दिल्ली बम काण्ड सन् १९१२ में बनायी गयी मास्टर अमीरचन्द, लाला हनुमन्त सहाय, मास्टर अवध बिहारी, भाई बालमुकुन्द और बसन्त कुमार विश्वास द्वारा लार्ड हार्डिंग नामक ब्रिटिश वायसराय को जान से मार डालने की एक क्रान्तिकारी योजना थी जो सफल न हो सकी। लार्ड हार्डिंग तो बच गया किन्तु जिस हाथी पर बैठाकर दिल्ली के चाँदनी चौक क्षेत्र में वायसराय की शानदार शाही सवारी निकाली जा रही थी उसका महावत मारा गया। पुलिस ने इस काण्ड में चारो प्रमुख क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार करके उन पर वायसराय की हत्या की साजिश का मुकदमा चलाया। लालाजी को उम्रकैद की सजा देकर अण्डमान भेज दिया गया जबकि अन्य चारो को फाँसी की सजा हुई। लाला हनुमन्त सहाय ने इस फैसले के विरुद्ध अपील की थी जिसके परिणाम स्वरूप उनकी उम्र कैद को सात वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया गया।[1] पुरानी दिल्ली में बहादुरशाह जफर रोड पर दिल्ली गेट से आगे स्थित वर्तमान खूनी दरवाजे के पास जिस जेल में दिल्ली बम काण्ड के इन चार शहीदों को फाँसी दी गयी थी उसके निशान भी मिटा दिये गये। अब वहाँ जेल की जगह मौलाना आजाद मेडिकल कालेज बन गया है।

जनता की बेहद माँग पर अब इस मेडिकल कॉलेज के परिसर में चारो शहीदों की मूर्तियाँ स्थापित कर दी गयी हैं।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "The revolutionary of Chandni Chowk". द हिन्दू. 2004-08-02. मूल से 25 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३० अगस्त २०१३.

इन्हें भी देखें संपादित करें

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