निचिरेन बौद्ध धर्म
निचिरेन बौद्ध धर्म महायान बौद्ध धर्म की एक शाखा है, जिसका नाम जापान के बौद्ध साधु निचिरेन दाइशोनिन (1222–1282) के नाम पर रखा गया है। यह धर्म सद्धर्मपुण्डरीक सूत्र (लोटस सूत्र) को गौतम बुद्ध (शाक्यमुनि) की सर्वोच्च शिक्षा मानता है और इसे आत्मज्ञान और सार्वभौमिक सुख प्राप्त करने का सबसे प्रभावी साधन मानता है। निचिरेन बौद्ध धर्म में नम-म्योहो-रेन्गे-क्यो का जाप प्रमुख जाप है, जो व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है। [1]
उत्पत्ति
संपादित करेंसद्धर्मपुंडरीक सूत्र और गौतम बुद्ध
संपादित करेंसद्धर्मपुंडरीक सूत्र महायान बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने अपने जीवन के अंतिम आठ वर्षों में इस सूत्र का उपदेश दिया। यह ग्रंथ बुद्ध की अन्य शिक्षाओं के समापन और पूर्णता का प्रतीक है।
लोटस सूत्र की प्रमुख शिक्षा यह है कि सभी जीवों में बौद्धत्व (बुद्ध की अवस्था) प्राप्त करने की क्षमता है। इसमें यह भी बताया गया है कि बुद्ध का अस्तित्व अनन्त है और वह सभी जीवों को मार्गदर्शन देने के लिए हमेशा उपस्थित रहते हैं।
गौतम बुद्ध ने लोटस सूत्र को अपनी शिक्षाओं का सार बताया। यह माना जाता है कि उन्होंने इसे मौखिक रूप से अपने शिष्यों को सिखाया, जिन्होंने इसे बाद में संकलित किया। यह सूत्र दया, सह-अस्तित्व, और आत्मज्ञान की शिक्षाओं पर केंद्रित है।
निचिरेन दाइशोनिन का जीवन
संपादित करेंनिचिरेन दाइशोनिन का जन्म 16 फरवरी 1222 को जापान के एक छोटे से गांव, कोमिनाटो में हुआ था। एक गरीब मछुआरे परिवार में जन्मे, निचिरेन ने छोटी उम्र से ही बौद्ध धर्म का गहराई से अध्ययन किया। उन्होंने अपने समय के विभिन्न बौद्ध संप्रदायों की शिक्षाओं का अध्ययन किया, लेकिन पाया कि अधिकांश शिक्षाएँ उस युग की समस्याओं का समाधान करने में सक्षम नहीं थीं।
निचिरेन ने निष्कर्ष निकाला कि केवल सद्धर्मपुंडरीक सूत्र ही बौद्ध धर्म की सच्ची और सर्वोच्च शिक्षा है। उन्होंने 28 अप्रैल 1253 को सार्वजनिक रूप से नम-म्योहो-रेन्गे-क्यो* का जाप करने और प्रचार करने की घोषणा की। यह दिन निचिरेन बौद्ध धर्म के प्रारंभ का प्रतीक माना जाता है।
निचिरेन की शिक्षाओं का प्रचार और संघर्ष
निचिरेन दाइशोनिन का जीवन चुनौतियों से भरा था। उन्होंने अपनी शिक्षाओं का साहसपूर्वक प्रचार किया और अन्य बौद्ध संप्रदायों की आलोचना की, जिससे उन्हें कई विरोधियों का सामना करना पड़ा। उन्हें दो बार निर्वासन झेलना पड़ा और उनके जीवन पर कई बार हमला हुआ।
इन कठिनाइयों के बावजूद, निचिरेन ने अपने अनुयायियों को प्रोत्साहित किया कि वे अभ्यास और विश्वास के माध्यम से अपने जीवन को बदल सकते हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को गोशो नामक पत्र लिखे, जिनमें उनकी शिक्षाओं का सार दिया गया है।
निचिरेन बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाएँ
संपादित करें1. नम-म्योहो-रेन्गे-क्यो
संपादित करेंयह मंत्र निचिरेन बौद्ध धर्म का मूल आधार है।
