धोलावीरा ( गुजराती; ધોળાવીરા) भारत के गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले की भचाऊ तालुका में स्थित एक पुरातत्व स्थल है। इसका नाम यहाँ से एक किमी दक्षिण में स्थित ग्राम पर पड़ा है, जो राधनपुर से 165 किमी दूर स्थित है। धोलावीरा में सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेष और खण्डहर मिलते हैं और यह उस सभ्यता के सबसे बड़े ज्ञात नगरों में से एक था। इस पुरातत्व स्थल को धोलावीरा गांव के निवासी शंभूदान गढ़वी  ने 1960 के दशक के प्रारम्भ में खोजा था, जिन्होंने इस स्थान पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए वर्षों तक प्रयास किये।[1][2] भौगोलिक रूप से यह कच्छ के रण पर विस्तारित कच्छ मरुभूमि वन्य अभयारण्य के भीतर खादिरबेट द्वीप पर स्थित है। यह नगर 47 हेक्टर (120 एकड़) के चतुर्भुजीय क्षेत्रफल पर फैला हुआ था। बस्ती से उत्तर में मनसर जलधारा और दक्षिण में मनहर जलधारा है, जो दोनों वर्ष के कुछ महीनों में ही बहती हैं। यहाँ पर आबादी लगभग 2650 ईसापूर्व में आरम्भ हुई और 2100 ईपू के बाद कम होने लगी। कुछ काल इसमें कोई नहीं रहा लेकिन फिर 1450 ईपू से फिर यहाँ लोग बस गए। नए अनुसंधान से संकेत मिलें हैं कि यहाँ अनुमान से भी पहले, 3500 ईपू से लोग बसना आरम्भ हो गए थे और फिर लगातार 1800 ईपू तक आबादी बनी रही।[3][4] धोलावीरा पांच हजार साल पहले विश्व के सबसे व्यस्त महानगर में गिना जाता था था। इस हड़प्पा कालीन शहर धोलावीरा को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में (2021 चीन में संपन्न यूनेस्को की ऑनलाइन बैठक में) शामिल किया गया है। यह भारत का 40वां विश्व धरोहर स्थल है(march 2022 तक कोई नयी साईट नही खोजी गई है यह नवीनतम है)। [5][6][7]

धोलावीरा

खुदाई स्थल का हिस्सा
धोलावीरा is located in भारत
धोलावीरा
Shown within India#India Gujarat
धोलावीरा is located in गुजरात
धोलावीरा
धोलावीरा (गुजरात)
स्थान खादिरबेट, कच्छ जिला, गुजरात, भारत
प्रकार बसाहट
क्षेत्रफल 47 हे॰ (120 एकड़)
इतिहास
काल हड़प्पा 1 से हड़प्पा 5
संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता
स्थल टिप्पणियां
स्थिति भग्नावशेष
सार्वजनिक अभिगम हाँ
आधिकारिक नाम: धोलावीरा: एक हड़प्पाकालीन शहर
मापदंड सांस्कृतिक: (iii)(iv)
निर्दिष्ट 2021 (44वां सत्र)
संदर्भ सं. 1645

विवरण संपादित करें

 
धोलावीरा का परिष्कृत जलाशय

गुजरात में कच्छ जिले में स्थित है। उस जमाने में लगभग 50000 लोग यहाँ रहते थे। 4000 साल पहले इस महानगर के पतन की शुरुआत हुई। सन 1450 में वापस यहां मानव बसाहट शुरु हुई। पुरातत्त्व विभाग का यह एक अति महत्त्व का स्थान २३.५२ उत्तर अक्षांश और ७०.१३ पूर्व देशांतर पर स्थित है। यहाँ उत्तर से मनसर और दक्षिण से मनहर छोटी नदी से पानी जमा होता था। हड़प्पा संस्कृति के इस नगर की खोज पुरातत्वविद जगपति जोशी ने 1969 में की और 1989 से 1991 तक आर. एस. बिष्ट के द्वारा इसका उत्खनन किया गया।

हड़प्पा, मोहन जोदडो, गनेरीवाला, राखीगढ, धोलावीरा तथा लोथल ये छः पुराने महानगर पुरातन संस्कृति के नगर है। जिसमें धोलावीरा और लोथल भारत में स्थित है। इस जगह का खनन पुरातत्त्व विभाग के डॉ॰ आर. एस. बिस्त ने किया था। धोलावीरा का 100 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तार था। प्रांत अधिकारियों के लिये तथा सामान्य जन के लिये अलग-अलग विभाग थे, जिसमें प्रांत अधिकारियों का विभाग मजबूत पत्थर की सुरक्षित दीवार से बना था, जो आज भी दिखाई देता है। अन्य नगरों का निर्माण कच्ची पक्की ईंटों से हुआ है। धोलावीरा का निर्माण चौकोर एवं आयताकार पत्थरों से हुआ है, जो समीप स्थित खदानो से मिलता था। ऐसा लगता है कि धोलावीरा में सभी व्यापारी थे और यह व्यापार का मुख्य केन्द्र था। यह कुबेरपतियों का महानगर था। ऐसा लगता है कि सिन्धु नदी समुद्र से यहाँ मिलती थी। भूकंप के कारण सम्पूर्ण क्षेत्र ऊँचा-नीचा हो गया। आज के आधुनिक महानगरों जैसी पक्की गटर व्यवस्था पांच हजार साल पहले धोलावीरा में थी। पूरे नगर में धार्मिक स्थलों के कोई अवशेष नहीं पायें गए हैं। इस प्राचीन महानगर में पानी की जो व्यवस्था की गई थी वह अद्दभुत है। आज के समय में बारिस मुश्किल से होती है। बंजर जमीन के चारो ओर समुद्र का पानी फैला हुआ है। इस महानगर में अंतिम संस्कार की अलग-अलग व्यवस्थाएँ थी।

