पर्वतीय बटेर फ़ीज़ैन्ट कुल का एक पक्षी है जो केवल उत्तराखण्ड में देखा गया है और वह भी आख़िरी बार सन् १८७६ में। सन् १८७७ से पूर्व मसूरी और नैनीताल के नज़दीक से क़रीब एक दर्ज़न नमूने इकट्ठा किए गए। उन्नीसवीं सदी के मध्य में किए गए शोध से यह नतीजा निकला कि एक समय यह काफ़ी संख्या में रहा होगा, लेकिन उन्नीसवीं सदी के अंत तक यह यक़ीनन दुर्लभ हो चला था, जो यह दर्शाता है कि इसकी संख्या में काफ़ी गिरावट आई। उस समय से अब तक इसको नहीं देखा गया जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि यह जाति अब शायद विलुप्त हो गई है। सन् १९८४ में सुआखोली के पास और पुन: सन् २००३ में नैनीताल के पास यह शायद फिर एक बार दिखा। सन् २०१० में ख़बर मिली कि एक शिकारी ने एक मादा देखी है। यह उम्मीद लगाई जा रही है कि इस पक्षी की शायद एक छोटी संख्या मध्य और निचली हिमालय श्रंखला में अब भी जीवित बची है क्योंकि इस तक पहुँच पाना या इसको देख पाना बहुत ही मुश्किल है। इस पक्षी की संख्या ५० से भी कम आंकी गई है।[1]

पर्वतीय बटेर
मादा (भूरी) और नर (सलेटी)
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: जंतु
संघ: रज्जुकी
वर्ग: पक्षी
गण: गॉलिफ़ॉर्मिस
कुल: फ़ॅसिअनिडी
वंश: ऑफ़्रिसिया
बॉनापार्ट, १८५६
जाति: ओ. सूपरसिलिओसा
द्विपद नाम
ऑफ़्रिसिया सूपरसिलिओसा
ग्रे, १८४६
आवासीय क्षेत्र
पर्यायवाची

रोल्यूसस सूपरसिलिओसस
'मैलकॉर्टिक्स सूपरसिलिऍरिस
मैलकॉटर्निक्स सूपरसिलिऍरिस[2]


सन्दर्भ संपादित करें

  1. BirdLife International (2012). "Ophrysia superciliosa". IUCN Red List of Threatened Species. Version 2012.2. International Union for Conservation of Nature. अभिगमन तिथि ११ मई २०१३.
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर