
संपादित करेंदुधालेश्वर की स्थापना का संबंध में हा जाता है कि बरसा वाडा वर्तमान टॉडगढ़ निवासी खंगार जी मालावत भक्ति भव वाले व्यक्ति थे और जंगल में गाये चराते थे। एक दिन जंगल में खंगार जी को साधु वेश धारी एक सन्यासी मिले जिन्होने खंगार जी से जल लाने हेतु कहा और खीर बनाकर खाने की इच्छा व्यक्त की। खंगार जी ने अपने पास रखे हुए पानी के पात्र को देखा तो उसमें पानी समाप्त हो गया था इसलिये एक किमी दूर कुएं से पानी लाने हेतु साधु से आज्ञा मांगी इस पर साधु ने काह इतना दूर जाने की आवश्यकता नही और उन्होने पास ही खडे घास के एक गुछे को उखाडने के लिये कहा, खंगार जी ने साधु द्वारा बताये गये घास के गुछे को उखाडा तो वहां से जल धारा फूट पडी उन्होने सोचा कि यह साधु कोई साधारण सन्यासी नही वल्कि बहुत ही चमत्कारिक महात्मा देवाधिदेव महादेव ही हो सकते हैं जिन्होने पहाडी पर गंगा को अवत्रित किया। खंगार जी ने साधु महात्मा को श्रधा पूर्वक नमन कर जल पिलाया और उनके दर्शन से अभीभुत हो गये जल पीने के बाद साधु महात्मा ने खंगार जीजी से कहा कि दूध लेकर आओ खीर बनाकर खाऐगें। खंगार जी दूध लाने के लिये एक दूध देने वाली गाय की और जाने लगे तो साधु ने कहा इतना दूर जाने की जरूरत नही है यही पर रूको इस बहती हुई जल धारा से एकत्रित हुए पानी को पीने के लिये जो भी पहली गाय आये उसका दूध निकाल लेना। खंगार जी ने साधु से कहा कि महाराज यह तो टोगडी (केअडी) है इसके दूध कहां से होगा। महात्मा ने कहा आप दूध निकालो दूध आ जायेगा। खंगार जी ने वैसा ही किया और महात्मा के चमत्कार से एक बिन व्याही गाय के थनो से दूध आ गया। जिसे खंगार जी ने निकाला।
खंगार जी को बहुत आश्चर्य हुआ और मन ही मन सोचने लगे कि यह तो साक्षात भगवान महादेव के दर्शन हो गये है अब खंगार जी को खीर बनाने के लिये चावल और पकाने के पात्र की आवश्यकता थी। जिसके साधु ने भाप लिया और उन्होने आगे होकर अपनी झटा में से चावल का एक दाना और डेगची ( बर्तन) खंगार जी को देकर कहा कि खीर बना दो अब तो खंगार जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि वह साक्षात्त महावेद के सामने ही खडे हें और उनकी आज्ञा से ही कार्य कर रहे है इसलिये यह पूछना व्यर्थ होगा कि चावल के एक दाने खीर केसे बनेगी खंगार जी ने बडे मनोयोग से खीर बनाई जिसे महात्मा जी खंगार जी और अन्य ग्वालो ने पेट भर खाई फिर भी खीर समाप्त नही हुई वह भी एक चमत्कार ही था। एक चावल के दाने की खीर इतने लोगो के खने के बावजूद भी खत्म नही हुई खीर खाने के बाद महात्मा जी वहां से जाने लगे तो खंगार जी ने उनसे आर्शिवाद लिया और महात्मा जी ने उनसे कुछ मागने को कहा तो खंगार जी ने उनसे वह डेगची मांग ली जिसे महात्मा जी उन्हे दे