दीवान आनंद कुमार
दीवान आनन्द कुमार (१८९४-१९८१) शिक्षा से एक वैज्ञानिक और न्यायविज्ञानी, व्यवसाय से एक ज्ञानी और शैक्षिक प्रशासक थे और विचार और कर्म से एक सुधारवादी और परोपकारवादी व्यक्ति थे।
दीवान आनंद कुमार | |
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जन्म |
१८९४ |
मौत |
१९८१ (८७ वर्ष की आयु में) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय,कैम्ब्रिज |
प्रसिद्धि का कारण | विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत), पंजाब विश्वविद्यालय, दयाल सिंह सार्वजनिक पुस्तकालय, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल |
व्यक्तिगत जीवन
संपादित करेंआनंद कुमार एक उदार अभिजात्य थे। उनका कश्मीरी पंडित परिवार सिख राज्य में विशिष्टता के साथ काम करता था। इनका उपनाम 'रैना' था। आनंद कुमार के पिता, नरेंद्र नाथ (१८६४ -?) ने १८८६ में सरकारी कॉलेज लाहौर से एम.ए. पास किया। १८८८ में उन्होंने प्रांतीय सिविल सेवा में प्रवेश किया। १९०८ में उन्हें दीवान बहादुर नाम से सम्मानित किया गया। १९११ में उन्हें लाहौर डिवीजन का आयुक्त नियुक्त किया गया परंती भारतीय होने के कारण उन्हें इस पद से हटा दिया गया।
आनंद कुमार शादी के संबंधों के द्वारा नेहरु परिवार से संबंधित थे। १९०२ में उनकी बड़ी बहन रमेशवरी का जवाहरलाल नेहरू के चचेरा भाई ब्रजलाल नेहरू (मोती लाल नेहरू के बड़े भाई नंद लाल नेहरू के बेटे) से विवाह हुआ था।
शिक्षा एवं महत्वपूर्ण कार्य
संपादित करेंदीवान आनंद कुमार ने कैंब्रिज से पढाई पूरी की और १९२० में पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर के प्राणीशास्त्र विभाग में एक रीडर के रूप में नियुक्त हुए। १९४२ में वे विभाग के प्रमुख थे। १९४६ में उन्हें विश्वविद्यालय निर्देश का अध्यक्ष बनाया गया था, एक पद जिसे उन्होंने नए विश्वविद्यालय में भी रखा था। १९२४ में, उन्हें दयाल सिंह कॉलेज ट्रस्ट सोसाइटी और दयाल सिंह पब्लिक लाइब्रेरी ट्रस्ट, लाहौर, दोनों का सदस्य नियुक्त किया गया। विभाजन के बाद इन दोनों को प्रशासन करने कि ज़िम्मेदारी उन्ही की थी।
स्वतंत्रता उपरांत नवगठित पंजाब विश्वविद्यालय के कामकाज को नौ सदस्यीय एक सिंडिकेट को सौंपा गया जिसमें सर जय लाल; न्यायाधीश तेजा सिंह; ज्ञानेश चंद्र चटर्जी; सरदार बहादुर भाई जोध सिंह; दीवान आनंद कुमार; कर्नल बी. एस. नेट; प्रिंसिपल निरंजन सिंह; प्रोफेसर दीवान चंद शर्मा; और रजिस्ट्रार डी. एन. भल्ला शामिल थे। दीवान आनंद कुमार पंजाब विश्वविद्यालय के तीसरे उप-कुलपति बने। उपकुलपति के अपने लंबे कार्यकाल (१ अगस्त १९४९-३० जून १९५७) के दौरान, उन्होंने विश्वविद्यालय को अपनी महिमा के चरम पर पहुंचा दिया।[1]
वह राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल, गुरु नानक इंजीनियरिंग कॉलेज, लुधियाना, थापर इंजीनियरिंग कॉलेज, पटियाला, एफ.सी. कॉलेज ऑफ विमेन हिसार और पटियाला में एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना के पीछे प्रेरणा थे। वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य भी थे, और दयाल सिंह सार्वजनिक लाइब्रेरी ट्रस्ट, नई दिल्ली के अध्यक्ष थे।
दीवान आनंद कुमार दयाल सिंह कॉलेज, करनाल के संस्थापक पिता थे। यह इस द्रष्टा के प्रयासों का परिणाम ही था कि दयाल सिंह कॉलेज, करनाल १६ सितंबर, १९४९ को अस्तित्व में आया। 'उमर मंज़िल', खेल के मैदानों आदि के लिए पर्याप्त स्थान के साथ एक निष्क्रांत निवासी संपत्ति थी जिसे सरकार से अधिग्रहण कर लिया गया था और आज भी महाविद्यालय इसी सुंदर इमारत में है।
उन्होंने १९४९ से १९८१ तक दियाल सिंह कॉलेज ट्रस्ट सोसायटी के मानद सचिव के रूप में कार्य किया।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 1 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 नवंबर 2017.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- https://web.archive.org/web/20171201043715/http://www.dspl.org.in/dewanji.html
- https://web.archive.org/web/20171129040612/http://www.dspl.org.in/About%20Us.htmlhttps://web.archive.org/web/20190410194600/http://www.dsckarnal.org/
- https://web.archive.org/web/20171201033614/http://rajeshkochhar.com/tag/dewan-anand-kumar/