धूर्ताख्यान प्राकृत में रचित एक आख्यान ग्रन्थ है। इसके रचयिता हरिभद्र सुरि हैं। इसके पाँच आख्यानों में पाँच धूर्तों ने अपने-अपने ऐसे कथानक सुनाए हैं जिनसे अनेक पौराणिक अतिशयोक्तिपूर्ण वृत्तांतों की व्यंग्यात्मक आलोचना होती है। इस प्रकार यह पद्यात्मक रचना प्राकृत में ही नहीं, किंतु प्राचीन भारतीय साहित्य में व्यंग्यकथा का एक अपूर्व उदाहरण है।

धूर्ताख्यान की कथावस्तु अतिशय सरल और प्रांजल है। इसमें पाँच धूर्तों की कथा है। प्रत्येक धूर्त असम्भव, अबुद्धिगम्य और काल्पनिक कथा कहता है, जिसको दूसरा धूर्त साथी रामायण, महाभारत, विष्णुपुराण, शिवपुराण आदि ग्रंथों के समानान्तर कथा प्रमाण उद्धत कर अपना समर्थन देता है। अन्तिम पाँचवीं कथा एक धूर्त भी कहती है और वह कथा कहने की प्रक्रिया बदल देती है। वह अपने जीवन की अनुभव कथा तो सुनाती ही है और स्वयं ही पौराणिक आख्यानों से उसका समर्थन भी करती है। अन्त में वह यह कह कर चारों धूर्तों को आश्चर्यचकित कर देती है कि यदि वे उसकी अनुभव कथा को सत्य मान लें, तो उन्हे उसका दास बनना पड़ेगा और यदि उसके समान्तर कहे गये पौरणिक आख्यानों को असत्य मानें, तो सभी को भोजन देना पड़ेगा। इस प्रकार, एक नारी अपनी चतुराई और पाण्डित्य से उन चारों धूर्त पुरुषों को मूर्ख बनाती है।

'धूर्ताख्यान' में उन्होंने पौराणिक परम्परा में पल रहे अन्धविश्वासों का सचोट निरसन किया है। हरिभद्र ने धूर्ताख्यान में वैदिक परम्परा में विकसित इस धारणा का खण्डन किया है कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, बाहु से क्षत्रिय, पेट से वैश्य तथा पैर से शूद्र उत्पन्न हुए हैं। इसी प्रकार कुछ पौराणिक मान्यताओं यथा – शंकर के द्वारा अपनी जटाओं में गंगा को समा लेना, वायु के द्वारा हनुमान का जन्म, सूर्य के द्वारा कुन्ती से कर्ण का जन्म, हनुमान के द्वारा पूरे पर्वत को उठा लाना, बन्दरों के द्वारा सेतु बाँधना, श्रीकृष्ण के द्वारा गोवर्धन पर्वत धारण करना, गणेश का पार्वती के शरीर के मैल से उत्पन्न होना, पार्वती का हिमालय की पुत्री होना आदि अनेक पौराणिक मान्यताओं का व्यंग्यात्मक शैलों में निरसन किया है। हरिभद्र 'धूर्ताख्यान' की कथा के माध्यम से कुछ काल्पनिक बातें प्रस्तुत करते हैं और फिर कहते हैं कि यदि पुराणों में कही गयी उपर्युक्त बातें सत्य हैं तो ये सत्य क्यों नहीं हो सकतीं। इस प्रकार धूर्ताख्यान में वे व्यंग्यात्मक किन्तु शिष्ट शैली में पौराणिक मिथ्या विश्वासों की समीक्षा करते हैं।

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