देव पुरस्कार

हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में दिया जाता

देव पुरस्कार हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में दिया जाता है। इसमें पुरस्कार राशि २००० रूपए से शुरू हुई थी (सन १९३५) जो अब १ लाख हो गयी है। हिंदी साहित्य में राष्ट्रीय स्तर के इस पुरस्कार की शुरूआत टीकमगढ़ के महाराज वीर सिंह जू देव (वीर सिंह द्वितीय) ने वर्ष 1935 में की थी।

'महावीर प्रसाद द्विवेदी' की एक पुस्तक को लेकर साहित्य समारोह का आयोजन इलाहाबाद में किया गया था। साहित्य के प्रति योगदान के कारण टीकमगढ़ महाराज वीर सिंह जू देव कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनाए गए थे। यहां महाराज को पता चला कि, देश में साहित्यकारों के लिए 1100 रुपए से अधिक का कोई पुरस्कार नहीं है। हिंदी साहित्य में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार बनारस में दिया जाता था। इसके अलावा शौर्य पुरस्कार भी मिलता था।

अगले ही वर्ष महाराज ने हिंदी साहित्य में देश के सर्वश्रेष्ठ देव पुरस्कार की शुरूआत कर दी। 1935 में पहला देव पुरस्कार दुलारे लाल भार्गव को कुंडेश्वर में आयोजित समारोह के दौरान दिया गया। इसके बाद प्रतिवर्ष पुरस्कार कुंडेश्वर से ही बसंतोत्सव मेले में प्रदान किया जाता था। टीकमगढ़ महाराज वीरसिंह जू देव द्वारा देव पुरस्कार के साथ 2000 रुपए भेंट किए जाते थे।

दूसरा देव पुरस्कार 1936 में रामकुमार वर्मा को मिला था। वर्ष 1964 से मध्य प्रदेश शासन द्वारा महाराज की परम्परा का निर्वहन किया जा रहा है। जिसके बाद से अखिल भारतीय स्तर पर महाराज वीर सिंह जू देव पुरस्कार दिया जा रहा है। दो हजार से शुरूआत के बाद अब पुरस्कार राशि एक लाख रूपए हो गई है।

देव पुरस्कार प्रतिवर्ष देश के अलग-अलग शहरों में समारोह पूर्वक प्रदान किया जाता है। शुरूआत के 81 साल बाद कुण्डेश्वर निवासी साहित्कार गुणसागर शर्मा सत्यार्थी ने महाराज वीर सिंह जू देव पुरस्कार को उद्गम स्थल से जोड़ दिया। उन्हें वर्ष 2016 में हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार महाराज वीरसिंह जू देव के लिए चुना गया। दिसंबर 2017 में हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने गुणसागर सत्यार्थी को पुरस्कार से नवाजा। तभी से देव पुरस्कार प्रतिवर्ष कुंडेश्वर से दिए जाने की मांग की जा रही है।

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