धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान

भारतीय धारावाहिक


धरती के वीर योद्धा महान हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान अपने अपने समय के महान राजा थे जिनके बारे में भारतीय टीवी सीरियल के माध्यम से कार्यक्रम दिखाई जा रहा है



ार्यक्रम था जो कि भारतीय टेलीविजन चैनल स्टार प्लस पर प्रसारित किया गया तथा सागर आर्ट्स द्वारा प्रारंभ किया गया जिनके द्वारा पहले रामायण, महाभारत और हातिम टेलीविजन श्रृंखला शुरू किया गया। यह हिंदी टीवी धारावाहिक मध्यकालीन भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध हिन्दू राजाओं में से एक राजा पृथ्वीराज चौहान, उसका प्रारंभिक जीवन, उनके साहसिक कार्य, राजकुमारी संयोगिता के लिए उनके प्रेम की कहानी को दर्शाता है। ज्यादातर यह प्रारंभिक हिंदी/अपभ्रंश कवि चन्दवरदाई का महाकाव्य पृथ्वीराज रासो, से आता है लेकिन निर्माताओं ने इस प्रेम कथा को दर्शाने के लिए बहुत छुट ली है[1] Archived 2023-10-26 at the वेबैक मशीन यह मोहक गाथा 15 मार्च 2009 को दुखद अंत के साथ समाप्त हुआ।

कथावस्तु संपादित करें

पृथ्वीराज चौहान अपने पिता की मृत्यु के बाद वे अजमेर के गद्दी पर विराजमान हुए। आगे चलकर वे अजमेर सहित दिल्ली के भी राजसिंहासन पर विराजमान हुए। अगर हिन्दू राजा हेमू के कुछ दिन की सत्ता को छोड़ दिया जाय तो पृथ्वीराज भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट था। अपनी मृत्यु तक वे अपने सिद्धांत पर कायम रहे और मुहमद गौरी की अधीनता स्वीकार नहीं की। आँखें निकाल दिए जाने के बावजूद भी उन्होंने गौरी को जान से मार कर अपना बदला पूरा किया।

दिल्ली के सिंहासन पर बैठने चौहान वंश के अंतिम शासक, पृथ्वीराज चौहान, अजमेर के राजा सोमेश्वर चौहान, के बेटे के रूप में 1165 में पैदा हुए. वह एक अत्यंत प्रतिभावान बच्चा था और सैनिक कौशल सिखने में बहुत तेज़ था। सिर्फ आवाज़ के आधार पर लक्ष्य को मारने क़ी कुशलता उसमे थी। तेरह वर्ष के उम्र में, 1178 में, जब उनके पिता युद्ध में मारे गए वह अजमेर सिंहासन का उत्तराधिकारी बना। अनंगपाल उसकी माँ का पिता, दिल्ली के शासक, उसकी बहादुरी और साहस के बारे में सुनने के बाद उसे दिल्ली के सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित किया। उसने एक बार बिना किसी हथियार के एक शेर को अपने दम पे मारा था। वह एक योद्धा राजा जाना जाता था। जब वह दिल्ली के सिंहासन पर आरोह किया, उसने यहाँ किला राइ पिथोरा बनाया। उसका पूरा जीवन लगातार साहस, वीरता, सहृदय कर्म और महान कारनामों की एक सतत श्रंखला थी। शक्तिशाली भीमदेव, गुजरात का शासक, को उसने मात्र तेरह वर्ष के उम्र में हराया।

हथियार. वह योद्धा राजा कहलाया जाता था। जब वह दिल्ली के सिंहासन पर आरोह किया, उसने यहाँ किला राइ पिथोरा बनवाया. उसका पूरा जीवन लगातार साहस का शृंखला, वीरता, नम्र एवं सहृदयतापूर्ण व्यवहार और महान कार्यों का है। उसने महाबली भीमदेव, गुजरात का शासक, को केवल उम्र तेरह में हराया .

