देव प्रखण्ड

देव, औरंगाबाद का दुसरे सबसे बड़ा शहर है जिसमे प्रथम स्थान पर औरंगाबाद तथा दुसरे स्थान पर देव जो पु

औरंगाबाद, बिहार का एक प्रखण्ड।

देव औरंगाबाद, बिहार
City
उपनाम: देव, औरंगाबाद,
निर्देशांक: 24°38′05″N 84°25′02″E / 24.63466279999999°N 84.41726659999995°E / 24.63466279999999; 84.41726659999995निर्देशांक: 24°38′05″N 84°25′02″E / 24.63466279999999°N 84.41726659999995°E / 24.63466279999999; 84.41726659999995
Countryभारत
क्षेत्रफल
 • कुल1419.7 किमी2 (548.1 वर्गमील)
ऊँचाई108 मी (354 फीट)
जनसंख्या (2011)[2]
 • कुल1,73,216 [1]
Languages
 • commonहिंदी
समय मण्डलIST (यूटीसी+5:30)
PIN824202
Telephone code06186
आई॰एस॰ओ॰ ३१६६ कोडIN-BR
वाहन पंजीकरणBR-26
Sex ratio1000:910 /
वेबसाइटdeoaurangabad.bih.nic.in

देव, इंग्लिश में इसे Deo Block या केवल देव, औरंगाबाद (बिहार) भारत के बिहार राज्य के अन्तर्गत मगध मण्डल के औरंगाबाद में स्थित है। यह देव सूर्य मंदिर या यूँ कहें देवार्क मंदिर इसकी सबसे बड़ी पहचान है। देव में 16 पंचायत समितियाँ हैं। देव आस्था का केंद्र है। यहाँ का एक प्रसिद्ध शहर देव है जो यहाँ देव सूर्य मंदिर के के उपस्थिति के कारन औरंगाबाद से भी ज्यादा मशहूर और प्रसिद्ध शहर है। यहाँ छठ पर्व लाखों की सख्यां में देश और विदेश के कोने कोने से लोग मनोकामना पूर्ण करने आते हैं। यहां देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।[3] [4]

देव सूर्य मंदिर

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देव सूर्य मंदिर यह देव, बिहार में स्थित सूर्य मंदिर है। यह मंदिर पूर्वाभिमुख ना होकर पश्चिमाभिमुख है। यह मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए प्रख्यात है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। यहाँ छठ पर्व के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती है। [5]

देव राजा किला

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राजा किला देव ये राजपूत परिवार के सिसोदिया वंस से जुड़ी हुई है। ये वर्णन इतिहास में मिलती है कि देव किला का सबसे अंतिम राजा जगनाथ जी थे जो काफी लंबे समय तक अपने राज्य में शांति और वह प्रजा लोगो के साथ शांति के साथ राज्य का जिम्मा अपने हाथ में लेकर शासन किया. उनका कोई भी अपना संतान नहीं था। उनके देहांत के बाद बारी आई कि अब राज्य का जिम्मा कौन संभाले तो ये जिम्मेदारी उनकी बीवी को लेनी थी. उनकी दो पत्नियां थी जिसमे से राज्य का जिम्मा उनकी छोटी पत्नी ने संभाली [6]

उनकी छोटी पत्नी ने अपने राज्य पर देश को स्वत्रंत होने 1947 तक किया. भारत को इंडिपेंडेंट देश बनने के बाद उस वक्त के देव राज्य के अटॉर्नी जॉर्नल मुनेश्वर सिंह ने देश में विलय ( मर्ज ) के लिए हस्ताक्षर किया था और इस तरह से देव राज्य भारत देश में विलय हो गया.