भारत, जापान तथा विश्व के अन्य निष्णांतो ने कम्प्यूटर की मदद से नगर की कुछ तस्वीरें बनायी है। कृपया उसे देखकर महानगर की भव्यता का दर्शन करें। . यह तीन भागो मै बटा हुआ छेत्र है खेल के मैदान का पहला साक्ष्य भी यही से मिलता है

ऐतिहासिक साईन बोर्ड संपादित करें

 
धोलावीरा के उत्तरीय महाद्वार के ऊपर लिखे गये दस अक्षर

सुरक्षित किले के एक महाद्वार के ऊपर उस जमाने का साईन बोर्ड पाया गया है, जिस पर दस बड़े-बड़े अक्षरो में कुछ लिखा है, जो पांच हजार साल के बाद आज भी सुरक्षित है। वह महानगर का नाम है अथवा प्रान्त अधिकारियों का नाम, यह आज भी एक रहस्य है। ऐसा लगता है जैसे नगरजनो का स्वागत हो रहा हों? सिन्धु घाटी की लिपि आज भी एक अनसुलझी पहेली है। आप ही देखें सुंदर अक्षरों में क्या लिखा है।

सिन्धु घाटी के लोगों की भाषा एवं लिपि संपादित करें

हड्डपा, मोहन जोदडो तथा धोलावीरा के लोग कौन सी भाषा बोलते थे और किस लिपि का उपयोग करते थे, अज्ञात है। यहाँ विभिन्न प्रकार के लगभग ४०० मूल संकेत पायें गए हैं। साधारणतया शब्दों क़ी लिखावट दायें से बायीं दिशा क़ी ओर है। इनमें से अधिकतर लिपि मुहर (पत्थर पर उभरीं हुई प्रतिकृति) तथा छाप (मिट्टी क़ी पट्टिका पर दबाकर बनाई गई प्रतिकृति) के रूप में पायी गई है। इनमें से कुछ लिपि तांबें और कांसे के प्रस्तर तथा कुछ टेराकोटा और पत्थर के रूप में पायी गई है। ऐसा लगता है कि इन मुहरों का उपयोग व्यापार और आधिकारिक प्रशासकीय कार्य के लिए किया जाता रहा होगा। इन लिपियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी सामूहिक उत्सव (मेला, किसी प्रकार का सामूहिक वाद-विवाद जिसमें अनेक समूह के नेताओं ने भाग लिया हो) के पोस्टर और बैनर के रूप में प्रयुक्त किया गया हो और किसी विशेष समूह के नामों को इंगित करता हो।

सिंधु घाटी सभ्यता‎ संपादित करें

सिंधु घाटी सभ्यता(2500-1750 ई.पू.) यह हड़प्पा संस्कृति विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। इसका विकास सिंधु नदी के किनारे की घाटियों में मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, चन्हुदडो, रन्गपुर्, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी, दैमाबाद, सुत्कन्गेदोर, सुरकोतदा और हड़प्पा में हुआ था। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।

महानगर में आपका स्वागत संपादित करें

  • हवाई जहाज से कच्छ के पुराने ऐतिहासिक पाटनगर भुज हवाई अड्डे पर उतर सकते हैं। जहां से 300 किलोमीटर की दूरी पर धोलावीरा स्थित है।
  • ट्रेन से अहमदाबाद वीरमगाम से आगे सामखियाली पर उतरें। वहां से 160 किलोमीटर की दूरी पर धोलावीरा स्थित है।
  • सड़क मार्ग से अहमदाबाद या पालनपुर से रापर या भचाउ होकर धोलावीरा आ सकते हैं।
  • कृपया पानी की व्यवस्था अपने आप करें। धोलावीरा में शाकाहारी खाना ओर पेयजल मिलेगा। यहाँ सड़कमार्ग पक्का है। गरमी और धूप से बचने के लिए नवम्बर से मार्च के बीच में यात्रा करे तो सुविधा होगी।

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Arora, Namit (2021-01-18). Indians: A Brief History of A Civilization (अंग्रेज़ी में). Penguin Random House India Private Limited. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5305-287-4.
  2. Avikunthak, Ashish (2021-10-31). Bureaucratic Archaeology: State, Science and Past in Postcolonial India (अंग्रेज़ी में). Cambridge University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-316-51239-5.
  3. "Ruins on the Tropic of Cancer".
  4. "Where does history begin?".
  5. Kenoyer & Heuston, Jonathan Mark & Kimberley (2005). The Ancient South Asian World. New York: Oxford University Press. पृ॰ 55. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780195222432.
  6. Centre, UNESCO World Heritage. "Dholavira: A Harappan City - UNESCO World Heritage Centre". whc.unesco.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 3 June 2016.
  7. Sengupta, Torsa, et al. (2019)."Did the Harappan settlement of Dholavira (India) collapse during the onset of Meghalayan stage drought?" in Journal of Quaternary Science, First published: 26 December 2019.

23°53′10″N 70°11′03″E / 23.88611°N 70.18417°E / 23.88611; 70.18417