बांग्लादेश के प्रधानमंत्री
गणप्रजातंत्र बांग्लादेश के प्रधानमंत्री ( बांग्ला:বাংলাদেশের প্রধানমন্ত্রী, बाड़्ग्लादेशेर प्रोधानमोन्त्री), बांग्लादेश के राजप्रमुख के तौर पर स्थापित एक राजनैतिक पद है। बांग्लादेश की मंत्रीपरिषद शासित अथवा संसदीय सरकारी व्यवस्था में बांग्लादेश के राष्ट्रप्रमुख बांग्लादेश के राष्ट्रपति, राष्ट्रप्रमुख, वहीं, प्रधानमंत्री, सरकार प्रमुख अथवा राजप्रमुख होते हैं। प्रधानमंत्री व मंत्री परिषद सम्मिलित रूप से देश को प्रशासित एवं सरकारी तंत्र को नियंत्रित करते हैं। प्रधानमंत्री, मंत्रीपरिषद के प्रमुख होते हैं जो मिलकर सरकार की नीति निर्धारित करती है एवं राष्ट्रीय संसद के समक्ष निर्वाचित सरकार की नीतियों को प्रस्तुत करती है। साथ ही, समस्त मंत्रीपरिषद, सदन में सरकार की योजना व नीतियों की प्रस्तुति बचाव के लिए जिम्मेदार होते हैं।
गणप्रजातंत्री बांग्लादेश के प्रधानमंत्री গণপ্রজাতন্ত্রী বাংলাদেশের প্রধানমন্ত্রী, | |
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पदस्थ ख़ाली 5 अगस्त 20244 से | |
शैली | माननीय |
आवास | गणभवन, ढाका, बांग्लादेश |
अधिस्थान | प्रधानमंत्री कार्यालय, तेजगाँव, ढाका |
नियुक्तिकर्ता | बांग्लादेश के राष्ट्रपति |
अवधि काल | प्रधानमंत्री पारंपरिक तौर पर विजयी दल के नेता होते है। उनके कार्यकाल सीमामुक्त है। |
उद्घाटक धारक | ताजुद्दीन अहमद |
गठन | 17 अप्रैल 1971 |
वेबसाइट | http://www.pmo.gov.bd/ |
प्रधानमंत्री बांग्लादेश की एकसदनीय राष्ट्रीय संसद में बहुमत दल के नेता एवं सदन में सत्तापक्ष के नेता भी हैं। प्रधानमंत्री को कार्यकाल की शपथ बांग्लादेश के राष्ट्रपति द्वारा दिलाई जाती है।
नियुक्ति
संपादित करेंसंविधान के अनुसार, प्रधानमंत्री को संसदीय आम चुनाव के परिणाम के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाते हैं। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय संसद(जातीयो शौंशोद) में बहुमत दल (या गठबंधन) के नेता होते हैं एवं राष्ट्रीय संसद का विश्वासमत उनके पक्ष में होना चाहिए। कैबिनेट, प्रधानमंत्री द्वारा चयनित और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त मंत्रियों से बना होता है। साथ ही, संविधान अनुसार, मंत्रियों में कम से कम 90% सदस्यों को सांसद होना चाहिए जबकी अन्य 10% सदस्य, असांसदीय विशेषज्ञों या "टेक्नोक्रेट" जो अन्यथा, निर्वाचित सांसद होने से अयोग्य ना हों, हो सकते हैं। बांग्लादेशी संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के लिखित अनुरोध पर संसद भंग कर सकते हैं।
सरकार गठन
संपादित करेंराष्ट्रीय संसद बांग्लादेश की सर्वोच्च विधाई सदन है। इस 350-सदस्यीय एकसदनीय विधायिका के कुल आसनों में 300 आसन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सांसदों के लिए होते हैं एवं अवशिष्ट 50 आसन महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। आरक्षित आसनो के नारी सदस्यगण, पूर्वकथित 300 निर्वाचित सांसदों के मतों द्वारा परोक्ष निर्वाचन पद्धति से निर्वाचित होते हैं। निर्वाचित होती संसद की कार्यअवधि 5 वर्ष है।