पाताल गंगा

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देव से पश्चिम दो किलोमीटर दूरी पर पतालगंगा नामक एक सिध तीर्थ स्‍थान हैा [7]

देव रानी तालाब

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देव के पश्चिम जहॉ मेला लगता है वहीं रानी तालाब है राजा साहब देव ने अपनी रानी साहिबा के स्‍म़ति में इस तालाब का निर्माण कराया थाा सुन्‍दरता में यह सूर्य कुण्ड से कम नहीं हैा रानी साहिबा राजा साहब के साथ यहॉ जल बिहार करती थीा राजा साहब घोडा दौडाते हुये इस तालाब में उतर जाते थे आज इस तालाब का महत्‍व कम गया हैा [8]

देव छठ मेला

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देव छठ मेला वर्ष में दो बार चैत्र् एवं कार्तिक मास में शुक्‍ल पक्ष की षष्‍ठी तिथि को मेला लगता हैा इस समय लाखों की तादाद में श्रधालु गण दूर-दूर से आकर सूर्य को दण्‍डवत करते हैंा एवं अर्ध्‍य देते हैं और इष्‍ट सिधि प्राप्‍त करते हैंा श्रधालु गण सूर्य कुण्‍ड में स्‍नानकर कर सूर्य मंदिर का सम्‍पूर्णरास्‍ते भर दण्‍डवत प्रणाम करते हैं, क्‍योंकि भगवान सूर्य प्रणाम से प्रसन्‍न होते हैंा इस प्रकार दण्‍डवत करने से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है एवं पाप से मुक्ति होती हैा वर्तमान समय में छठ पर्व एवं प्रति रविवार को असंख्‍य श्रधालु भक्‍तगण देव आकर सूर्य कुण्‍ड में स्‍नान के बाद भगवान भास्‍कर का पूजन करते हैा सूर्य मंदिर के पूजारीगण भी स्‍वयं स्‍नान संध्‍या वंदनपूर्वक रक्‍त वस्‍त्र् रक्‍त चंदन आदि धारण कर वैदिक विधि से भगवान भास्‍कर की पूजा करते हैं।[9]

देव सूर्य महोत्सव

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देव सूर्य महोत्सव 1998 से लागातार प्रशासनिक स्तर पर दो दिवसीय देव सूर्य महोत्सव आयोजन किया जाता है जिसमें हर वर्ष सूर्य देव की जन्म के अवसर पर मनाया जाता है। यह बसंत पंचमी के दूसरे दिन मतलब सप्तमी को पूरे शहर वासी नमक को त्याग कर बड़े ही धूम धाम से मानते हैं। इस दिन के अवसर पर कई तरह की कार्यक्रम भी भी कराया जाता है। बसंत सप्तमी के दिन में देव के कुंड मतलब ब्रह्मकुंड में भव्य गंगा आरती भी होती है जिसे देखने देश के कोने कोने से आते है इसी दिन देव शहर वर्ष की पहली दिवाली मानती है। और रात्रि में पहली रात्रि को बॉलीवुड, तथा दूसरी रात्रि में भोजीवुड के कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है और पूरा देव झूम उठता है। [10] [11]