- नम: श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक।
- म्योहो: ब्रह्मांड का अद्वितीय नियम, जो जीवन और मृत्यु को जोड़ता है।
- रेन्ग: कारण और प्रभाव का नियम।
- क्यो: बुद्ध की शिक्षाओं की ध्वनि।
इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति अपनी आंतरिक बुद्धत्व को जाग्रत कर सकता है और जीवन की सभी कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम बनता है।
2. दस जगत (दस संसार)
संपादित करेंनिचिरेन बौद्ध धर्म के अनुसार, हर व्यक्ति दस अवस्थाओं में से किसी एक में होता है। ये अवस्थाएँ हैं:
1. नरक (अत्यधिक पीड़ा)
2. भूख (असंतोष और लालच)
3. पशुता (अज्ञान और स्वार्थ)
4. क्रोध (घृणा और अहंकार)
5. मानवता (शांति और सामान्यता)
6. स्वर्ग (अस्थायी खुशी)
7. शिक्षा (ज्ञान की खोज)
8. आत्मबोध (आंतरिक समझ)
9. बोधिसत्व (दूसरों की मदद करने की भावना)
10. बुद्धत्व (पूर्ण आत्मज्ञान)
ये अवस्थाएँ व्यक्ति के भीतर होती हैं और जाप के माध्यम से व्यक्ति निचली अवस्थाओं से उच्च अवस्थाओं में जा सकता है।
3. तीन विघ्न और चार दानव
संपादित करेंनिचिरेन ने चेतावनी दी कि अभ्यास के दौरान व्यक्ति को आंतरिक और बाहरी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- तीन विघ्न: व्यक्तिगत लालच, क्रोध, और अज्ञान।
- चार दानव: मानसिक और सामाजिक अवरोध।
इन बाधाओं का सामना करना और उन्हें पार करना अभ्यास का एक अभिन्न हिस्सा है।
4. कोसेन-रुफु
संपादित करेंकोसेन-रुफु का अर्थ है सद्धर्मपुंडरीक सूत्र की शिक्षाओं का व्यापक प्रचार। यह केवल व्यक्तिगत आत्मज्ञान ही नहीं, बल्कि समाज और दुनिया के परिवर्तन का भी उद्देश्य रखता है।
निचिरेन बौद्ध धर्म का विकास
संपादित करें- सॉका गक्काई
1930 में जापान में स्थापित सॉका गक्काई निचिरेन बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा संगठन है। यह संगठन शिक्षा, संस्कृति, और शांति के लिए काम करता है। सॉका गक्काई इंटरनेशनल (SGI) अब 192 देशों में सक्रिय है और इसके लाखों सदस्य हैं।
- आधुनिक समाज में प्रभाव
SGI ने निचिरेन बौद्ध धर्म को आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिक बनाया है। संगठन व्यक्तिगत विकास, सामाजिक न्याय, और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों पर काम करता है।
==निचिरेन बौद्ध धर्म का प्रभाव==
आज, निचिरेन बौद्ध धर्म का अभ्यास विश्वभर में लाखों लोग करते हैं। इसका प्रभाव एशिया, अमेरिका, और यूरोप जैसे क्षेत्रों में देखा जा सकता है। इस धर्म की शिक्षाएँ व्यक्तिगत और सामूहिक समस्याओं का समाधान प्रदान करती हैं। इसके अभ्यासकर्ता यह मानते हैं कि जाप से व्यक्ति अपनी कठिनाइयों को अवसरों में बदल सकता है। SGI और अन्य संगठन निचिरेन बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का उपयोग कर विश्व शांति, मानव अधिकार, और समानता के लिए काम कर रहे हैं।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Soka Gakkai (global)". Soka Gakkai (global) (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2025-01-02.