पूह, किन्नौर
पूह (Pooh), जिसे अप मोहाल पूह (Up Mohal Pooh) भी कहते हैं, भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के किन्नौर ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह पूह नामक तहसील का मुख्यालय भी है।[1][2]
पूह Pooh | |
---|---|
पूह बस्ती | |
निर्देशांक: 31°45′54″N 78°35′20″E / 31.765°N 78.589°Eनिर्देशांक: 31°45′54″N 78°35′20″E / 31.765°N 78.589°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | हिमाचल प्रदेश |
ज़िला | किन्नौर ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 2,047 |
भाषा | |
• प्रचलित | पहाड़ी, हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
यातायात
संपादित करें- सड़क - यह राष्ट्रीय राजमार्ग 5 द्वारा अन्य स्थानों से जुड़ा हुआ है।
- रेल - शिमला का रेलस्टेशन सबसे नज़दीकी रेल सम्पर्क है।
- वायु - कुल्लू-मनाली का हवाई अड्डा सबसे समीप है। यह सड़क द्वारा 245 किमी दूर है।
विवरण
संपादित करेंपूह हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित दूरदराज के स्थानों में से एक है। यह तिब्बत के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट स्थित है। इस जगह के लोगो को 'किन्नौरुस्' या 'किन्नर्स्' के रूप में जाने जाते है। दक्शिन तिब्बत के लोग, भारतीय पुराण, कथा और साहित्य में गहरे जड़ें है, हालांकि 'पूह' के लोग इस से स्वीकार नही करते.एक प्रचलित मान्यता है कि 'पूह' के निवासियों मूल रूप से तिब्बत के लोग थे और भोती (तिब्बती) संस्कृति के करीब हैं। पूह के इलाके मेन् ऊंचे पहाड़ और गहरी घाटिया है। पूह गांव समुद्र तल से लगभग ९००० फीट की ऊंचाई पर स्थित है। 'सतलज' नदी २९५० मीटर की ऊंचाई पर पूह क्षेत्र में प्रवेश करती है। पूह सतलुज घाटी द्वारा पूर्व में घिरा हुआ है और ज़ान्स्कर पर्वतमाला भारत से तिब्बत को अलग करता है। अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अक्टूबर से मई तक एक लंबी सर्दी, बर्फ का मौसम है और जून से सितंबर तक एक छोटी लेकिन सुखद गर्मी है। अप्रैल से मई तक वसंत है और सितंबर से अक्टूबर के लिए शरद ऋतु है। भूमि बहुत कम वनस्पति के वजह से शुष्क है। माना जा सकता है कि वहा वनस्पति मे केवल 'सेब खेती' है जो बागवानी विकास है। पूह में बहुत कम वर्षा होती है। बारिश ऊपरी भाग 'स्पीलो' से उत्तरोत्तर कम हो जाती है और पुह मे पूरी तरह से गैर विद्यमान हो जाता हे। बारीश के बादलों की रुकावट का कारण महान हिमालय पर्वतमाला को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। झाई युक्त अधिकतर लंबी सर्दियों के महीनों में लंबे समय तक होता है। वहाँ भारी बर्फबारी सर्दियों के दौरान होती है और दृश्यता शून्य तक गिर जाती है। अन्य सभी समय हवा शुद्ध होती है और दृश्यता असीमित होती है। तापमान परिवर्तन के कारण सभी मौसमों के दौरान वहा पर तेज़ पवन चल्ती है। तूफान दुर्लभ हैं और धूल तूफान इस क्षेत्र में कभी नहीं देखने को मिलते। तिब्बत के 'जांस्कर' क्षेत्र में, वर्ष २००० में 'सतलज' में एक बड़े पैमाने पर बाढ़ के कारण जीवन और संपत्ति को भारी क्षती पहुँची थी।
इतिहास
