पोप कॅलिक्स्टस तृतीय या कॅलिक्स्टस तृतीय (अंग्रेज़ी: Pope Callixtus III; 31 दिसम्बर 1378 – 6 अगस्त 1458) 8 अप्रैल 1455 से 1458 में अपनी मृत्यु तक पोप थे, जो कि रोमन कैथोलिक गिरजाघर के राजाध्यक्ष होता है। ये ऐसे अंतिम पोप थे जिन्होंने चुनाव के पश्चात 'कॅलिक्स्टस' नाम ग्रहण किया। चुनाव से पूर्व इनका नाम अल्फोंस डी बोर्हा था।

पोप कॅलिक्स्टस तृतीय
पद ग्रहण 8 अप्रैल 1455
पद मुक्त 6 अगस्त 1458
पूर्ववर्ती निकोलस पंचम
उत्तराधिकारी पायस तृतीय
ऑर्डर
अभिषेक 31 अगस्त 1429
by पियरे डी फॉय
कार्डिनल बने 2 मई 1444
व्यक्तिगत जानकारी
जन्म नाम अल्फोंस डी बोर्हा
जन्म 31 दिसम्बर 1378
क्नाल्स, वैलेंसिया सम्राज्य, आरागोन का क्राउन
मृत्यु 6 अगस्त 1458(1458-08-06) (उम्र 79 वर्ष)
रोम, पापल स्टेट्स
माता-पिता डोमिंगो डी बोर्हा (पिता),
फ्रान्सीना यान्सोल(माता)
पोप कॅलिक्स्टस तृतीय
संदर्भ पदवी परम पूज्य
मौखिक पदवी अपने माननीय
धार्मिक पदवी पवित्र पिता
मरणोपरांत पदवी कोई नहीं

पश्चिमी मतभेद के दौरान कॅलिक्स्टस ने प्रतिपोप बेनेडिक्ट तृतीय का समर्थन किया था और 1429 में प्रतिपोप क्लेमेंट अष्टम को पोप मार्टिन पंचम के आधीन करने में ये प्रेरक शक्ति थे। अपने कैरियर की शुरुआती इन्होंने येइडा विश्विद्यालय में कानून के प्राध्यापक के रूप में गुजरा। इसके पश्चात ये आरागोन के महाराज की सेवा में राजनयिक बन गए। पोप यूजीन चतुर्थ की आरागोन के महाराज अल्फोंसो पंचम के साथ संधि कराने के पश्चात ये कार्डिनल बने व 1455 के पापल सम्मेलन में पोप चुने गए। धार्मिक रूप से ये बहुत कट्टर थे। पोप के पद पर रहते हुए इन्होंने कई विवादित व नवीन आदेश जारी किए थे, जिनमें से अफ्रीकियो और काफ़िरो को गुलाम बनाने का बुल जारी करना व दोपहर को गिरजाघर के घंटे बजाना कुछ प्रमुख हैं। कैथोलिक गिरजाघर की गतिविधियों में इन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को काफ़ी समर्थन किया व उन्हें लाभ भी पहुँचाया और शायद इन्ही की वजह से इनके एक भतीजे आगे चल कर पोप अलेक्जेंडर छठे बने। जोन ऑफ़ आर्क की मृत्यु के 24 साल बाद एक मुकदमे के पश्चात कॅलिक्स्टस ने उन्हें निर्दोष घोषित किया था।

प्रारंभिक जीवन

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अल्फोंस डी बोर्हा का जन्म ला टोर्रेटा, जो अब स्पेन के वैलेंसियाई समुदाय की क्नाल्स नगरपालिका की एक बस्ती है। परन्तु इनके जन्म के समय यह आरागोन के क्राउन के तहत आने वाले वैलेंसिया सम्राज्य का हिस्सा था। इनके पिता का नाम डोमिंगो डी बोर्हा था व इनकी माता फ्रान्सीना यान्सोल थीं। पश्चिमी मतभेद के दौरान इन्होंने प्रतिपोप बेनेडिक्ट तृतीय का समर्थन किया था और 1429 में प्रतिपोप क्लेमेंट अष्टम को पोप मार्टिन पंचम के आधीन करने में ये प्रेरक शक्ति थे।

इनका शुरुआती कैरियर येइडा विश्विद्यालय में कानून के प्राध्यापक के रूप में गुजरा। इसके पश्चात ये आरागोन के महाराज की सेवा में राजनयिक बन गए, विशेष रूप से बाज़ल की परिषद के दौरान (1431–1439)। पोप यूजीन चतुर्थ की आरागोन के महाराज अल्फोंसो पंचम के साथ संधि कराने के पश्चात ये कार्डिनल बन गए।[1]

पोप की भूमिका

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पोप कॅलिक्स्टस का रोम में मकबरा