उसके दुश्मन, राजा जयचंद थे। राजा जयचंद की बेटी संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी बहुत प्रसिद्द है। उसके 'स्वयंवर' क दिन वह उसे लेकर फरार हुआ था।

उसने अपना साम्राज्य को बढाया, इस दौरान शहाब-उद-दीन-मुहम्मद गौरी ने 1191 में भारत पर आक्रमण किया और तराइन के पहले युद्ध में उसे हरा दिया। अगले वर्ष, 1192 में, शहाब-उद-दीन-मुहम्मद गौरी सेना प्रथ्विराज को तराइन के दूसरे युद्ध में चुनौती देने लौट आई। शहाब-उद-दीन-मुहम्मद गौरी भारत के तरफ एक बड़ी बल संख्या 120,000 के साथ बड़ा. . जब वह लाहोर पहुंचा, उसने अपने दूत को पृथ्वीराज चौहान का समर्पण का अधिकार माँगने भेजा, लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने पालन करने से इनकार किया। पृथ्वीराज चौहान तब अपने साथी राजपूत प्रमुखों को मुस्लिम आक्रमण के खिलाफ अपने मदद के लिए एक औपचारिक सहायता की मांग रखता है। करीब 150 राजपूत प्रमुखों ने उसके अनुरोध में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

पृथ्वीराज भी एक बड़ी सेना के साथ आया था, एक बड़ा हिस्सा जिसमे भारतीय युद्ध के लिए हाथियाँ शामिल थे और उसके साथ तराइन में सुल्तान शहाब-उद-दीन-मुहम्मद गौरी को मिलने आगे बड़ा फिर से हराने के उम्मीद के साथ, जहाँ एक साल पहले उसने अपने विरोधी को बुरी तरह हराके कष्ट पहुँचाया था, शहाब-उद-दीन-मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज को एक अंतिम चेतावनी दी की वह मुस्लिम बने या हार जाये . पृथ्वीराज ने विरोध में एक प्रस्ताव रखा कि मुहम्मद युद्ध विराम समझे, उसे अपने सेना के साथ वापसी क़ी अनुमति दे। सुल्तान मुहम्मद शाहब-उद-दिन घोरी ने हमला करने का फैसला किया।

गोरी ने अपने सैनिकों को पांच भागों में विभाग किया और राजपूत सैनिकों पर दिन के समय से पहले हमला किया धनुर्धारी घुड़सवारों क़ी तरंगों को हमला करने भेजा राजपूत सैनिकों पर, लेकिन वापसी क़ी जैसे राजपूत हाथी व्यूह आगे बड़े.

शाम के बाद नहीं लड़ने का राजपूत परंपरा का फायदा उठाके उसने राजपूत सेना पर हमला करके उन्हें हराया. इसके बाद क्या होता है वहाँ का स्थानीय लोकसंगीत से स्पष्ट है जो अभी भी राजस्थान में प्रमुख है। कहा जाता है कि पृथ्वीराज को उनके राज कवि सह दोस्त, चांद बरदाई के साथ अफ़गानिस्तान ले जाया गा था। गोरी के अदालत में, पृथ्वीराज और चांदभर को बंधन में लाया गया था। पृथ्वीराज को तीरंदाजी की कला दिखाने के लिए कहा गया था, जिसमें वह उद्देश्य और ध्वनि सुनकर बस निशाना लगा सकता है। इसे शब्दभेदी- बाण भी कहा जाता है। गोरी ने उसे इस कला को दिखाने को कहा. खेल को खुद के लिए दिलचस्प बनाने के लिए, उसने अपने आँखों को गर्म लोहे के धातु से छेद करवाया. चांदभर कहते है,"एक राजा, भले ही एक कैदी हो, एक राजा से ही आदेश प्राप्त कर सकता है। इसलिए यह एक सम्मान होगा अगर आप उसे "निशाना लगाने का आदेश दे". तब वह कुछ श्लोक या कविता कहता है, उन पंक्तियों में से कुछ थे,"चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ताऊ पर सुल्तान है मत चुको चौहान।". चार बांस मतलब चार बाम्बू के छड़ी, चौबीस गज लगबग 24 गज, आंगल अष्ट प्रवान मतलब आट उँगलियों जितनी चौड़ाई. यह सब एक साथ हर दृष्टि से गोरी का सिंहासन पर बैठने का स्थान बता देता अर्थात चार बांस उंच छड़ी,24 गज दूरी पर और पूरी आट उंगलियाँ ऊपर गोरी बैठा था। "आगे बड़ो ओ चौहान और उद्धेश चूकना नहीं". पृथ्वीराज इस तरह गोरी को उसीके अदालत में मारता है और स्पष्ट रूप से अपनी मौत को दावत है।[1 ]

