तंदूरी पाककला मिट्टी की बेलनाकार भट्टी या तंदूर में लकड़ी के कोयले की आंच पर भोजन पकाने की एक पद्धति है।

तंदूरी पाककला

स्वरूप एवं उपयोगिता

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विशाल कलश की आकृति वाला तंदूर कम से कम एक मीटर ऊंचा और प्राय: गर्दन तक जमीन में धंसा होता है। ऐसा माना जाता है कि तंदूरी पाककला का जन्म फारस में हुआ, जहां से यह किसी एक या अन्य रूप में सम्पूर्ण भारत में लोकप्रिय हो गई। तंदूर को गरम करने के लिए इसमें लकड़ी या कोयले की आग घंटों तक जलाकर रखी जाती है। मसालेदार कबाब (मांस) को दहि और मसाले में लपेटकर लोहे की पतली छड़ों में पिरोकर गरम तंदूर में रखकर पकाया जाता है। यह पकाकर तंदूरी रंग का (सुर्ख नारंगी लाल) हो जाता है, तब इसमें प्राकृतिक वनस्पति रंग मिलाया जाता है। गेहूं के आटे से बना अंडाकार नान (रोटी) तंदूर की भीतरी दीवार पर लगाकर पकाया जाता है। तंदूरी मुर्गा तंदूरी पाककला सर्वाधिक लोकप्रोय व्यंजन है। पंख वगैरह साफ करने के बाद पूरा मुर्गा तंदूर में जल्दी ही भून जाता है।[1]

इसका प्रचलन लखनऊ के नवाब और हैदराबाद के निज़ाम के समय में सर्वाधिक था, जिसकी झलक आज भी लखनवी और हैदराबादी व्यंजन बनाने में इस्तेमाल होता है।

इन्हें भी देखें

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  1. भारत ज्ञानकोश, खंड- 2, प्रकाशक: पोप्युलर प्रकाशन, मुंबई, पृष्ठ संख्या-334, आई एस बी एन 81-7154-993-4

बाहरी कड़ियाँ

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