दी। कहते है कि आज भी वह डेगची खंगार जी मालावत के वशं वालो के पास विद्यमान है इस प्रकार खंगार जी द्वारा दुध निकालने की घटना से स स्थान का नाम दुधालेश्वर हुआ और बाद में जहां गंगा अवतरित हुई थी उस दिनांक पर एक छोटी कुई बनवाई और खंगार जी मालावत द्वारा सम्वत् 1651 में महादेव जी का मंदिर बनवाया गया। कुई में आज भी जल धारा प्रवाह सतत ही चल रहा हैं।
प्रज्ञा शिखर ( महा शिला अभिलेख)
संपादित करेंप्रज्ञा शिखर के नाम से यहां एक पहाडी पर महाशिला अभिलेख के रूप में सुदूर दक्षिण से लाया गया विशालकाय काले ग्राईट पत्थर पर मानवीयता के संदेश आने वाले 5000 वर्षो तक देता रहेगा। इस महाशिला अभलेख के अतिरिक्त यहीं पर मनोहारी हितमा मय वातावरण में एक विशाल पुस्तकालय एवं सभग्रह भी है। जो पर्यटको को अपनी और आकर्षित करता हैं।
ब्रिटिश कालीन चर्ज
संपादित करेंव्रिटिश काल के समय में निर्मित लगभग 150 वर्ष पुराना चर्च इस कस्बे में है जो कि ब्रिटिश काल में ब्यावर व उदयपुर के मध्य मात्र यही एक चर्च था इस चर्च की महता इस बात से चलती है कि कांग्रेस के शासन काल में केन्द्र ने इसके विकास हेतु 1 करोड़ पचास लाख रूपये पास किये और इसका विकास किया जा रहा हैं।
पीपलाज माता का मंदिर
संपादित करेंऐतिहासिक कस्बे टॉडगढ़ से दो किमी दूर पहाडियों व वनो से आच्छादति एक सुन्दर धार्मिक स्थल जन जन की आस्था का केन्द्र चौहान वंशीयो की कुल देवी आशापुरा माता सम्बंध वर्गो में पूजनीय देवी है। चाहमान का क्षेत्र या मूल स्थान अहिच्छत्रपुर (नागोर) रहा। चौहामान वंश में वासुदवे ने अहिच्छत्रपुर में शाकम्भरी क्षेत्र (साम्भर) में अपनी सत्ता स्थापित की स्थान नाम के कारण आशापुरा नाम शाकम्भरी माता भी पडा। इसका ही प्रतिरूप है पीपलाज माता यह मंदिर कितना प्राचीन है यह लिखित तथ्य प्राप्त नही हैं किन्तु कर्नल टॉड की पुस्तक में उदयपुर के महाराण जय सिह का इस गटना से सम्बंध हैं अत: जयसिह के समय काल से देखे तो सन् 1681 ई. में पिता महाराणा राजसिह की जगह जयसिंह को मेवाड की राज गद्दी पर बैठाया गया मूल पीपलाज माता बरडो की आराधना हैं ऐसा कहा जाता है कि यह देवी माल गोत्र की आराध्य देवी थी। चौहान वंश परम्परा में विट्ठल राव के पुत्र काला राव के उदयपुर के महाराणा जयसिह अनबन होने के कारण गढबारे (चारभुजा) का राज छोडना पडा कुछ समय अज्ञात वास में थे ग्राम भानपा (कनोडा) में अपने माल गोत्र के मामा के यहां रहे उदयपुर के महाराणा को गुप्तचरो से पता लगने पर उनके मामा के सहयोग से इनको मरवाने की योजना बनाई।
