महाभारत के अनुसार देवापि पुरुवंशी हस्तिनापुर नरेश प्रतीप के ज्येष्ठ पुत्र थे। देवापि का अर्थ देवताओं का मित्र होता है। देवापि परम धर्मपरायण थे और उन्होने अपने तपोबल से ब्राह्मण्य प्राप्त किया और कहा जाता है कि ये अब भी योगी वेश में सुमेरु पर्वत के निकट रहते हैं। कलियुग की समाप्ति पर ये फिर सतयुग में चंद्रवंश की स्थापना करेंगे। इनके छोटे भाई को गद्दी दी गई तो राज्य में १२ वर्ष की अनावृष्टि हुई। देवापि उस समय तपस्या में लगे थे और ब्राह्मणों के कहने पर जब इन्हें राज्य सौंपा गया तो छोटे भाई शान्तनु से कहकर इन्होंने यज्ञ कराया और स्वयं उनके पुरोहित बने। ऐसा करने पर खूब वर्षा हुई।

(२) 'देवापि' नाम के एक और भी राजा महाभारतकाल में हुए थे जो पांडवों के पक्ष में लड़े थे।