देवगिरि के यादव
देवगिरि के यादव या सेउना यादव (कन्नड : ಸೇವುಣರು (सेवुणरु), मराठी: देवगिरीचे यादव) (850–1334) भारत का एक राजवंश था जिसने अपने चरमोत्कर्ष काल में तुंगभद्रा से लेकर नर्मदा तक के भूभाग पर शासन किया जिसमें वर्तमान महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, मध्य प्रदेश के कुछ भाग शामिल थे। उनकी राजधानी सिन्नर और बाद में देवगिरि हुई जो वर्तमान में दौलताबाद के नाम से जानी जाती है।
इतिहास
यादव वंश भारतीय इतिहास में बहुत प्राचीन है और वह अपना सम्बन्ध प्राचीन यदुवंशी क्षत्रियों से मानता है। राष्टकूटों और चालुक्यों के उत्कर्ष काल में यादव वंश के राजा अधीनस्थ सामन्त राजाओं की स्थिति रखते थे। पर जब चालुक्यों की शक्ति क्षीण हुई तो वे स्वतंत्र हो गए और वर्त्तमान औरंगाबाद (महाराष्ट) के क्षेत्र में स्थित देवगिरि (दौलताबाद) को केन्द्र बनाकर उन्होंने अपने उत्कर्ष का प्रारम्भ किया।
भिल्लम-५ (A.D. 1185-93) ने अपनी राजधानी सिन्नर (नासिक के पास) से बदलकर देवगिरि में स्थापित की। वे आंध्र प्रदेश में गौल्ला नाम से भी जाने जाते थे, जो होयसलों के शत्रु थे।[1][2] मूलतः नासिक से मध्यप्रदेश तक कि भूमि यदुवंशी आभीरों के अधिपत्य में थी। होयसल यादवों की तरह, सेउना यादव भी मूल रूप से पशुपालक या चरवाहा थे। यादवों ने अक्सर खुदको पशुपालक होने में गौरवांकित समझा है।[3][4][5]
सेउना राजवंश खुद को उत्तर भारत के यदुवंशी या चंद्रवंशी समाज से अवतरित होने का दावा करता है।[6][7] सेऊना मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मथुरा से बाद में द्वारिका में जा बसे थे। उन्हें "कृष्णकुलोत्पन्न (भगवान कृष्ण के वंश में पैदा हुए)","यदुकुल वंश तिलक" तथा "द्वारवाटीपुरवारधीश्वर (द्वारिका के मालिक)" भी कहा जाता है।[8] अनेकों वर्तमान शोधकर्ता, जैसे कि डॉ॰ कोलारकर भी यह मानते हैं कि यादव उत्तर भारत से आए थे। [9] निम्न सेऊना यादव राजाओं ने देवगिरि पर शासन किया था-
- दृढ़प्रहार [10]
- सेऊण चन्द्र प्रथम [10]
- ढइडियप्पा प्रथम [10]
- भिल्लम प्रथम [10]
- राजगी[10]
- वेडुगी प्रथम [10]
- धड़ियप्पा द्वितीय [10]
- भिल्लम द्वितीय (सक 922)[10]
- वेशुग्गी प्रथम [10]
- भिल्लम तृतीय (सक 948)[10]
- वेडुगी द्वितीय[10]
- सेऊण चन्द्र द्वितीय (सक 991)[10]
- परमदेव [10]
- सिंघण[10]
- मलुगी [10]
- अमरगांगेय [10]
- अमरमालगी [10]
- भिल्लम पंचम [11]
- सिंघण द्वितीय [12][13]
- राम चन्द्र [14][15]
सन्दर्भ
- ↑ Vignesha, M. S. (1993). Sociology of Animal Husbandry: Studies Made in Five Villages in Karanataka (अंग्रेज़ी में). Associated Publishing Company. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85211-33-6.
- ↑ Census of India, 1961, Volume 9, Issue 6, Part 3. Manager of Publications, 1964. 1964. पृ॰ 8.
The Gollas are believed to be originally the people from the kingdom of Yadhavas, who ruled parts of Andhra with their capital at Devagiri in the 12th and 13th Centuries. These Yadhavas were hostile to Hoysalas, who during that period were also equally powerful.
- ↑ Dhere, Ramchandra (2011). Rise of a Folk God: Vitthal of Pandharpur South Asia Research. Oxford University Press, 2011. पपृ॰ 246–247. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780199777648.
- ↑ Dhavalikar, Madhukar (2014). Socio-economic Archaeology of India. Archaeological Survey of India, 2014. पृ॰ 274.
- ↑ Misra, Om Prakash (2004). Devi Ahilyābāī Holakara evaṃ Maheśvara, itihāsa, saṃskr̥ti evaṃ purātatva. Sañcalanālaya Purātatva, Abhilekhāgāra evaṃ Saṅgrahālaya, Madhyapradeśa, 2004. पृ॰ 8.
- ↑ Chapter 8, "Yadavas Through the Ages" J.N.S.Yadav (1992)
- ↑ Robin James Moore. Tradition and Politics in South Asia. 1979. Vikas Publishing House.
- ↑ Madhyayugin Bharat (Marathi translation of Medieval India) written and published by Chintaman Vinayak Vaidya, p.468.
- ↑ Marathyancha Itihaas by Dr. S.G Kolarkar, p.4, Shri Mangesh Prakashan, Nagpur.
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ क ख ग घ ङ च छ S. D. S. Yadava (2006). Followers of Krishna: Yadavas of India. Lancer Publishers. पृ॰ 118. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170622161. मूल से 23 जून 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 फ़रवरी 2020.
- ↑ Bennett, Mathew (21 सितंबर 2001). Dictionary of Ancient & Medieval Warfare. Stackpole Books. पृ॰ 98. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-8117-2610-X.. The quoted pages can be read at Google Book Search Archived 2011-02-22 at the वेबैक मशीन.
- ↑ "Yādava Dynasty" Encyclopædia Britannica. Encyclopædia Britannica 2007 Ultimate Reference Suite
- ↑ Mann, Gurinder Singh (1 मार्च 2001). The Making of Sikh Scripture. Oxford University Press US. पृ॰ 1. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-513024-3.
- ↑ Eternal Garden: Mysticism, History, and Politics at a South Asian Sufi Center by Carl W. Ernst p.107
- ↑ Mokashi, Digambar Balkrishna (1 जुलाई 1987). Palkhi: An Indian Pilgrimage. SUNY Press. पृ॰ 37. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-88706-461-2.