द्रवस्थैतिकी, तरल स्थैतिकी या हाइड्रोस्टैटिक्स तरल पदार्थों की स्थिर अवस्था का विज्ञान है और तरल यांत्रिकी की उपशाखा है। इस विज्ञान में यह अध्ययन किया जाता है के किन हालात में कोई तरल पदार्थ यांत्रिक संतुलन में होने की वजह से शांत होता है। इसके विपरीत, तरल गतिकी विज्ञान की उस शाखा को कहते हैं जिसमें हिलते हुए, अशांत या असंतुलित तरलों का अध्ययन किया जाता है।

जब डोरे से बँधे बटखरे आदि किसी भारी पिंड को पानी में डुबोकर डोरे को पकड़े रहते हैं, तब देखा जाता है कि इतना बल नहीं लगाना पड़ता, जितना बल उस पिंड को पानी से बाहर खींच लेने पर लगता है। ऐसा क्यों होता है इसका कारण सबसे पहले गणितज्ञ आर्किमीडीज़ (१८७-२१२ ई.पू.) ने ज्ञात किया और इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया कि किसी द्रव में डूबे हुए पिंड पर द्रव एक ऊर्ध्वाधर उत्क्षेपी बल लगाता है, जो पिंड द्वारा विस्थापित द्रव के भार के बराबर होता है। उत्क्षेप का निदान करते समय तरल दाब (fluid pressure) की संकल्पना सामने आती है, अर्थात् एक ऐसे बल की जो तरल अपने से संपर्क में आए हुए पिंड के प्रत्येक पृष्ठ अल्पांश पर लगाता है। ऐसे दाब के अस्तित्व का आभास हमें यही देखकर मिल जाता है कि छिद्र से बाहर निकलते हुए पानी को रोकने के लिए बल की आवश्यकता होती है। आर्किमीडीज़ के नियम की व्याख्या इस परिकल्पना के आधार पर दी जा सकती है कि तरल दाब तरल के संपर्कवाले पिंड के पृष्ठ-अल्पांश पर लंबत: क्रिया करता है।

दाब की संकल्पना में स्पष्टता लाने के लिए दाबप्रचंडता की परिभाषा यह कह कर की गई है कि यह तरल द्वारा लगाए हुए बल और तल के क्षेत्रफल के अनुपात की सीमा है, जब क्षेत्रफल शून्य की ओर अग्रसर होता है। प्रचंडता की सकंल्पना का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि तरल के प्रत्येक बिंदु पर इसका मान ज्ञात किया जा सकता है। यह सिद्ध किया जा सकता है कि तरल के किसी बिंदु पर सभी दिशाओं में दाबप्रचंडता का मान बराबर रहता है और इसे उस बिंदु पर द्रवस्थैतिक दाव कहते हैं। संकेताक्षर P द्वारा इसे प्रकट करते हैं। इस दाब का आयाम बल प्रति एकक क्षेत्रफल है।

यह भी सिद्ध किया जा सकता है कि यदि द्रव का घनत्व अचर है, तो दाब गहराई का समानुपाती है और क्षैतिज तल में समान रहता है। इस सिद्धांत के अनुसार ही - 'खोजहि ददक सदा निज स्तर'। जलप्रबंध में इस गुण का उपयोग किया जाता है और उत्स्रुत कूप भी इसी कारण चल पाते हैं। इसके आधार पर लेओनार्डो दि वींचि (१४५२-१५१९ ई.) ने तरल दाब की संचरणशीलता का यह नियम प्रतिपादित किया कि यदि बिना ज्यामितीय परिसीमाएँ बदले द्रव के किस बिंदु पर दाब में कोई वृद्धि कर दी जाए तो उतनी ही वृद्धि द्रव के प्रत्येक विंदु पर स्वत: हो जाती है। बल का परिमाण दाब और क्षेत्रफल के गुणनफल के बराबर होने के कारण छोटे क्षेत्रफल पर थोड़ा बल लगाने का परिणाम वही होता है, जो बड़े क्षेत्रफलके पिस्टन पर बड़े बल के लगाने का। जलचालित दावक, ब्रेक आदि इसी नियम पर आधारित हैं। इसी कारण बाँध शीर्ष की अपेक्षा आधार पर अधिक चौड़े बनाए जाते हैं, तथा जल में अत्यधिक गहराई पर काम करनेवालों को दाब की प्रतिरक्षा के लिए इस्पात के कवच पहनने पड़ते हैं।

द्रव का मुक्त तल (धारक के संपर्क से दूर) और अमिश्र्य तरलों के बीच का तल, दोनों क्षैतिज होते हैं।

अन्य शब्दों में--- तरल द्वारा किसी तल के पृति एकांक छेत्रफल पर आरोपित लम्बबत् बल को तरल दाब कहते है! अर्थात्

   तरल दाब="दाब के लम्बबत् बल"/छेत्रफल
  या P=F/A

यहॉ पर P=Pressure अर्थात् तरल दाब,F=Force अर्थात् बल,और A=Area अर्थात् छेत्रफल है! तरल दाब का S.I. पद्धति में मात्रक न्युटन /मी² होता है !जिसे पास्कल भी कहते है! तथा PA से पृदर्शित करते है!इसका विमीय सूत्र ML—¹T—² होता है !

प्लवित पिंड का संतुलन और स्थायित्व

संपादित करें

जब कोई पिंड कई एक द्रवों में अंशत: डूबा हो, तो उसके भार का संतुलन पिंड द्वारा विस्थापित विभिन्न द्रवराशियों के भार के बराबर उत्क्षेपों से होता है और प्रत्येक उत्क्षेप को उस राशि के गुरुत्वकेंद्र पर, जिसे उत्प्लावकता केंद्र कहते हैं, ऊर्ध्वाधर दिशा में लगा माना जा सकता है।

यदि किसी प्लवित पिंड को ऐसी विभिन्न स्थितियाँ दी जाँए, जिन में उसके द्वारा विस्थापित द्रवों का भार के बराबर रहे, तो उत्प्लावक केंद्र का बिंदुपथ उत्प्लावक तल कहलाता है और संतुलनावस्था में पिंड की वह स्थिति होती है जिसमें उत्प्लावक केंद्र और पिंड के गुरुत्वकेंद्र के बीच की दूरी महत्तम या न्यूनतम होती है। महत्तम दूरी होने पर संतुलन अस्थायी और न्यूनतम होने पर स्थायी होता है। उत्प्लावकतल के मुख्य वक्रताकेंद्रों को आप्लव केंद्र (metacentre) कहते हैं। यदि उपप्लव केंद्र में पिंड के गुरुत्व केंद्र ग से ऊपर है तो म के संगत मुख्य विस्थापनों के लिए संतुलन स्थायी है, यदि नीचे है, तो अस्थायी और यदि ग तथा म एक ही बिंदु हैं, तो संतुलन उदासीन है। ग म उत्प्लावन तल पर अभिलंब होती है। इस प्रकार ग से उत्प्लावन तल पर अभिलंब खींचकर संतुलन स्थितियों को ज्ञात किया जा सकता है।

पास्कल का सिद्धान्त

संपादित करें
 
पास्कल का सिद्धान्त

इन्हें भी देखें

संपादित करें