बोर्हा को 1455 में आयोजित हुए पापल सम्मेलन के दौरान काफी वृद्ध अवस्था "समझौता उम्मीदवार" के तौर पर पापल पद के लिए चुना गया और इन्होंने 'कॅलिक्स्टस तृतीय' नाम ग्रहण किया। इस नाम को अपनाने वाले ये अंतिम पोप थे। इन्हें इतिहासकार अत्यधिक धर्मपरायण मानते हैं, एक ऐसे व्यक्तित्व वाले पोप जो होली सी (धर्ममण्डल) प्राधिकरण में दृढ़ विश्वास रखते थे। भविष्य के बॉरजा परिवार में से आने वाले दूसरे पोप (अलेक्जेंडर छठवें) की तरह ये भी अपने निकट परिवार को अग्रिम करने के लिए बहुत हद तक चले गए थे।[2]

1456 में इन्होंने पुर्तगाल के लिए पापल बुल इन्टर कायेटरा जारी किया। इस बुल द्वारा इन्होंने पुर्तगाल के उस अधिकार की पुन: पुष्टि करी जो उसे पूर्व में जारी हुए रोमानुस पोंतिफ़ेक्स और दुम दिवेर्सस बुलो द्वारा प्राप्त हुआ था, जिनमें उसे काफ़िरो और मूरो को गुलाम बनाने का अधिकार मिला था। अर्थात इन्होंने अफ़्रीकियो की दास प्रथा को जारी रखा। रोमानुस पोंतिफ़ेक्स के इस पुष्टिकरण द्वारा इन्होंने पुर्तगाल को राजकुमार हैनरी द नेविगेटर के अंतर्गत सैन्य सम्मान ऑडर ऑफ़ क्राइस्ट भी दिया।

1456 का इन्टर कायेटरा हालांकि पूर्व में पोप यूजीन चतुर्थ के 1435 में जारी किए बुल सिकुत दुदुम का सीधा उल्लंघन था, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट किया गया था कि काफ़िरो का जन्म भी भगवान की छवि में हुआ है तथा उनमें भी आत्मा है, जिसका निष्कर्ष यह था कि किसी भी ईसाई धर्म के अनुयायी को उनकी स्वतंत्रता छीनने का अधिकार नहीं है।

पोप कॅलिक्स्टस ने 1453 में उस्मानी साम्राज्य के विरुद्ध क्रूसेड शुरू करने का आग्रह किया था, जिन्होंने कुस्तुंतुनिया पर कब्ज़ा कर लिया था, परन्तु इनकी इस पुकार को ईसाई राजकुमारों के बीच समर्थन प्राप्त नहीं हुआ।

20 फ़रवरी 1456 को पोप ने अपने दो भतीजो को कार्डिनल पदों पर उन्नत किया। उनमें से पहले थे रोड्रिगो डी बोर्हा, जो बाद में पोप अलेक्जेंडर छठे (1492–1503) बनें, जो अपने कथित भ्रष्टाचार और अनैतिकता के लिए कुख्यात हुए। दूसरे थे लुईस हुलियाँ डी मिला।

29 जून 1456 को कॅलिक्स्टस ने यूरोप भर के गिरजाघरो के घंटो को प्राथना के आह्वान के लिए दोपहर में बजाने का आदेश दिया। जैसे-जैसे आदेश यूरोप भर में फैला, घंटो को बजाने की परम्परा को क्रूसेड के अंतर्गत हुई बॅलग्रेड की घेराबंदी के समय बॅलग्रेड शहर के रक्षकों के लिए विश्वासियों से प्राथना करने के आह्वान के तरीके के तौर पर भी इस्तेमाल किया गया। इस युद्ध में ईसाईयों को तुर्को के विरुद्ध बड़ी जीत प्राप्त हुई और अंग्रेज़ी व स्पेनी सम्राज्य (जिन्हें जीत की खबर सबसे पहले प्राप्त हुई) में जीत की ख़ुशी में दोपहर को सभी गिरजाघरो के घंटे बजाए गए। इस परम्परा को आज भी कैथोलिक व पुराने प्रोटेस्टेंट गिराघर स्मरणोत्सव के तौर पर अपनाते हैं और दोपहर को गिरजाघरो के घंटे बजाते हैं। इसी जीत की ख़ुशी में कॅलिक्स्टस ने 6 अगस्त को 'परिवर्तन का पर्व' घोषित किया था, जिसे आज भी कई ईसाई सम्प्रदाय मनाते हैं।[2]

जोन ऑफ़ आर्क की मृत्यु के 24 साल बाद उनकी माँ और जनरल जोन ब्रेआल के अनुरोध पर पोप कॅलिक्स्टस ने नवम्बर 1455 में उनका मुकदमा फ़िर से शुरू करवाया और 7 जुलाई 1456 को उन्हें निर्दोष घोषित करने के पश्चात शहीद की उपाधि से सम्मानित किया।

रोम में 6 अगस्त 1458 को कॅलिक्स्टस की मृत्यु हुई, ये अपनी मृत्यु तक पोप के पद पर काबिज रहे थे।[1]

  1. "Pope Callistus III (Alfonso de Borja y Cabanilles)" (अंग्रेज़ी में). Catholic-hierarchy.org. मूल से 20 मार्च 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 मार्च 2014.
  2. "Calixtus III" (अंग्रेज़ी में). एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका ऑन्लाइन. मूल से 3 फ़रवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 मार्च 2014.

बाहरी कड़ियाँ

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