पलनी
- यह लेख तमिलनाडु प्रदेश के नगर पलनी पर आधारित है। पलनी मंदिर पर लेख के लिए पलनी मुगुगन मंदिर का लेख देखें। पलनी नाम से एक मजंदरानी उपभाषा भी प्रचलित है।
पलनी (Palani) भारत के तमिल नाडु राज्य के डिंडिगुल ज़िले में स्थित एक नगर है। राष्ट्रीय राजमार्ग ८३ यहाँ से गुज़रता है।[1][2]
पलनी Palani பழனி | |
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पलनी के कुछ दृश्य, ऊपर बाएँ से दक्षिणावृत: पलनी मुगुगन मंदिर का गोपुरम, रस्सी से खिचने वाली गाड़ी, वाईयापुरी जलाशय, शिवगिरि शिखर पर पलनी मंदिर | |
निर्देशांक: 10°27′N 77°31′E / 10.45°N 77.52°Eनिर्देशांक: 10°27′N 77°31′E / 10.45°N 77.52°E | |
ज़िला | डिंडिगुल ज़िला |
प्रान्त | तमिल नाडु |
देश | भारत |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 70,467 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | तमिल |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
विवरण
संपादित करेंपलनी शहर कोयंबटूर नगर से 100 किमी दक्षिण व डिंडीगुल नगर से 60 किमी पश्चिम में स्थित है। यहाँ पर भगवान कार्तिकेय को समर्पित एक सुविख्यात मंदिर है, जहां प्रतिवर्ष लगभग 70 लाख भक्त दर्शन के लिए पहुँचते हैं।
शब्द व्युत्पत्ति
संपादित करेंपलनी नाम तमिल भाषा के दो शब्द पलम (अर्थ फल) व नी (अर्थ आप) के मेल से बना है, तथा इस नाम का उद्गम मुख्य मंदिर की किवदंती से हुआ है। पलनी शब्द का उच्चारण तमिल अक्षर 'ल ' (ழ) के निकटतम उच्चारण परिमय का प्रयोग करके किया जाता है, तथा इसलिए अंग्रेजी में इसे "Pazhani" भी लिखा जाता है।
इतिहास
संपादित करेंप्रथा व परंपरा
संपादित करेंपुरातन तमिल भक्ति लेखों में इस नगर का उल्लेख आता है। एक स्थानीय कथानक के अनुसार बेहुन नाम का एक मुखिया (பேகன்-கடை ஏழு வள்ளல்களில் ஒருவர்) था, एक बार वन में जाते हुए उसने ठंड से ठिठुरता एक मोर देखा. उसे मरने के लिए छोड़ने की बजाय उस मुखिया ने अपने ऊपर का वस्त्र उसे पहना दिया व स्वयं ठंड झेलता रहा। यह कथानक सत्य है या नहीं इसका कोई प्रमाण नहीं है, परन्तु इससे कुछ मनोरंजक बातें साफ होती हैं; जैसे कि उस इलाके की जनसंख्या कम से कम इतनी तो थी ही कि उनका एक मुखिया हो, मोर उस इलाके में बहुत संख्या में थे तथा लोग उनकी अर्चना करते थे। वे मोर को भगवान सुब्रमन्यन का प्रिय पंछी मानते थे, ठीक ऐसे ही जैसे आज लोग मानते हैं। साथ ही यह भी साफ होता है कि मौसम ठंडा होता था, जिस वजह से गरम वस्त्र प्रचलित थे, हालांकि ऐसा मौसम अब केवल पहाड़ों पर ही होता है।
मध्यकालीन युग
संपादित करेंइस युग में पलनी व अधिकतर डिंडीगुल जिला तमिल क्षेत्र के कोंग नाडु प्रदेश का हिस्सा था। ओट्टानचत्रम तालुका व पलनी के उत्तरी भाग अण्ड नाडु उपक्षेत्र का भाग थे, जबकि बाकी हिस्से वैय्यापुरी नाडू का भाग थे।[उद्धरण चाहिए]
नायकों का युग
