निषादराज कोल,भील,बिंद,केवट,मल्लाह,मझवार,कहार,कश्यप,रैकवार,बाथम, गोडिया ,मछुआरा ,आदिवासी,मूलनिवासी,के राजा का उपनाम है। वे ऋंगवेरपुर के राजा थे, उनका नाम गुह्यराज था। वे [ आदिवासी] समाज के थे और उन्होंने ही वनवासकाल में राम, सीता तथा लक्ष्मण को केवटराज जी से कहकर गंगा पार करवाया था। हालाँकि तुलसीदास जी के रामचरितमानस में इस प्रसंग का वर्णन अलग ढंग से किया गया है, जिसमें केवट श्रीराम को नाव पर चढ़ाने के पहले उनके चरण धोने की शर्त यह कहते हुए रखते है कि जिनके चरण लगमे से पत्थर की शिला सुन्दर स्त्री हो गयी, फिर मेरी नाव तो काठ की है, और वह पत्थर से कठोर भी नहीं होता तो कही वह विलुप्त न हो जाए और ऐसा हुआ तो मैं लुट जाऊँगा। प्रभु ने उसकी शर्त मुस्कुराते हुए स्वीकार कर लिया।

वे [राम] के बाल सखा थे। श्री निषाद राज व राम ने एक ही गुरुकुल में रहकर शिक्षा प्राप्त की। आदिवासी समाज आज भी इनकी पूजा करते है।

भगवान निषादराज ने प्रभु श्रीराम को केवटराज से कहकर गंगा पार कराये वह श्रंगवेगपुर (प्रयागराज,उप्र) के राजा थे। वनवास जाने के दौरान प्रभु राम ने पहली रात तमसा (टोंस) नदी के तट पर और दूसरी रात निषादराज के क्षेत्र में बिताया था। [1]वनबास के बाद राम ने अपनी पहली रात अपने मित्र श्री निषादराज जी के यहां बिताई।

श्री निषाद राज की आदिवासी सेना ने ही लंका पर विजय प्राप्त की थी।



  1. Pathan, Zafar khan A; Kapadia, Swati (2021-12-31). "CULTURAL AND TRADITION INFLUENCE OF TULSIDAS RAMCHARITMANAS IN FIJI". Towards Excellence: 89–96. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0974-035X. डीओआइ:10.37867/te130410.