कालाराव को स्वप्न में शाकम्भरी देवी ने दर्शन दिये एवं बताया कि यहां मामा के घर स्थापित मेरी मूर्ती लेकर भाग जाओ में तुम्हारी रक्षा करूगीं कालाराव ने ऐसा ही किया उनके मामा व अन्य सैनिक सहायको ने “मालक मालिया” नामक गांव में आकर उन्हे गैरा देवी मूर्ती के लिये घमासान युद्व हुआ सिवाय एक व्यक्ति को छोडकर सभी माल गोत्रियों को सेनिक सहायक मारे गये इसके बाद महाराण के सैनिको ने कालेटरा के पास इन्हे गैरा यहां भ युद्व हुआ जैसे तैसे बच कर कालाराव जी वर्तमान मंदिर स्थान पर पहुचें यहां मौजुद विशाल पीपल वृक्ष खोए में मूर्ती स्थापति कर विश्राम किया। अत: यह शाकम्भरी या आशापुरा माता का प्रतिरूप पीपलाज माता के नाम से प्रसिद्व हुआ कहते है तब से देवी माओ से रूठी, बरडो पे टूटी कालोर, केलवा, केलवाडा, गुमान, व कालेटरा कालाराव जी के नाम से बसे गांव है। ग्रामीण सहयोग तथा सांसद विधायक कोष से यहां सम्पर्क सड़क तथा सराय का निर्माण किया गया। मंदिर के जीर्णेद्वार का कार्य भी चल रहा है।
महादेव मंदिर
संपादित करेंयह स्थान टॉडगढ़ तेजाजी मंदिर से पाडल सीसी सडक पर नर्सरी तालाब के किनारे स्थित एक सुन्दर एवं पुराना शिव मंदिर है।
शिव मंदिर टॉडगढ़ | ||||||
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बड़ा का माता जी
संपादित करेंयह स्थान ग्राम मालातो की बैर मे टॉडगढ़ दुधालेश्वर पक्की सडक पर करीब 3 किमी की दूरी पर सेमला का तालाब सकनिया बेरी होते मालातो कीबैर पंचायत मुख्यालय कच्ची सडक (रिंग) रोड पर स्थित है यह स्थान चौहान वंशज की आराध्य देवी का पूजा स्थल है यही पर खापरिया चौर से सम्बंध एक स्थान भी है इस बारे मे मान्यता है कि यह चौर (खापरिया) माता जी की मदद से माताजी के स्थान पर झलने वाली दीवड (दीप) के उजाले में मारवाड में चौरी लूट पाट करता था और कुछ हिस्सा माता जी को चढाता था। एक दिन चौर के मन मे दगा आ गया और घमण्ड आ गया कि आज माताजी को चढावा नही देना है मैं अपने बूते पर लूट पाट करता हूं माता जी को व्यर्थी में चढावा चढाता हूं उसी दिन माता जी ने दीवड बुजवा दी जिस कारण थापरिया चोर भटक गया और पत्थर में उसका पांव धस गया। जिसका आज भी टॉडगढ़ दुधालेश्वर कच्ची सडक के किनारे है एवं उक्त चौर (खापरिया) एक पूजनीय स्थल मंदिर के रूप मे पटवारी रूपसिह द्वारा सन 1996-97 में बनवाया गया। स्थान के आस पास के लोग माताजी के साथ साथ इस स्थान को भी पजूते आ रहे हैं। एवं कई चमत्कार भी देखने को मिलते है इसी स्थान पर से सनसेट का दृश्य बडा ही अद्भुत दिखाई देता है।
देव जी का मंदिर
संपादित करेंयह मंदिर पुराना ऐतिहासिक मंदिर जो कि टॉडगढ़ बसा तभी से पूजा जा रहा है जो तेजाजी मंदिर के पास स्थित हैं।
देव जी का मंदिर टॉडगढ़ | ||||||
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शीतला माता मंदिर
संपादित करेंयह प्रज्ञा शिखर के पास टॉडगढ़ देवगढ सडक पर स्थित एक भव्य मंदिर हैं.
तेजा जी का मंदिर
संपादित करेंटॉडगढ़ में ही स्थति है जो पुराना मंदिर है जहां पर दूर दूर से र्स दंश के केस ठीक होने हेतु आते हैं हर वर्ष मेला लगता हैं।
मांगट जी महाराज का मंदिर
संपादित करेंटॉडगढ़ रावली अभ्यारण सुरमय प्राकृतिक दृश्य मेरवाडा, व मारवाड की धर की सीमा पर पेहरेदार सा खडा रोही पवर्त वन्य व वन पम्पतियो की विविधता से परीपूर्ण सत्र लोग देवता की पूजन सामग्री के महक से महकता वातावरण प्राकृतिक शांत व सुन्दर स्थान पर कभी कभी उठती जंगली जावरो व पक्षियो की आवाजें पेंथर, भालू, लंगूर, मेडिया, सियार, खरगोश, सुअर इत्यादि जानवरो से परिपूर्ण चहुऔर फैला वन क्षेत्र। प्राकृतिक रूप से सम्पन्न अभ्यारण्य है इसी रोही पर्वत के शिखर पर वना है प्राचीन सुन्दर मंदिर देव पुरूष मालदेव( मांगट जी) का। [मूल शोध?] पंवार वंश वृक्ष के शिखर पुरूष धाराजी से ग्यारवें वंश में रोहिता जी हुए। संत व ऋषि थे रोहिता जी इनके दो पुत्र हुए हरिया व सरिया। हरिया जिसे मोठिस वंश प्रारम्भ माना जाता है। व सरिया जी के वंशज जहाजपुर भीलवाडा क्षेत्र मे बसे हुए हैं हरिया जी के वंशज मोठिस बराखन भालिया वन प्रान्तर में रहते है पंवारो की कुल 25 गोत्र बताई जाती हैं हरिया जी की सातवी पीडी में सातू जी हुएजो सातूखेडा भालिया के संस्थापक ठाकुर थे। इनके पांच पुत्र में से पाचवें पुत्र मालदेव मांगट जी देव पुरूष के रूप में विख्यात है इनकी पुत्री कुण्डोरानी हुई जो मोठिसो की देव के रूप में पूजी जाती हैं दोनो भई बहिन लोक देवतओं के रूप में अति पूजनीय है माल जी काजन्म बराखन के पास सातूखेडा में धनतेरस को सम्वत् 1432 /सन् 1429 ई. को हुआ था। माता का नाम जगमल देय डाकल तथ पिता का नाम सातू जी था। सातू जी का विवाह भाडिया नवमी के दिन सिंहदे भाटियानी के साथ हुआ था।
आसिन्द (गोठा) के 24 बगडावत जब युद्व में खेल रहे थे तो बडे भाई शिव भक्त सवाई भोज की गर्भवती विधवारानी साडूमाता की गोद में वचन बद्व भगवान ने कुवंर के रूप में अवतार धारण किया कार्तिक माह के पुण्य स्नान हेतु अपने दो ढाई वर्षिय पुत्र देव नारायण के साथ पुष्कर आई उन्ही दिनो सातू जी माटिस की पत्नि सिंहदे एक वर्ष के कुअंर के साथ पुष्कर स्नानार्थ आई हुई थी। नहाने के बाद घाट पर वस्त्र धारण करते समय संयोग वशं दोनेा की कांचलिया बदल गई। जब यह बात मामुल हुई तो इसे देव संकेत मानकर दोनो ने एक दूसरे को बहन बना लिया। इस तरह भगवान देव नारायण व मांगट जी दोनो में मासीयात भाई का सम्बंध कायम हुआ।