परिणाम संपादित करें

राजपूत राज्यों जैसेसरस्वती, सामना, कोहराम और हांसी को गोरी ने बिना किसी कठिनाई से कब्ज़ा किया था और बिना किसी चुनौती के वह अजमेर के ओर बड़ा. हारा हुआ पृथ्वीराज को उसकी राजधानी तक पीछा किया जहाँ उसे बंधी के रूप में, वापस अफ्घनिस्तान लाया गया। शहाब-उद-दीन-मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के बेटे, कोला, को बख्शा जिसने बदले में गोरी के तरफ वफादारी की शपथ ली।

घोर में एक बंधी के रूप में, पृथ्वीराज को जंजीरों में सुल्तान मुहम्मद गोरी के सामने लाया गया। गोरी पृथ्वीराज को अपनी आँखे नीचे झुकाने की आदेश देता है। लेकिन पृथ्वीराज उसे इनकार करता है और कहा"सच्चा राजपूत अपनी ऑंखें झुकाता है जब वह मरता है".वह सुनने के बाद घोरी घुस्से से आग बबूला हुआ और अपनी आदमियों को पृथ्वीराज को लाल गर्म लोहे की छड़ी से अँधा बनाने की आदेश देता है। कुछ समय बाद घोरी तीरंदाजी प्रतियोगिता का एक व्यवस्था करता है। तब चन्द्रा बार्दी जो घोरी राज्य में कवि के रूप में शामिल हुआ था, उसे कहता है कि पृथ्वीराज एक नामची धनुर्धर है जो ध्वनि सुनके अपना निशाना लगा सकता है। घोरी ने वह मानने को इनकारगोरी आश्चर्यचकित हुआ। तब चन्द्रा बरडी ने उत्तर दिया कि वह एक राजा है, और वह एक राजा से ही आदेश लेगा, उसके राजदरबार के सदस्यों से नहीं। यह उसका अहंकार को संतुष्ट करेगा। वास्तव में घोरो को मारने क़ी वह एक रणनीति थी जो चाँद और पृथ्वीराज ने पहले से ही विचार किया था। और घोरी को मारने के बाद उन्होंने एक दूसरे पर प्रहार करना भी तैय था। उसके बाद पृथ्वीराज चौहान को प्रतियोगिता क्षेत्र में लाया गया। चाँद पहले से ही वहाँ था और घोरी को मारने का अधिक सहायता दोहे के रूप में दिया जो सिर्फ पृथ्वीराज समझ सकता था।"चार भाष चौबीस गज अंगुल हस्त प्रमाण, त ऊपर सुल्तान है अब मत चुके चौहान".जैसे ही घोरी ने पृथ्वीराज को निशाना लगाने का आदेश दिया, उसें अपना कमान अपने कान तक खींचा और घोरी को ठीक उसके गले में मारा. मौके पर ही घोरी क़ी मृत्यु हो गयी। पृथ्वीराज ने चीख कर कहा,"मै ने मेरे अपमान का बदला लिया है".और तब चाँद ने पृथ्वीराज पर वार किया और पृथ्वीराज ने चाँद पर वार किया, इस प्रकार वे दुश्मन द्वारा फिरसे बंदी नहीं होंगे। और वीर मौत मरे. जैसे संयोगिता को महसूस होता है कि पृथ्वीराज मर रहा है, वह भी मर जाती है। और हम सभी, सभी प्यारे कलाकार खास करके पृथ्वीराज और संयोगिता को याद करते है।

कलाकार संपादित करें

किशोर कलाकार संपादित करें

वयस्क व्यक्ति कलाकार संपादित करें

अतिथि कलाकार संपादित करें

संदर्भ संपादित करें

बाहरी कड़ियां संपादित करें