त्रिपुरतापिनी उपनिषद्
(त्रिपुरातापिन्युपनिषद से अनुप्रेषित)
त्रिपुरतापिनी उपनिषद् [1]अथर्ववेदीय शाखा के अन्तर्गत एक गौण उपनिषद है। यह ८ शाक्त उपनिषदों में से एक है। यह तन्त्र से सम्बन्धित है। इसके अनुसार ब्रह्माण्ड की रचना शिव और शक्ति के संयोग से हुई है तथा स्त्री और पुरुष दोनों के बिना कोई भी सृष्टि सम्भव नहीं है।
लेखक | वेदव्यास |
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रचनाकार | अन्य पौराणिक ऋषि |
भाषा | संस्कृत |
शृंखला | अथर्ववेदीय उपनिषद |
विषय | ज्ञान योग, द्वैत अद्वैत सिद्धान्त |
शैली | हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ |
प्रकाशन स्थान | भारत |
इस उपनिषद के अन्तिम अध्याय में अद्वैत शैली में शक्ति (देवी) की चर्चा हुई है। उन्हें 'परम ब्रह्म' कहा गया है और यह भी कहा है कि आत्मा और ब्रह्म में भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं। यह दर्शन शाक्ताद्वैत (शाक्त + अद्वैत) कहलाता है।