बालक देव नारायण के आग्रह पर साडू माता अपनी कांचली बदल बहन से मिलने सातूखेडा आई। घोडे पर सवार पता पूछती साडूमाता उपली मेडिया आई यहा से बताया गया कि सातू जी बेडी माली में रह करे हैं। ( बेडीमाली के खंडर सातूखेडा के दक्षितण में आज भी है। ) यहां आकर देव नारायण ने हानी लगाई। (सकून मनाया) बाद में सातू जी उनकी पत्नि और मालदेव जी ने आकर खूब स्वागत सत्कार किया। कुछ दिन यही प्रसन्नता पूर्वक रहे देव नारायण जी ने मांगट जी को कहा कि घोडे को पानी पिलाकर लावें। परन्तु घोडे की सवारी न करें कुछ दूर रावली मालादेह पर पानी पिलाने के पश्चात उत्सुकतावशं मांगट जी घोडे पर बैठ गये ज्यो ही घोडे पर बैइ रस्सी खीची और घोडा दोडा तो जमीन छोड उपर उछने लगा। यह कोई आध्यात्मिक संकेत था। कई स्थानो की यात्र कर पुन: यहां स्थान आकर रूक गया। जब माल जी डरे सहमे गबराये से घर पहुचे और घोडे को पसीने से तरबरत देख देव नारायणजी समझ गये कि मांगट जी ने घेडे की सवारी की है इस पर देव नारायण ने आशिर्वाद दिया और हा कि आज से आप भी देव पुरूष होगये हो। 15 कलाएं में देता हूं 16 वी कला भविष्यमें एक योगी देगा जिससे आप अदृश्य हो सकेगें। देव नारायण जी को विदा करने मागट जी खारी नदी के तट तक एक पत्ते वाला खाखरे का पेड तक गये। उसी स्थान परमाल जी को कमर से बाधने का पट्टा टेकर पूर्ण देवत्व प्रदान किया। इसके बाद माल देव जी अपने क्षेत्र में आये वर्षो कतक कई चमत्कारिक कार्य कर लोगो की मनोकामनाऐं पूर्ण कर देव पुरूष होने का प्रमाण दिये मेवाड महाराण से सम्बंधित एक व्यक्ति थाना रावल ने गोरख नाथ की धूनी नाहर मगरा ( उदयपुर डबोक) से दीक्षा ग्रहण की व सिद्वियां प्राप्त की। धूणिया रमाते अखल जगाते धुमते धुमते आसन जिलोला आये यह स्थान रावतो गोडावतो का गुरूद्वारा है। यहां से जोग मण्डी ( गोरमघाट) गये। सम्वत् 1444 में यहां मागट जी की थाना रावल जी से भेंट हुई सो गाये भेट कर मांगट जी ने इन्हे गुरू बनाया और अदृश्य रूप में होने की विद्या जिलोलाव आकर प्राप्त की।
मांगट जी (मालदेव जी) के देवरे रोही पर्वत, मालवा, मेवाड़, मारवाड़, गुजरात से भी लोग दर्शनार्थी आते है। टॉडगढ़ तहसील का क्षेत्र है N H 8 जस्साखेडा से (बराखन) बडाखेडा के पश्चिम में 7 किमी तथा बामनहेडा के 3 किमी दूर पर स्थित है मांगट जी का मथारा।
गोरमघाट
संपादित करेंटॉडगढ़ से सीधा 12 किमी दूर व सडक मार्ग से 25 किमी दूर कामलीघाट से फुलाद रेलवे लाईन पर स्थित एक दर्शनीय स्थान पर जो राजसमंद में आता है यहां पर रेलवे लाईन का (यू) आकार का दर्न एवं गुफा शानदार व मनमोहक हैं।
विक्ट्री मेमोरियल फौजी धर्मशाला :-
संपादित करेंयह टॉडगढ़ में ही स्थत है द्वितिय विश्वयुद्व में शहीद यहां के निवासीयों की याद मे बनी फौजी धर्मशाला हैं।
कातर घाटी सड़क
संपादित करेंटॉडगढ़ से बराखन सडक पर 6 किमी पर विहंगम दृश्य सजोए अद्भुत सडक है जिसमें यू टर्न (मोड) है जिसका सम्वत् 1956 में अंग्रेजो द्वारा निर्माण करवाया गया। उस समय भयंकर अकाल पडा था जिसमें आस पास के ग्रामीणो द्वारा इसका निर्माण किया गया था।
