दांगी एक अति प्राचीन क्षेत्रीय समाज हैं,यह समाज भगवान राम के पुत्र लव का बंशज है,दांगी समाज का वर्तमान में मुख्य कार्य कृषि, समाज सेवा, व्यवसाय, सेवा क्षेत्र जुड़ा हैं। दांगी जाति हिंदू धर्म से संबंधित जो भारत के कई राज्य जैसे मध्यप्रदेश(राजगढ़,ब्योरा, सागर: गुना: अशोकनगर: भोपाल: दतिया: निवाड़ी:विदिशा ), राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार आदि में पाई जाती हैं। भारत के अलावा नेपाल और भूटान में भी दांगी बड़ी संख्या में निवासरत है|

दांगी जाति से जुड़े कई राज परिवार, किले आज भी दांगियो की वीरता, बहादुरी और गौरव शाली इतिहास की निशानी हैं।

मध्य प्रदेश के सागर जिले में १. गढ़पहरा का किला २. बिलहरा का किला ३. खुरई का किला ४. सानोधा का किला ५ पर कोटा का किला सागर आदि स्थित है।

वर्तमान में दांगी समाज राजनीति में भी बहुत सक्रिय हैं, मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता, प्रदेश के नगरीय प्रशासन और शहरी आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह (पूर्व में गृह मंत्री और सांसद सागर लोकसभा) भी दांगी जाति से आते हैं।

साथ सागर लोकसभा से वर्तमान सांसद राजबहादुर सिंह भी समाज समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनके अलावा राजगढ़ के ब्यावरा से कांग्रेस विधायक रामचंद्र दांगी, दतिया से जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती इंदिरा धीरू दांगी (राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय दांगी क्षत्रिय युवा संघ) आदि हैं।

पहनावा संपादित करें

पुरुष धोती, अंगरखा,पहनते हैं तथा महिलाएं घाघरा, कांछली, चुंदड़ी या पोमछा ओढ़तीं है।

आभूषणों में महिलाएं कड़ियां, नेवरियां, जांजरियां, सड़प, गाणी, नथ, बोर, कंदोरा, हांली, ऑगञा, गाळा, फोलरी, दामणा आदि पहनतीं हैं तो पुरुष मिरकी, लंगर, कंदोरा, मूंदड़ी आदि पहनते हैं।

लोक नृत्य व रीति रिवाज संपादित करें

मेवाड़ क्षेत्र उदयपुर और चितौड़गढ़ में होली के समय पुरुषों का गैर नृत्य उल्लेखनीय तो महिलाओं का गणगौर, घूमर आदि।

वहीं मृत्यु भोज और पंचायती जैसी कुुुरीतियां मौजूद है। प्रतापगढ़ क्षेत्र में मृत्युभोज सीमित हैं। तो शादियों में माताजी पूजन, गणेश स्थापना, भेरू पूजन, गोतीडा (चाक पूजन), रोड़ी नूतन, हेवरा,तोरण, मंगल फेरे, डोरडा खोलना आदि परंपराएं जीवंत है साथ ही चितौड़गढ़ व उदयपुर क्षेत्र के कुछ गावों में बैंड-बाजे पर सामाजिक प्रतिबंध है।

संदर्भ संपादित करें

दांगी समाज का संबंध भगवान राम से है। दांगी जाति भगवान राम के रघुवंश से संबंधित है।