जम्मू और कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस
जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस (JKN), जम्मू-कश्मीर के भारतीय राज्य में एक राज्य राजनीतिक पार्टी है। राज्य के सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए संगठन ने 1939 में खुद का नाम बदलकर "नेशनल कॉन्फ्रेंस" कर दिया। इसने 1947 में रियासत के भारत में प्रवेश का समर्थन किया। इससे पहले, 1941 में, गुलाम अब्बास के नेतृत्व में एक समूह ने नेशनल कॉन्फ्रेंस से नाता तोड़ लिया और पुराने मुस्लिम सम्मेलन को पुनर्जीवित किया। पुनर्जीवित मुस्लिम सम्मेलन ने रियासत के पाकिस्तान में विलय का समर्थन किया और आज़ाद कश्मीर के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया।[1] शेख अब्दुल्ला ने 1947 में भारत की आजादी के समय के नेतृत्व में, यह कई दशकों से राज्य में चुनावी राजनीति हावी रही। यह शेख के पुत्र फारूक अब्दुल्ला (1981-2002) और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला (2002-2009) द्वारा बाद में नेतृत्व किया गया है। फारूक अब्दुल्ला को फिर 2009 में पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था।
जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस | |
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दल अध्यक्ष | फारूक अब्दुल्ला (1981–2002 और 2009-वर्तमान तक) |
गठन | जून 11, 1939 |
मुख्यालय | श्रीनगर, जम्मू कश्मीर, भारत |
लोकसभा मे सीटों की संख्या |
3 / 545 |
राज्यसभा मे सीटों की संख्या |
0 / 245 |
राज्य विधानसभा में सीटों की संख्या |
15 / 87 |
विचारधारा |
माध्यमिक पृथकतावाद Pro-India कश्मीर पुनर्गठन |
जालस्थल | http://www.jknc.in/ |
Election symbol | |
भारत की राजनीति राजनैतिक दल चुनाव |
इतिहास
संपादित करेंआजादी से पहले का दौर
संपादित करेंअक्टूबर 1932 में, शेख अब्दुल्ला ने मीरवाइज यूसुफ शाह और चौधरी गुलाम अब्बास के सहयोग से ऑल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस की स्थापना की। 11 जून 1939 को इसका नाम बदलकर ऑल जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस कर दिया गया। इसने नेतृत्व के एक वर्ग को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के लिंक के साथ मुस्लिम सम्मेलन को तोड़ने और फिर से स्थापित करने के लिए प्रेरित किया।[2] राष्ट्रीय सम्मेलन अखिल भारतीय राज्यों के लोगों के सम्मेलन से संबद्ध था। 1947 में शेख अब्दुल्ला इसके अध्यक्ष चुने गए। 1946 में, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने राज्य सरकार के खिलाफ एक गहन आंदोलन शुरू किया। इसे जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के खिलाफ निर्देशित किया गया था। आंदोलन का नारा था "कश्मीर छोड़ो"।
आजादी के बाद की अवधि
संपादित करेंसितंबर 1951 में हुए चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सभी 75 सीटों पर जीत हासिल की। अगस्त 1953 में अपनी बर्खास्तगी तक शेख अब्दुल्ला प्रधान मंत्री बने रहे।
कश्मीरी पंडितों का प्रस्थान
संपादित करेंइसमे जम्मू कश्मीर में आतंकवादी सन्गठन का ज्यादा सक्रिय होने के कारण वहां यह अत्यंत दुखद घटना हुई है जिसका कारण वहां की राजनीतिक पार्टियां भी रही है महबूबा मुफ्ती जो कि पीडीपी पार्टी की अध्य्क्ष है उन्होंने कई बार पथरबाजो को बचाया 29 2017 को जिसमे 4327 लोगो की केस वापस लिए गए। जो बार बार महबूबा मुफ्ती की ऐसे बयानों देश के लिए दुखद हाल ही में पाकिस्तान ने परमाणु बम ईद के लिए नही रखे है इस वक्तव्य से पता चलता है कि वो देशद्रोही और पाकिस्तान की हितेषी भी है और शायद यही कारण की उनको ये देशद्रोह कहने में कोई बुराई नही हैश्रीनगर. आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में हालात सुधरते नहीं दिख रहे हैं। आतंकी संगठन लश्कर-ए-इस्लाम ने पुलवामा में कई जगह पोस्टर लगाए हैं। जिसमें कहा गया है कि कश्मीरी पंडित या तो घाटी छोड़ दें या फिर मरने के लिए तैयार रहें। बता दें कि कश्मीर में साल 1990 में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद से अब तक लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोड़ कर चले गए थे, उस वक्त हुए नरसंहार में सैकड़ों पंडितों का कत्लेआम हुआ था। कैसे टूटा था कश्मीरी पंडितों पर कहर... - कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था। - जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। उसने नारा दिया हम सब एक, तुम भागो या मरो। - इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए। 300 से अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हुई थी हत्या - घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी। - इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। - उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई। उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओँ और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की। सरेआम हुए थे बलात्कार - मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ आतंकियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद मार-मार कर उसकी हत्या कर दी। - घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात बदतर हो गए। - एक स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब - उल - मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की- 'सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं'। - एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा, ने इस निष्कासन के आदेश को