श्री नन्दकिशोर नौटियाल (जन्म : 21 सितंबर सन् 1929 - गोलोकवास: 30 अगस्त 2019, देहरादून) वरिष्ठ पत्रकार, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष तथा `नूतन सवेरा' के संपादक रहे। वे हिन्दी ब्लिट्ज के सम्पादक भी रह चुके हैं। हिन्दी ब्लिट्ज़ के पूर्व संपादक तथा महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी व श्री बदरीनाथ मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष श्री नंदकिशोर नौटियाल जी अपने अंतिम क्षण तक मुंबई और उत्तराखंड की सामाजिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक संस्थाओं में सक्रिय भूमिका निभाते रहे।

हिंदी भाषा आंदोलन के एक सक्रिय सेवक (एक्टिविस्ट) श्री नंदकिशोर नौटियाल की जन्मतिथि स्कूल के प्रमाण पत्र के अनुसार 15 जून 1931 है, जबकि उनकी वास्तविक जन्मतिथि 21 सितम्बर 1929 है।

पत्रकारिता के उच्च आदर्शों और मूल्यों के लिए समर्पित श्री नंदकिशोर नौटियाल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वह पत्रकारों की उस पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं, जिसके लिए पत्रकारिता एक मिशन रही है। उन्होंने पत्रकारिता के साथ-साथ सामाजिक दायित्व और राजनीतिक वैचारिकता को पूरी निष्ठा के साथ निभाया। वक़्त के चाहे कितने ही तेज़ झोंके आये हों, कितने ही तूफ़ान उठे हों, लेकिन वह अपने कर्तव्य पथ पर सदा अडिग बने रहे और आगे बढ़ते रहे हैं।

पं. नंदकिशोर नौटियाल का जन्म उत्तराखंड राज्य में पौड़ी गढ़वाल ज़िले के एक छोटे से पहाड़ी गांव में पं. ठाकुर प्रसाद नौटियाल के घर हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा गांव में और दिल्ली में हुई। देश-दुनिया के प्रति जागरूक नौटियालजी छात्र जीवन के दिनों में ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। दिल्ली की छात्र कांग्रेस की कार्यकारिणी के सदस्य के तौर पर उन्होंने 1946 में बंगलोर में हुए छात्र कांग्रेस के अखिल भारतीय अधिवेशन में भाग लिया।1946 में ही नौसेना विद्रोह के समर्थन में जेल भरो आंदोलन में शिरकत की। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनकी जीवनयात्रा 1948 से शुरू हुई। नवभारत साप्ताहिक (मुंबई), दैनिक लोकमान्य (मुंबई) और लोकमत (नागपुर) में 1948 से 1951 तक कार्य किया। 1951 में दिल्ली प्रेस समूह की `सरिता' पत्रिका से जुड़े। दिल्ली में `मजदूर जनता', `हिमालय टाइम्स', `नयी कहानियां' और `हिंदी टाइम्स' के लिए कई साल कार्य किया। नौटियालजी धीरे-धीरे मज़दूर आंदोलन की तरफ़ अग्रसर होते गये। 1954 से 1957 तक दिल्ली में सीपीडब्ल्यूडी वर्कर्स यूनियन के सचिव रहे और अनेक बार आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कई मज़दूर संगठन बनाये और पत्रकार यूनियनों में सक्रिय रहे। गोवा मुक्ति संग्राम में भाग लिया। पृथक हिमालयी राज्य तथा उत्तराखंड राज्य आंदोलन में 1952 - 53 में सक्रिय हिस्सा लिया तथा बाद में 1990 - 99 में भी उत्तराखंड आंदोलन से जुड़े।

सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न रहते हुए भी नौटियालजी ने पत्रकारिता और लेखन को अपना व्यवसाय बनाया। अनेक साप्ताहिक पत्रों और पत्रिकाओं के लिए काम करते हुए 1962 में उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया, जब मुंबई से साप्ताहिक हिंदी `ब्लिट्ज़' निकालने के लिए उसके प्रथम संपादक मुनीश सक्सेना और प्रधान संपादक आर के करंजिया ने उन्हें चुना। 10 साल सहायक संपादक रहने के बाद 1973 में नौटियालजी हिंदी `ब्लिट्ज़' के संपादक बने। हिंदी `ब्लिट्ज़' और `ब्लिट्ज़' संस्थान को सामाजिक-सांस्कृतिक जगत से जोड़ने में पहल की और ब्लिट्ज़ नेशनल फोरम के महासचिव रहे, जिसके फलस्वरूप नौटियालजी के संपादनकाल में हिंदी `ब्लिट्ज़' ने नयी ऊंचाइयों को छूआ।

1992 में हिंदी `ब्लिट्ज़' से अवकाश प्राप्त करने के बाद भी नौटियालजी के पत्रकार मन ने चैन से बैठना स्वीकार नहीं किया।1993 में उन्होंने पूरे जोश-खरोश के साथ `नूतन सवेरा' साप्ताहिक का प्रकाशन शुरू किया। `नूतन सवेरा' ने नौटियालजी के कुशल संपादन में शीघ्र ही देश-भर में अपनी पहचान बनायी। `नूतन सवेरा' ने मानवीय मूल्यों, भारतीय संस्कृति तथा जनपक्षीय पत्रकारिता की हिंदी `ब्लिट्ज़' की पंरपरा को आगे बढ़ाने में भारी योगदान किया तथा आज भी कर रहा है। अब 'नूतन सवेरा' का प्रकाशन उनके दोनों बेटे राजीव नौटियाल और भारत भूषण नौटियाल कर रहे हैं ।