संसद के सदस्य प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा आम चुनाव के बाद निर्वाचित होकर आते हैं। प्रत्येक चुनाव के बाद राष्ट्रीय संसद के समस्त आसनों में अधिकतम आसन ग्रहण करने वाली राजनैतिक दल अर्थात बहुमत ग्रहण करने वाली राजनैतिक दल के नेता को पारंपरिक तौर पर प्रधानमंत्री घोषित किया जाता है। तत्पश्चात, प्रधानमंत्री को कार्यकाल की शपथ बांग्लादेश के राष्ट्रपति द्वारा दिलाई जाती है। पद पर विराजमान होने के बाद, प्रधानमंत्री का यह दायित्व है कि वे अपनी सरकार का गठन करें। सरकार के प्रमुख होने के नाते, मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री के विवेक पर निर्भर होती है। अर्थात, चुनाव पश्चात प्रधानमंत्री ही सरकार के गठन के लिए जिम्मेदार होते हैं। मंत्रीपरिषद नियुक्ति के नियमों के अनुसार, संपूर्ण मंत्रीमंडल के 90% सदस्यों का सांसद होना अनिवार्य है एवं अवशिष्ट 10% सदस्य गैर संसदीय बांग्लादेशी नागरिक हो सकते हैं, जिन्हें आमतौर पर विशेषज्ञ या "टेक्नोक्रेट" कहा जाता है।
पद का इतिहास
संपादित करें1972 में बांग्लादेश की स्थापना व संविधान के प्रवर्तन के पश्चात से प्रधानमंत्री के इस पद को स्थापना, विस्थापना व शक्ति मात्रा के विभिन्न दौरों से गुजरना पड़ा है। 1972 में पारित संविधान के अनुसार बांग्लादेश मे, संसदीय पद्धतिनुसार सरकार गठन की बात वर्णित की गई है। एवं इसके अनुसार सरकार प्रमुख के तौर पर प्रधानमंत्री नामक पद पर वारिजमान व्यक्ती के होने की बात कही गई है। एवं उसमें व्याख्यित व्यवस्था में राष्ट्रपति के राष्ट्रीय विधायिका द्वारा चुने जाने की भी बात की गई है। किन्तु सैन्य अभ्युत्थानजनित (तख्तापलट-जनित) कारणों से संसदीय व्यवस्था की प्रगती में बाधा आती रही है। वर्ष 1975 के सैन्य सत्तापलट के प्रसंग में सैन्य विधी पारित की गई थी। तत्पश्चात राष्ट्रपति शासन व संसदीय सरकारी व्यवस्था का एक संयोजित व्यवस्था स्थापित की गई थी। परंतु सत्ता, कमोबेश, सेना के हाथों में ही बनी रही। वर्ष1980 के दशक से पुनः सैन्य शासन के अंतर्गत देश को चलाया गया, परन्तु 1991 में संसदीय शासन पुनर्स्थापित की गई। इसमें राष्ट्रपति पद को राष्ट्रप्रमुख और प्रधानमंत्री को सरकार प्रमुख के रूप में स्थापित किया गया।
सितंबर मास, वर्ष 1991 में निर्वाचन व्यवस्था मैं परिवर्तन के लिए संविधान संशोधित की गई, जिसमें औपचारिक तौर पर सरकार की कार्यकारी शक्तियाँ को प्रधानमंत्री कार्यालय में पुनः लाया गया। परिणामस्वरूप, बांग्लादेश की प्रशासन व्यवस्था मूल संविधान के विचारों पर पुनर्व्यवस्थित हो जाती है।[1]
सहूलियतें
संपादित करें- कार्यकारिणी