दोहराया। -मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरियों को कहा गया की इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाएं। या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो - कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया, जिसमें लिखा था 'या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो। - पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमों को भारत से अलग होने के लिए भड़काना शुरू कर दिया। - इस सबके बीच कश्मीर से पंडित रातों -रात अपना सबकुछ छोड़ने के मजबूर हो गए। कश्मीर में हुए बड़े नरसंहार - डोडा नरसंहार- अगस्त 14, 1993 को बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई। - संग्रामपुर नरसंहार- मार्च 21, 1997 घर में घुसकर 7 कश्मीरी पंडितों को किडनैप कर मार डाला गया। - वंधामा नरसंहार- जनवरी 25, 1998 को हथियारबंद आतंकियों ने 4 कश्मीरी परिवार के 23 लोगों को गोलियों से भून कर मार डाला। - प्रानकोट नरसंहार- अप्रैल 17, 1998 को उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के 27 मौत के घाट उतार दिया था, इसमें 11 बच्चे भी शामिल थे। इस नरसंहार के बाद डर से पौनी और रियासी के 1000 हिंदुओं ने पलायन किया था। - 2000 में अनंतनाग के पहलगाम में 30 अमरनाथ यात्रियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। - 20 मार्च 2000 चित्ती सिंघपोरा नरसंहार होला मना रहे 36 सिखों की गुरुद्वारे के सामने आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी। - 2001 में डोडा में 6 हिंदुओं की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। - 2001 जम्मू कश्मीर रेलवे स्टेशन नरसंहार, सेना के भेष में आतंकियों ने रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी कर दी, इसमें 11 लोगों की मौत हो गई। - 2002 में जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर आतंकियों ने दो बार हमला किया, पहला 30 मार्च और दूसरा 24 नवंबर को। इन दोनों हमलों में 15 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। - 2002 क्वासिम नगर नरसंहार, 29 हिन्दू मजदूरों को मारडाला गया। इनमें 13 महिलाएं और एक बच्चा शामिल था। - 2003 नदिमार्ग नरसंहार, पुलवामा जिले के नदिमार्ग गांव में आतंकियों ने 24 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया था। श्रीनगर. आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में हालात सुधरते नहीं दिख रहे हैं। आतंकी संगठन लश्कर-ए-इस्लाम ने पुलवामा में कई जगह पोस्टर लगाए हैं। जिसमें कहा गया है कि कश्मीरी पंडित या तो घाटी छोड़ दें या फिर मरने के लिए तैयार रहें। बता दें कि कश्मीर में साल 1990 में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद से अब तक लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोड़ कर चले गए थे, उस वक्त हुए नरसंहार में सैकड़ों पंडितों का कत्लेआम हुआ था। कैसे टूटा था कश्मीरी पंडितों पर कहर... - कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था। - जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। उसने नारा दिया हम सब एक, तुम भागो या मरो। - इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए। 300 से अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हुई थी हत्या - घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी। - इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। - उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई। उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओँ और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की। सरेआम हुए थे बलात्कार - मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ आतंकियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद मार-मार कर उसकी हत्या कर दी। - घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात बदतर हो गए। - एक स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब - उल - मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की- 'सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं'। - एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा, ने इस निष्कासन के आदेश को दोहराया। -मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरियों को कहा गया की इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाएं। या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो - कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया, जिसमें लिखा था 'या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो। - पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमों को भारत से अलग होने के लिए भड़काना शुरू कर दिया। - इस सबके बीच कश्मीर से पंडित रातों -रात अपना सबकुछ छोड़ने के मजबूर हो गए। कश्मीर में हुए बड़े नरसंहार - डोडा नरसंहार- अगस्त 14, 1993 को बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई। - संग्रामपुर नरसंहार- मार्च 21, 1997 घर में घुसकर 7 कश्मीरी पंडितों को किडनैप कर मार डाला गया। - वंधामा नरसंहार- जनवरी 25, 1998 को हथियारबंद आतंकियों ने 4 कश्मीरी परिवार के 23 लोगों को गोलियों से भून कर मार डाला। - प्रानकोट नरसंहार- अप्रैल 17, 1998 को उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के 27 मौत के घाट उतार दिया था, इसमें 11 बच्चे भी शामिल थे। इस नरसंहार के बाद डर से पौनी और रियासी के 1000 हिंदुओं ने पलायन किया था। - 2000 में अनंतनाग के पहलगाम में 30 अमरनाथ यात्रियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। - 20 मार्च 2000 चित्ती सिंघपोरा नरसंहार होला मना रहे 36 सिखों की गुरुद्वारे के सामने आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी। - 2001 में डोडा में 6 हिंदुओं की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। - 2001 जम्मू कश्मीर रेलवे स्टेशन नरसंहार, सेना के भेष में आतंकियों ने रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी कर दी, इसमें 11 लोगों की मौत हो गई। - 2002 में जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर आतंकियों ने दो बार हमला किया, पहला 30 मार्च और दूसरा 24 नवंबर को। इन दोनों हमलों में 15 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। - 2002 क्वासिम नगर नरसंहार, 29 हिन्दू मजदूरों को मारडाला गया। इनमें 13 महिलाएं और एक बच्चा शामिल था। - 2003 नदिमार्ग नरसंहार, पुलवामा जिले के नदिमार्ग गांव में आतंकियों ने 24 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया थाश्रीनगर. आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में हालात सुधरते नहीं दिख रहे हैं। आतंकी संगठन लश्कर-ए-इस्लाम ने पुलवामा में कई जगह पोस्टर लगाए हैं। जिसमें कहा गया है कि कश्मीरी पंडित या तो घाटी छोड़ दें या फिर मरने के लिए तैयार रहें। बता दें कि कश्मीर में साल 1990 में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद से अब तक लाखों कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोड़ कर चले गए थे, उस वक्त हुए नरसंहार में सैकड़ों पंडितों का कत्लेआम हुआ था। कैसे टूटा था कश्मीरी पंडितों पर कहर... - कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था। - जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। उसने नारा दिया हम सब एक, तुम भागो या मरो। - इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए। 300 से अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हुई थी हत्या - घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी। - इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। - उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई। उसके बाद 300 से अधिक हिंदू-महिलाओँ और पुरुषों की आतंकियों ने हत्या की। सरेआम हुए थे बलात्कार - मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ आतंकियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद मार-मार कर उसकी हत्या कर दी। - घाटी में कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण किए गए। हालात बदतर हो गए। - एक स्थानीय उर्दू अखबार, हिज्ब - उल - मुजाहिदीन की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की- 'सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं'। - एक अन्य स्थानीय समाचार पत्र, अल सफा, ने इस निष्कासन के आदेश को दोहराया। -मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरियों को कहा गया की इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाएं। या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो - कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया, जिसमें लिखा था 'या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो। - पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमों को भारत से अलग होने के लिए भड़काना शुरू कर दिया। - इस सबके बीच कश्मीर से पंडित रातों -रात अपना सबकुछ छोड़ने के मजबूर हो गए। कश्मीर में हुए बड़े नरसंहार - डोडा नरसंहार- अगस्त 14, 1993 को बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई। - संग्रामपुर नरसंहार- मार्च 21, 1997 घर में घुसकर 7 कश्मीरी पंडितों को किडनैप कर मार डाला गया। - वंधामा नरसंहार- जनवरी 25, 1998 को हथियारबंद आतंकियों ने 4 कश्मीरी परिवार के 23 लोगों को गोलियों से भून कर मार डाला। - प्रानकोट नरसंहार- अप्रैल 17, 1998 को उधमपुर जिले के प्रानकोट गांव में एक कश्मीरी हिन्दू परिवार के 27 मौत के घाट उतार दिया था, इसमें 11 बच्चे भी शामिल थे। इस नरसंहार के बाद डर से पौनी और रियासी के 1000 हिंदुओं ने पलायन किया था। - 2000 में अनंतनाग के पहलगाम में 30 अमरनाथ यात्रियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। - 20 मार्च 2000 चित्ती सिंघपोरा नरसंहार होला मना रहे 36 सिखों की गुरुद्वारे के सामने आतंकियों ने गोली मार कर हत्या कर दी। - 2001 में डोडा में 6 हिंदुओं की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। - 2001 जम्मू कश्मीर रेलवे स्टेशन नरसंहार, सेना के भेष में आतंकियों ने रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी कर दी, इसमें 11 लोगों की मौत हो गई। - 2002 में जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर आतंकियों ने दो बार हमला किया, पहला 30 मार्च और दूसरा 24 नवंबर को। इन दोनों हमलों में 15 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। - 2002 क्वासिम नगर नरसंहार, 29 हिन्दू मजदूरों को मारडाला गया। इनमें 13 महिलाएं और एक बच्चा शामिल था। - 2003 नदिमार्ग नरसंहार, पुलवामा जिले के नदिमार्ग गांव में आतंकियों ने 24 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया था
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Chaku, Arjan Nath; Chaku, Inder K (2016). The Kashmir story : through the ages. New Delhi: Vitasta Publishing Pvt. Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789382711759.
- ↑ "The contested legacies of Maqbool Sherwani, the Kashmiri who stalled invaders in 1947".