'नूतन सवेरा' अब website : www.nutansavera.com पर भी उपलब्ध है।

राष्ट्रहित के मुद्दों पर `नूतन सवेरा' और नौटियालजी की दो टूक टिप्पणियों के बारे में अधिक कहने की आवश्यकता नहीं है। `नूतन सवेरा' के माध्यम से वह राष्ट्रभाषा हिंदी की अस्मिता के लिए तन-मन-धन से संघर्षरत रहे। राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई के उपाध्यक्ष की हैसियत से भारत में पहली बार महासंघ के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ बंबई हाई कोर्ट में हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किये जाने की याचिका दायर की थी।

पत्रकारिता के अलावा नौटियालजी प्रगतिशील राजनीति और समाजसेवा के क्षेत्र में भी बदस्तूर सक्रिय रहे। वह महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के स्थापनाकाल से ही सदस्य रहे और कार्याध्यक्ष के रूप में विशेष योगदान दिया। उनके कार्यकाल में पहली बार 2002 में पुणे में अकादमी ने भव्य अंतरराष्ट्रीय हिंदी संगम आयोजित किया तथा पहली बार 2008 में मुंबई, 2009 में नागपुर तथा नांदेड़ में सर्वभारतीय भाषा सम्मेलन संपन्न किया, जिसमें 22 भाषाओं के विद्वानों ने भाग लिया।

वह उत्तराखंड सरकार में `श्री बदरीनाथ - केदारनाथ मंदिर समिति' के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके कार्यकाल में श्री बदरीनाथ मंदिर के 165 वर्ष के इतिहास में पहली बार गर्भगृह की दीवारों और कपाट तथा बदरीविशाल के सिंहासन को स्वर्णमंडित करवाया गया। इसी तरह, श्री केदारनाथजी में आदि शंकराचार्य की समाधि का जीर्णोद्धार तथा उसी स्थल पर 40 x 60 फीट का ध्यान-सभागृह निर्मित किया गया। उन्होंने विश्रामगृहों का जीर्णोद्धार करवाया तथा मंदिर की फार्मेसी के साथ फार्मेसिस्ट का कोर्स शुरू करवाया आदि अनेक सुधार करवाये। इससे पूर्व 2003 में उन्होंने मुंबई में जैन तेरापंथी आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ के 'अणुव्रत आंदोलन' के तत्वावधान में 'अखिल भारतीय अहिंसा समवाय सम्मेलन' आयोजित किया। जैन आचार्य रूप मुनिजी महाराज, स्व. जैन आचार्य मुनि सुशील कुमारजी का उन्हें सान्निध्य प्राप्त रहा। जनवरी 2008 में 'बालकृष्ण निधि ट्रस्ट' की ओर से क्रास मैदान में नौ दिवसीय 'श्रीमद भागवत कथा ज्ञान - यज्ञ' का आयोजन किया गया, जिसके वह कार्याध्यक्ष थे तथा मुंबई के प्रमुख व्यवसायी और प्रसिद्ध समाज सेवी आरएम भट्टड़ अध्यक्ष थे। इस आयोजन स्थल को 'भक्तिधाम' नाम दिया गया था; जिसके अंतर्गत चार धाम, 12 ज्योतिर्लिंग तथा देश के 40 बड़े मंदिरों की अनुकृतियां लगायी गयी थीं।

श्री नंदकिशोर नौटियाल `वर्ल्ड श्रद्धा फाउंडेशन', मुंबई के भी चेयरमैन रहे, जिसके तत्वावधान में और जगद्गुरु शंकराचार्य अनंतश्री विभूषित स्वामी स्वरूपानंदजी सरस्वती के मार्गदर्शन में 2008 में मुंबई में नौ दिवसीय `रामायण मेले' का भव्य आयोजन किया।

वह राष्ट्रभाषा महासंघ के उपाध्यक्ष और सम्मानित साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था `परिवार' के कार्यकारी अध्यक्ष रहे।

साहित्यिक और पत्रकारिता प्रतिनिधिमंडलों के सदस्य के तौर पर नौटियालजी अमरीका, कनाडा, उत्तर कोरिया, लीबिया, इटली, रूस, फिनलैंड, नेपाल, सूरीनाम आदि देशों की यात्रा की। उन्होंने विश्व हिंदी सम्मेलनों में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया।

श्री नंदकिशोर नौटियाल को हिंदी साहित्य सम्मेलन का 'साहित्य वाचस्पति सम्मान', 'शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार: 1981', 'आचार्य तुलसी सम्मान', 'उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का पत्रकार भूषण सम्मान', 'लोहिया मधुलिमये सम्मान' समेत रोटरी, लायंस आदि अनेक राष्ट्रीय स्तर के सम्मान प्राप्त हुए।

पुरस्कार एवं सम्मान

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बाहरी कड़ियाँ

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