संपादित करेंऐसा प्रतीत होता है कि यह भूभाग मदुरई व कोयंबटूर शासकों के प्रभाव में रहा। इसका प्रमाण है शहर में सुशोभित भगवती पेरीयानयाकि अम्मान का भव्य मंदिर. दो मछलियों वाला षड्यंत्र राजाओं का चिन्ह इस मंदिर में कई जगहों पर विद्यमान है जिससे यह ज्ञात होता है कि प्रथम शताब्दी में यह भूभाग मदुरई के पंड्यन राजाओं के प्रभाव क्षेत्र में था। मंदिर के आँगन में बना मंडपम (मंडप) हालांकि मदुरई के नायक शासकों के वास्तुशास्त्र पर आधारित है। नायक शासकों को विजयनगर नरेश ने 14वीं व 15वीं शताब्दी में वनवरयर की उपाधि देकर इस शहर का दायित्व सौंपा था। अतः यह मान लेना उचित प्रतीत होता है कि नगर पर नायक शासकों का लंबा वर्चस्व रहा। यह बात इस क्षेत्र में प्रचलित है कि शहर के नायक राजा लगभग स्वाधीन थे, तथा स्वाभिमानी थे। उन्होंने कभी पंड्या या कोयंबटूर नरेश की दासता स्वीकार नहीं की। इससे इस मान्यता को भी बल मिलता है कि पंड्या नरेश के कुछ रजवाड़े ऐसे भी थे जो आसानी से दासता स्वीकार करने की बजाय स्वाधीन कहलाना पसंद करते थे, जबकि कुछ अन्य प्रबल रूप से विभिन्न युद्धों में नरेश के सहभागी बनते थे। पंड्या राज्य के युद्ध-आलेखों में इस आशय का विस्तृत वर्णन मिलता है।
18वीं सदी
संपादित करेंअगले समय काल पर हमें ज्ञान हैदर अली व टीपू सुल्तान पर लिखे आलेखों से मिलता है। तीसरे एंग्लों-मैसूर युद्ध के बाद जब डिंडीगुल का समर्पण हुआ तो इन दोनों योद्धाओं को ब्रिटश सेना ने पकड़ कर युद्धबंदी बना लिया। यहाँ से यह भी ज्ञात होता है कि उस समय पलनी बालासमुद्रमं के पॉलिंगर अथवा पलयकरर (शब्दार्थः नगर चालक) नेताओं के अधीन था,[उद्धरण चाहिए] नगर के (ईंट के) किले के एवज में यह पलयकरर कोयम्बटूर स्थित सुल्तान के प्रशासक व प्रतिनिधि को मामूली कर चुकाते थे।[उद्धरण चाहिए] आज भी बालसमुद्रम में नायकर जाति (मदुरई के नायक राजाओं की जाति) के बहुत लोग रहते हैं। वे अपना उद्गम स्थान आज के आंध्रप्रदेश को मानते हैं, तथा आज भी थोड़ी बहुत तेलुगु बोल लेते हैं। इससे यह आभास होता है कि इनके पूर्वजों को मदुरई नरेश ने पलनी किले का दायित्व सौंपा था, तथा मदुरई,[उद्धरण चाहिए] नरेश के पतन के बाद भी इनका वर्चस्व किले पर कायम रहा।
सौराष्ट्र
संपादित करेंएक अन्य मनोरंजक बात पलनी में सौराष्ट्र मार्ग का होना. तमिल साहित्य में 'सौराष्ट्र' शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है जो तंजावूर अथवा मदुरई के सरफोजी राजाओं का प्रभुत्व हो गया था। यह वक्त नायक राजाओं के पतन व 18वीं सदी में हैदर अली के उद्गम में बीच का समय था।
ब्रिटिश भारत
संपादित करेंभू-सर्वेक्षण लेखों व आधिकारिक पत्रों में पलनी का जिक्र ब्रीटिश काल में (18वीं सदी के अंत व 19वीं सदी के आरंभ का समय) कई जगह पर आता है। पलनी व उसके आसपास के क्षेत्रों की पहली पेंटिंग ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी मद्रास आर्मी के एक कप्तान ने बनाई जिन्हें सितम्बर 1792 में डिंडीगुल किले की अधिकार प्रदान प्रक्रिया में सहायता करने के लिए भेजा गया था,. ईस समय तीसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध चरम पर था, तथा ऐसा प्रतीत होता है कि ब्रिटिश कंपनी का उन्हें भेजने का एक आशय यह भी था कि डिंडीगुल के किले के पतन के बाद यहाँ से कोयम्बटूर के रास्ते में पड़ने वाले छोटे पहाड़ी किलों से कोई विरोध के स्वर न उठने पायें. इस पेंटिंग में शिवगिरी की छोटी पर भव्य मंदिर, नीचे की प्राचीर की दीवार, एक बड़ा सरोवर, (यह शायद वैय्यापूरियन कुलम ही था) तथा पृष्ठभूमि में पलनी के पहाड़ नजर आते हैं, जैसे कि कोयंबटूर की दिशा से देखने पर पता चलता है। डिंडीगुल जिले के 1821 में छपे एक आधिकारिक पत्र में भी पलनी का जिक्र एक धनाड्य नगर के रूप में आता है।
स्वतंत्रता के बाद
संपादित करेंइस शहर की प्रगति में संभवतः और चार चाँद तब लग गए होंगे जब यहाँ रेल का आगमन हुआ। नगर की एक प्रमुख सडक का नाम रेलवे फीडर मार्ग है और यह माना जाता है कि यह सडक डिंडीगुल जिला मुख्यालय को रेल लाइन से जोड़ती है। उस समय की अन्य सड़कों के विपरीत पलनी धरापुरम (पड़ोसी शहर) को जोड़ने वाली सड़क बिल्कुल सीधी है जबकि उस समय की सड़कें बहुत मोड़ युक्त व घुमावदार होती थीं। ऐसा कहा जाता है कि द्वितीय वश्व युद्ध के बाद इस क्षेत्र में बहुत बेरोजगारी हो गई थी। यह सड़क बेरोजगारी समस्या को दूर करने के ब्रिटिश प्रयासों का एक हिस्सा थी। इस क्षेत्र में 50 के दशक एक भयानक सूखा पड़ा, तथा उस समय की समस्याओं को याद कर आज भी लोग सिहर उठते हैं। हाल के वर्षों में शन्मुगनदी में आने वाली बाढ़ से पलनी का संपर्क पास के शहरों से कट जाता है जिससे लोगों को असुविधा होती है।
भूगोल
संपादित करेंपश्चिमी घाट की एक छोटी पर्वतमाला पलनी के पर्वत शहर की प्राकृतिक व भव्य पृष्ठभूमि हैं। इसी माला में सुंदर कोडाइकनाल शहर है। नगर के दक्षिण में यह पर्वतमाला पूर्व से पश्चिम की ओर जाति है तथा एक अति भव्य नजारा प्रस्तुत करती है। नगर से दो चोटियाँ नजर आती हैं, शिवगिरी व शक्तिगिरी. शिवगिरी छोटी पर भगवान सुब्रमन्यन के बाला - धनडायुधपानी (शब्दार्थः एक नवयुवक भगवान, हाथ में गदा थामे हुए) अवतार का मंदिर विद्यमान है।
पर्वतमाला के कदमों में कई झीलें हैं, जिनमें से सबसे बड़ी बैय्यापूरियन कुलम का प्रयोग शहर में जलआपूर्ति के लिए किया जाता था। वर्षा ऋतु में यह झील लबालब भर जाति हैं तथा निकट की शन्मुगनदी में मिल जाती है। हालांकि जलखंबियों व अतिरेक के कारण झील काफी सिकुड़ गई है, परन्तु अभी भी वर्षा ऋतु में यह विशाल रूप ले लेती है। शन्मुगनदी पलनी पर्वत से आरंभ होकर शहर के पास से गुजरती है यह अमरावती की सहायक नदी है। शहर से कुछ दूर इसी नदी पर वर्धमान बाँध बनाया गया है जो अब पेय जलआपूर्ति का मुख्य साधन है।
जनसंख्या संबंधी
संपादित करें2001 में जनगणना के अनुसार,[3] पलनी में 67,175 लोग निवास करते हैं। जिनमें 51% पुरुष और 49% महिलाएँ हैं। साक्षरता 75% है (राष्ट्रीय प्रतिशत 59.5% से अधिक), पुरुष साक्षरता 81% तथा महिला साक्षरता 69% है। करीब 10% जनसंख्या की आय 6 वर्ष से कम है। पलनी मंदिर के मुख्य त्यौहार "थाईपूसम" और "पंगुनी उत्थिरम". प्रथम नगर पालिका अध्यक्ष श्री सेथुरामन थे।
