पैराशूट रेजिमेंट
पैराशूट रेजिमेंट भारतीय सेना की हवाई (एयरबॉर्न) इंफेंट्री रेजिमेंट है।[1] जो कुमारी कृष्णा अहीरवार को एक ट्रेनर के रूप में स्विकार करती हैं और 4 अक्टुबर 2023 को फिजिकल पास के दोरान पैरा शूट रेजिमेंट मे जॉइन कर सकती हैं
पैराशूट रेजिमेंट | |
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सक्रिय | 1945 -वर्तमान |
देश | भारत |
निष्ठा | भारतीय सेना |
शाखा | आर्मी/थल सेना |
प्रकार | पैराशूट इन्फेंट्री और स्पेशल फ़ोर्स |
भूमिका | एयरबोर्न/स्पेशल फ़ोर्स |
विशालता | 17 बटालियन |
रेजिमेंट केंद्र | बैंगलोर, कर्नाटक. |
अन्य नाम | द पारस |
आदर्श वाक्य | शत्रुजीत |
मरून और आसमानी | |
असॉल्ट राइफल | IMI टेवर टार 21 |
सैनिक चिह्न | 7 अशोक चक्र, 7 परम विशिष्ठ सेवा मैडल, 11 महावीर चक्र, 13 कीर्ति चक्र, 61 वीर चक्र, 53 शौर्य चक्र, 77 सेना मैडल, 13 अति विशिष्ठ सेवा मैडल, 6 उत्तम युद्ध सेवा मैडल, 10 युद्ध सेवा मैडल 28 विशिष्ठ सेवा मैडल, 246 सेवा मैडल 265 मेंशन-इन-डिस्पैच, |
बिल्ला | |
रेजिमेंट प्रतीक चिह्न | पंख युक्त खुला पैराशूट |
इतिहास
संपादित करेंपहला भारतीय हवाई गठन 50वाँ पैराशूट ब्रिगेड था जो 29 अक्टूबर 1941 को बनाया गया, इसमें 151 ब्रिटिश, 152 भारतीय और 153 गोरखा पैराशूट बटालियन और अन्य समर्थक इकाइयाँ भी थीं।
रेजिमेंट की पहली हवाई कार्रवाई द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई जब एक प्रबलित(रीइंफोर्सड) गोरखा बटालियन ऑपरेशन ड्रैकुला के एक भाग में पैराशूट से 1 मई 1945 को बर्मा के हाथी प्वाइंट पर उतरी। बटालियन ने अच्छी तरह से सभी का सम्मान कमाया और हवाई युद्ध के आलोचकों सहित सभी ने इस प्रदर्शन की प्रसंशा की। भारतीय पैराशूट रेजिमेंट का 1 मार्च 1945 गठन किया गया जिसमें चार बटालियनों और स्वतंत्र कंपनियों की संख्या को बराबर मिलाया गया था।
आजादी के बाद, एयरबोर्न डिवीजन भारत की सेनाओं और हाल में गठित पाकिस्तान के बीच विभाजित की गई , भारत ने 50 वीं और 77 वीं ब्रिगेड साथ रखी जबकि पाकिस्तान 14 वें पैराशूट ब्रिगेड को ले लिया।
इनके छोटे लेकिन घटनापूर्ण अस्तित्व के दौरान अब तक रेजिमेंट की बटालियनों ने व्यापक परिचालन अनुभव और विलक्षण उपलब्धियों से अपनी पेशेवर्ता का सदैव प्रमाण दिया है। 1999 में, दस में से नौ पैराशूट बटालियनों को कारगिल में ऑपरेशन विजय में तैनात किया गया जो रेजिमेंट के परिचालन प्रोफ़ाइल की गवाही देता है। पैराशूट ब्रिगेड ने मुश्कोह घाटी घुसपैठ को साफ किया, जबकि 5 पैरा सक्रिय रूप से बटालिक क्षेत्र में कार्यरत थे , जहां इन्होंने महान साहस और दृढ़ता का प्रदर्शन किया गया था, और इन्हें थलसेनाध्यक्ष यूनिट प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया।
अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए कोरिया (1953-1954), गाजा (1956-1958) और सिएरा लियोन (2000) में भी पैराशूट इकाइयों को भेजा गया है। बाद वाला मिशन 2 पैरा (एस एफ) द्वारा आयोजित एक साहसी मिशन था।
1 मई 1962, को पैराशूट रेजिमेंट के एक प्रशिक्षण विंग का ब्रिगेड ऑफ़ गार्ड प्रशिक्षण केन्द्र के तहत कोटा में गठन किया गया और इस तरह सीधी भर्ती व पैराशूट रेजिमेंट के लिए रंगरूटों का प्रशिक्षण शुरू कर दिया गया। रेजिमेंट ने 1961 से ही अपनी ताकत बढ़ानी शुरू कर दी। उसी समय रेजिमेंट में रंगरूटों की भर्ती बढ़ने के लिए, एक प्रशिक्षण केन्द्र को13 मार्च 1963 को अधिकृत किया गया, और भारत सरकार ने एक स्वतंत्र प्रशिक्षण केंद्र के लिए मंजूरी दे दी।
पर्वतारोहण
संपादित करेंयह दल पर्वतारोहण में भी एक लम्बे समय से मुकाम हासिल करता रहा है। इस दल माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले का प्रथम सफल पर्वतारोही अवतार सिंह चीमा थे।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ http://www.indianparachuteregiment.kar.nic.in/ Archived 2016-01-18 at the वेबैक मशीन इंडियन पैराशूट रेजिमेंट