टॉडगढ़ रावली वन्य जीव अभ्यारण
संपादित करेंइस क्षेत्र में टॉडगढ़ रावली अभ्यारण (क्षेत्रफल 495.27 वर्ग किमी) में आता है जहां पर कई प्रकार के जंगली जानवर व घना वन पाया जाता है यह वन रक्षित वन में आता है वन अधिकारियो की चौकी भी यहां पर है यह स्थान टॉडगढ़ मालातो की बैर आसन बराखन पंचायत क्षेत्र से मारवाड पाली जिले के मध्य बने नदी नालो से आच्छादित वन क्षेत्र है जिसमें दुधालेश्वर महादेव का धार्मिक स्थल है इस वन में चीतल, बाघ, हिरण, चीता, सांभर, लोमडी,सेही, बिज्जू, नील गाय, आदि कई जंगली जानवर पाये जाते है यहां धोक, सालर, गोल, जामुन, महुआ, बेर, गुलर, चुरेल, खेर आदि वृक्षो मे वनाच्छादितहै इसे बाघ अभ्यारण क्षेत्र भी बना रखा हैं इस क्षेत्र को और विकसित करने का उद्वेश्य काबरा दाता में वन्य जीवदर्शन दीर्घ का र्निमाण किया गया ताकि पर्यटको को आकर्षित किया जा सके। इस क्षेत्र को और विकसित कर हम पर्यटन को बढा सकते हैं।
बागलिया भग्गड़ (गुफा) मामारेल टॉडगढ़
संपादित करेंभग्गड (गुफा ) ग्राम टॉडगढ़ से भीम टॉडगढ़ पक्की सडक से 1/किमी दूर मामाजी की रेल में स्थित है जो कि यहां से 13 किमी दूर गोधाजी के गांव भीम के पास किले के पास निकलती हैं यह स्थान मामादेव की धूनी के नाम से प्रसिद्ध हैं।
सामाजिक व सांस्कृतिक क्रिया कलाप
संपादित करेंयहां पर सभी धर्मो के लोग (हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई) मिल झुल कर रहते हैं किसी प्रकार का कोई राग द्वेष नही है सभी एक दूसरे के सुख दुख में भाग लेते है। मुख्य कस्बे में लगभग सभी जाति के लोग रहते हैं अन्य राजस्व ग्रामो में रावत-राजपूत जाति के ही लोग रहते है लोगो लोगो का खान पान सादा है मक्का व गेंहू प्रमुख खाद्यान हैं यहां पर अधिकांश लोग पेन्ट व शर्ट पहनते है कुछ पुराने लोग व खेती करने वाले धोती, कमीज व साफा भी पहनते है औरते मुख्य रूप से अपनी पुरानी पोषाक ओढनी, घाघरा पहनती है कुछ औरते साडी भी पहनती है औरते अपने परम्परागत गहने कडे, कंदोरा, बोर, हंसली, पाईजेब, झूमर, नथ आदि पहनती हैं व हाथ में कांच या प्लास्टिक की चुडियां पहनती हैं। सभी धर्मो के लोग रहने से यहां सभी धर्मो के त्योहार मनाये जाते है यहां पर होली, दीपावली, रक्षा बंधन, तीज, गणगौर, ईद, बडा दिन, आदि त्योहार सभी हिल मिल कर मनाते हैं।
शिक्षा
संपादित करेंशिक्षा के प्रचार व प्रसार के लिए इस क्षेत्र में 2 उच्च माध्यमिक विद्यालय व 1 निजी माध्यमिक विद्यालय, 4 उच प्राथमिक विद्यालय व 1 उच्च प्राथमिक विद्यालय व 5 प्राथमिक विद्यालय है यहां पर शिक्षा का स्तर भी अच्छा हैं। पुरूष साक्षरता 80 प्रतिशत व महिला साक्षरता 62 प्रतिशत है अधिकांश निरक्षरता 45 वर्ष से उपर के आयु वर्ग में है 0 से 15 वर्ष के आयु वर्ग में तो निरक्षरता भी नही है।