धर्म
संपादित करेंमुख्य धर्म हिंदू है, परन्तु कुछ लोग इस्लाम और ईसाई धर्म को भी मानते हैं।
जाति विवरण
संपादित करेंनगर के हिंदू निवासी अधिकतर पंडरम व पिल्लै जातियों के हैं। कोंगु नाडु की प्रमुख प्रजाति कोंगु वेल्लाला गुंडर आस पास के गांवों की पहचान है। गुंडर लोग पलनी के बड़े व्यापारी हैं। जैसा कि ऊपर 'इतिहास' पर लेख में बताया गया, पास के बाल समुद्रम गांव में कई नायकर (नायडू) लोग रहते हैं। ब्राह्मण हालांकि सारे नगर में रहते हैं परन्तु उनके दो प्रमुख इलाके हैं; कल्थामपुथूर अग्राहरम (अन्य नाम ए.कल्यामपुथूर) जो कि शहर के निकट ही है तथा पेरियानायाकी अम्मान मंदिर के निकट गुरुक्कल मार्ग।
भाषाएँ
संपादित करेंपलनी की प्रमुख भाषा है कोंगु तमिल, हालांकि जिलामुख्यालय डिंडीगुल की उपभाषा मदुरई तमिल का भी खासा प्रभाव नजर आता है।
मंदिर
संपादित करेंहिंदू पंथ कूमरम में पूजनीय भगवान सुब्रमन्यन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिर पलनी में सुशोभित है। भगवान मुरुगन का धन्डायुधपानी मंदिर जिसे उनके अरुपदाई बीडू (छः युद्ध कैंप) में से एक माना जाता है, यहीं स्थित है। शिवगिरी की चोटी पर स्थित मंदिर छोटा सही परन्तु यहाँ देशभर से भक्तगण आते हैं। इसका वास्तुशास्त्र पंड्या काल से प्रभावत प्रतीत होता है। गर्भगृहम के ऊपर सोने का छत्र (गोपुरम) है जो एक अद्भुत कृति है। चट्टान काट कर सीढ़ियां तैयार की गई हैं तथा हाथियों के लिए एक चौड़ा रास्ता भी. साथ ही हाल के वर्षों में रेल के तीन ट्रैक व एक रज्जु मार्ग भी भक्तों की सुविधा के लिए स्थापित किये गए हैं।
जैसा कि भगवान सुब्रमन्यन के सभी मंदिरों में प्रथा है, शिवगिरी चोटी के कदमो में एक अन्य मंदिर भी है। इसे थीरू अविननकुडी कहा जाता है तथा इसमें भगवान की भव्य मूर्ती के अलावा अन्य मूर्तियां भी स्थापित हैं। शिवगिरी के कदमों में एक भगवान गणेश का मंदिर भी है जिन्हें यहाँ पडा विनयकर पुकारा जाता है। प्रथा के अनुसार भक्त यहाँ माता टेक कर मुख्य मंदिर की चढ़ाई शुरू करते हैं। यहाँ पर एक बड़े पत्थर पर मार कर नारियल तोड़ने का प्रचलन है तथा इनकी संख्या प्रतिदिन सैकड़ों हो सकती है।
शहर में पार्वती का भी एक मंदिर है जिन्हें यहाँ पेरियानायकी अम्मान पुकारा जाता है। इसे नगर के प्रमुख मंदिर या ऊरकोबिल के नाम से भी जाना जाता है। दिलचस्प बात यह है कि हालांकि यह पेरियानायकी अम्माने का मंदिर है परन्तु प्रमुख मध्य में भगवान सुब्रमन्यन विद्यमान हैं। यह मंदिर बहुत विशाल है तथा नायक व पंड्या वास्तुशास्त्र का दिलचस्प मेल है। यहाँ यह कथा प्रचलित है इस मंदिर से लेकर पेरिया अवूदैय्यार मंदिर तक एक सुरंग मार्ग से मूर्तियां भेजी जाति थीं। ऐसा तब होता जब शहर पर नवाब का आक्रमण होता। हालांकि नवाब के नाम से मुस्लिम होने के गुमान होता है परन्तु इसके अलावा उसके या आक्रमण के विषय में और कुछ ज्ञात नहीं है। आक्रमण के कुछ प्रमाण तो नजर आतें हैं, जैसे कि; नायक मंडपम की कुछ मूर्तियों के हाथ पांव गायब हैं।