देव 24.65 डिग्री एन 84.43 डिग्री ई पर स्थित है। ऐसा मान्यता है

देव नाम को लेकर मान्यताएं

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  • यहां देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
  • मान्यता है कि सतयुग में इक्ष्वाकु के पुत्र व अयोध्या के निर्वासित राजा ऐल एक बार देवारण्य (देव इलाके के जंगलों में) में शिकार खेलने गए थे। वे कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। शिकार खेलने पहुंचे राजा ने जब यहां के एक पुराने पोखर के जल से प्यास बुझायी और स्नान किया, तो उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। वे इस चमत्कार पर हैरान थे। बाद में उन्होंने स्वप्न देखा कि त्रिदेव रूप आदित्य उसी पुराने पोखरे में हैं, जिसके पानी से उनका कुष्ठ रोग ठीक हुआ था। इसके बाद राजा ऐल ने देव में एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। उसी पोखर में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु व शिव की मूर्तियां मिलीं, जिन्हें राजा ने मंदिर में स्थान देते हुए त्रिदेव स्वरूप आदित्य भगवान को स्थापित कर दिया। इसके बाद वहां भगवान सूर्य की पूजा शुरू हो गयी, जो कालांतर में छठ के रूप में विस्तार पाया।
  • देव के बारे में एक अन्य लोककथा भी है। एक बार भगवान शिव के भक्त माली व सोमाली सूर्यलोक जा रहे थे। यह बात सूर्य को रास नहीं आयी। उन्होंने दोनों शिवभक्तों को जलाना शुरू कर दिया। अपनी अवस्था खराब होते देख माली व सोमाली ने भगवान शिव से बचाने की अपील की। फिर, शिव ने सूर्य को मार गिराया। सूर्य तीन टुकड़ों में पृथ्वी पर गिरे। कहते हैं कि जहां-जहां सूर्य के टुकड़े गिरे, उन्हें देवार्क, लोलार्क (काशी के पास) और कोणार्क के नाम से जाना जाता था। यहां तीन सूर्य मेदिर बने। देव का सूर्य मंदिर उन्हीं में से एक है।
  • एक अनुश्रुति यह भी है कि इस जगह का नाम कभी यहां के राजा रहे वृषपर्वा के पुरोहित शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के नाम पर देव पड़ा था।

[12]

जनसांख्यिकी

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2011 की जनगणना के अनुसार, देव की आबादी 173,216 थी। पुरुषों में 57% आबादी और 40% महिलाएं हैं। देव की औसत साक्षरता दर 91.3% है, जो राष्ट्रीय औसत 60.5% से अधिक है: पुरुष साक्षरता 85% है, और महिला साक्षरता 68% है। देव में, 21% आबादी 6 साल से कम आयु के है। [13]

  • Remain Solution
  • RGOC

स्थानीय परिवहन

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सिटी बस, ऑटो-रिक्शा, टैक्सी, और साइकिल रिक्शा आम तौर पर स्थानीय परिवहन के लिए यहां जाती है।

नियमित बस सेवा देव से औरंगाबाद, टाटा, पटना, पुरी, रांची, कोलकाता, दिल्ली, धनबाद और गया है।

देव सड़क और ट्रेन से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। अनुग्रह नारायण रोड (एयूबीआर) देव शहर से लगभग 21 किमी दूर निकटतम रेलवे स्टेशन है। प्रमुख राजमार्ग एनएच -2 और एनएच -13 9 एनएच -2 सीधे दिल्ली और कोलकाता शहर और एनएच -13 9 को जोड़ते हैं जो मुख्य रूप से पटना को दुडनगर के माध्यम से जोड़ता है। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, लखनऊ, भुवनेश्वर, अहमदाबाद, जयपुर के लिए सीधी ट्रेन है। और पटना शहर। निकटतम हवाई अड्डा गया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो शहर के केंद्र से 80 किमी दूर है। मुख्य सुपरफास्ट ट्रेन अनुग्रह नारायण रोड स्टेशन पर रुकती है

पुरुषोत्तम एक्सप्रेस पूरवा एक्सप्रेस मुंबई मेल महाबोधी एक्सप्रेस जोधपुर एक्सप्रेस गया गैरीब्रथ एक्सप्रेस

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. http://www.censusindia.gov.in/pca/SearchDetails.aspx?Id=287807
  2. "List of Most populated cities of India". मूल से 7 एप्रिल 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 अक्टूबर 2016.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 28 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 28 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.
  5. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.
  7. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.
  8. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.
  9. "संग्रहीत प्रति". मूल से 20 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.
  10. "संग्रहीत प्रति". मूल से 29 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.
  11. "संग्रहीत प्रति". मूल से 29 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.
  12. "संग्रहीत प्रति". मूल से 28 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.
  13. "संग्रहीत प्रति". मूल से 28 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 दिसंबर 2018.