संपादित करेंपूह का अर्थ एक कतरा बाल है। गाँव के मुख्य 'प्रधान' का कहना है कि इस जगह के निवासियों का मूल स्थान "ऋषि डोगरी" घाटी का "ऋषि" गाँव है। ऋषि गांव के लोग स्वभाव में जंगली थे। वे अपने बालों को खुला छोङते थे और बहुत कम कप्ङे पहना करते थे। उन्होंने जमकर इस क्षेत्र की रक्षा करते थे और इसकी अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए हिंसक थे। एक तिब्बती लामा नामक लोनछन तुलका रिनपोछे शांग्रीला के खोज में वहाँ से गुज़र रहे थे। आदिवासियों को इसके बारे में खबर था और वाँग्तु के पास उन पर हमला करने का फैसला किया। आदिवासी लामा के शीर्ष शक्ति से हार गए। वे फिर से संगठित होकर लामा को तापरी के पास हमला किया और वह परास्त हो गए और वापस पु्ह् लौट गए। लामा इस दौरान 'कान्नम' में बस गए और बौद्ध धर्म का उपदेश देना शुरू कर दिया। आदिवासी उनके शिक्षण में भाग लेने लगे और वह प्रभावित होने लगे। लामा इन आदिवासियों को सुधारना चाह्ते थे। वह "छोल्लींग्"(पूह) की ऊंचाइयों में चले गए। वह धीरे - धीरे आदिवासियों के अस्तित्व में परिवर्तन लाए और इससे उन्हें शिष्ट होने के लिए प्रेरित किया। उन्होने अपने लंबे और गंदे केश काट दीए। इसी प्रकार 'पूह' नाम का उत्पन्न हुआ।
बोली
संपादित करेंपूह के लोग ज़्यादातर होम्स्काद भाशा में वार्तालाप करते है। होम्स्काद भाशा यहाँ पर बहुत सारे लोगों की मातृभाषा है। यह भाषा तिब्बती और किन्नौरी भाषा का मिश्रण है। इसके अलावा शिक्षित लोग हिंदी और अंग्रेजी में भी बोलते है। माना जाता है कि पहले जो चरवाहे यहाँ के मूल निवासी थे, तिबरीत भाषा का इस्तमाल किया करते थे।
वास-स्थान
संपादित करेंपूह में बारिश की कमी है और एक शुष्क क्षेत्र है। स्पील्लो गाँव को पार करते ही वनस्पति बदलती रहती है जो रामपुर गाँव की ओर लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सामान्यतया अधिकांश घरों में दो से अधिक मंजिलें शामिल है। घरों को मौसम पैटर्न के हिसाब से बनाया जाता है। पहली मंजिल में लोग रहते है और नीछे की मंजिल आमतौर पर जानवरो के लिए है या कार्यशाला के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। रहने के क्षेत्र में बहुत सीमित कमरे हैं और बालकनियों को बढ़ा दिया गया है। आम तौर पर सभी घरों को सूरज का सामना करते हुए बनाया है। गांव के प्रधान, श्री सुशील साना के घर से पूरे गाँव के घर नज़र आते है। प्रधान के घर में १०८ कमरे हैं और उनका घर ऐतिहासिक कलाकृतियों के साथ भरी हुई है। घर में हर वस्तु १०८ नंबर में है। यह शुभ माना जाता है क्योकिं बौद्ध भिक्षुओं के हार में पवित्र मोतियों की संख्या से मेल होती है। स्थानीय भाषा में इस हार को त्राना कहा जाता है। आमतौर पर घर के निर्माण के लिए पत्थर और लकड़ी का उपयोग होता है। पूह में लकड़ी की कमी है, इसी कारण लकड़ी को किन्नौर से ले जाया जाता है। जो लोग लकड़ी नही खरीद सकते, वह अपना घर पत्थर से बनाते है। घरों में कमरों की ऊंचाई बहुत कम होती हैं और मुश्किल से १ मीटर से अधिक होती है। कमरों में बहुत कम खिड़कियाँ होती है। कमरे की चोटी पर, खिड़कियों की तरह छोटे छेद बनाए गए है जो की प्रकाश व्यवस्था करती और धुआं को घर से बाहार करने के लिए। घरों को कठोर सर्दियों से बछने के लिए बनाया है।"मागदम"को काफी महत्व दिया जाता है जो दरवाज़े के समानांतर है। "काह" नामक एक केन्द्र समर्थन स्तंभ भी है जो भारी बर्फबारी के दौरान दरवाजे खोलने की कठिनाई से बचने के लिए मूल रूप से बनाई गई है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Himachal Pradesh, Development Report, State Development Report Series, Planning Commission of India, Academic Foundation, 2005, ISBN 9788171884452
- ↑ "Himachal Pradesh District Factbook," RK Thukral, Datanet India Pvt Ltd, 2017, ISBN 9789380590448