नगर के पास ही पेरिया अवअवूदेय्यार नाम से शिव मंदिर है। शन्मुग नदी के तट पर बना यह मंदिर शहर की गहमागहमी से दूर शांत वातावरण में स्थित है। पेरिया नायाकी मंदिर के पास दो अन्य मंदिर हैं; मरियम्मान मंदिर व पेरुमाल मंदिर. मरियम्मान भगवती को रोग हरणी कहा जाता है तथा उनकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
पलनी नगर से 9 किमी दक्षिण में कन्नाडी पेरूमल मंदिर कहा जाता है। मंदिर का नाम उस मान्यता से आता है जिसमें यह माना जाता है कि इस मंदिर के भगवान शहर को दृष्टि से बचाते हैं, संस्कृत के जिस शब्द का अर्थ है बुरी नजर से बचाना. भक्तगण अपनी गाय के पहले बछड़े को यहाँ आशीर्वाद के लिए लाते हैं क्योंकि कन्नाडी भगवान को उनका रक्षक माना जता है। थोड़ा दूर होने की वजह से यहाँ कई भक्तगण नहीं आ पाते हैं।
यातायात साधन
संपादित करें- सड़क मार्ग - उच्च मार्ग 83 (NH83) पलनी को कोयंबटूर व मैसूर से जोड़ता है। डिंडीगुल, कोयंबटूर, मदुरई, इरोड, तिरुपुर व पोलाची के लिए अच्छी बस सेवायें है। चेन्नई के लिए ओम्नी बस सेवा उपलब्ध है।
- रेल सुविधा - पलनी होते हुए कोयंबटूर व डिंडीगुल के बीच मीटर गेज की लाइन थी। जो अब ब्राड गेज में परिवर्तित की जा रही है। ईसके बाद इस लाइन पर कोयंबटूर मदुराई इंटरसिटी एक्सप्रेस व कोयंबटूर रामेश्वरम एक्सप्रेस गाड़ियां चलाई जायेंगीं.
- हवाई मार्ग - पलनी कोयंबटूर, त्रिची, मदुरई तीनों हवाई अड्डों से समान दूरी पर है।
व्यापार
संपादित करेंपलनी भारतीय आयुर्विज्ञान की विद्या सिद्ध वैद्यम का केन्द्र है। इसका आगाज़ पलनी के पर्वतों में रहने वाले प्राचीन काल के संतों ने किया था। पलनी विभूति निर्माण व पंच अमृत (फलों की लुगदी तथा गुड़रस से निर्मित एक पारंपरिक पेय) का भी केंद्र है। यह दोनों ही पवित्र माने जाते हैं तथा भगवान सुब्रमन्यन के भोग के बाद भक्तों को दिए जाते हैं।
शिक्षा संस्थान
संपादित करेंकई सरकारी और निजी स्कूलों के अलावा, देवस्थानम बोर्ड उच्च शिक्षा के कई संस्थान भी चलाता है।
- श्री सुब्रमन्य कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी
- आरुल्मिगु पलनीडावर कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कल्चर.
- आरुल्मिगु पलनीडावर आर्ट्स कॉलेज (महिला)
- आरुल्मिगु पलनीडावर पॉलिटेक्निक कॉलेज
- मदुराई कामराज यूनिवर्सीटी इवनिंग कॉलेज.
- श्री बालामुर्गन पॉलिटेक्निक कॉलेज.(प्राइवेट)
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012394
- ↑ "Tamil Nadu, Human Development Report," Tamil Nadu Government, Berghahn Books, 2003, ISBN 9788187358145
- ↑ "भारत की जनगणना २००१: २००१ की जनगणना के आँकड़े, महानगर, नगर और ग्राम सहित (अनंतिम)". भारतीय जनगणना आयोग. अभिगमन तिथि 2007-09-03.