प्रधानमंत्री का कर्यालय ढाका महानगर के व्यस्ततम् क्षेत्र तेजगाँव में स्थित है। यह एक सरकारी प्रशासनिक कार्यालय है जिसे कई मायनों में सरकार के एक मंत्रालय के रूप में भी देखा जाता है, जिसकी [2] जिम्मेदारी, सरकार के अन्य मंत्रालयी कार्यालयों के बीच विभिन्न मुद्दों पर समन्वयक संबंध बरकरार रखना। यह प्रधानमंत्री को कार्यकारिणी, सुरक्षा व अन्य प्रकार के सहयोग प्रदान करती है एवं प्रधानमंत्री को अपने दैनिक कार्यों में सहायता करती है। यह गुप्त मामलों (आसूचना) व गैर सरकारी संगठनों को नियंत्रित करता है, और प्रोटोकॉल(नवाचार) एवं समारोहों की व्यवस्था भी करता है।
- सरकारी निवास
ढाका स्थित, गणभवन, प्रधानमंत्री के आधिकारिक निवास के रूप में उपयोग किया जाता है, और वश्व के अन्य ऐसे कई सरकारी निवासों के विरुद्ध, यह भवन प्रधानमंत्री के सचिवालय की मेजबानी नहीं करता, बल्कियह केवल निवास के लिये ही इस्तेमाल होता है। यह ढाका के शेर-ए-बांगला नगर क्षेत्र में, संसद भवन के उत्तरी कोने पर स्थित है।[3]
पदाधिकारियों की सूची
संपादित करें2007 का राजनैतिक संकट
संपादित करेंसन 2007 का आम चुनाव विवाद का पात्र बन गए जब अवामी लीग और उसके घटक दलों ने राष्ट्रपति इयाज़ुद्दीन अहमद की सरपरस्ती वाली सामयिक सरकार, जो चुनावों के समय सरकारी कार्य के देखरेख की जिम्मेदार थी, पर खालिदा ज़िया के पक्ष में पक्षपात के आरोप तले, सरकार के विरोध में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। अवामी लीग की अध्यक्षा शेख हसीना क्यों यह मांग थी कि सामायिक सरकार के प्रमुख राष्ट्रपति इयाज़ुद्दीन अहमद अपने पद का त्याग करें। तत्पश्चात 3 जनवरी 2007 को उन्होंने यह घोषणा की कि अवामी लीग और उसके गठबंधन दल चुनावों का बहिष्कार करेंगे।[4]
उसी महीने, सेना प्रमुख जनरल मोईनुद्दीन अहमद के नेतृत्व में, सेना ने हस्तक्षेप किया और राष्ट्रपति इयाज़ुद्दीन को मुख्य सलाहकार के अपने पद से त्यागपत्र देने के लिए कहा, एवं उन्हें आपातकाल की घोषणा भी करने के लिए कहा गया। डॉ फखरुद्दीन अहमद की मुख्य सलाहकारी में एक नई सेना-नियंत्रित सामयिक सरकार गठित की गई और पूर्व निर्धारित चुनावों को टाल दिया गया।
12 जनवरी 2007 को इयाज़ुद्दीन अहमद ने फकरुद्दीन अहमद को अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में शपथ दिलाई। फकरुद्दीन अहमद की सरकार का सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रही उनकी स्थापित तंत्र के विरुद्ध भ्रष्टाचार विरोधी अभियान। उनके इस अभियान की जाँच तले करीब 160 वरिष्ठ राजनीतिज्ञों समेत अनेक सरकारी नौकर और सुरक्षा अधिकारियों को आर्थिक अपराधों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।[5]
इसके अलावा, इस जांच के जाल में दो प्रमुख राजनीतिक दलों के कई पूर्व मंत्रीगण, जिनमें, पूर्व सलाहकार फज्लुल हक़, पूर्व प्रधानमंत्री, खालिदा जिया और शेख हसीना भी शामिल थे, भी फसे थे।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "History overview". Virtual Bangladesh। Virtual Bangladesh। अभिगमन तिथि: 2008-04-05 Archived 2008-05-09 at the वेबैक मशीन "संग्रहीत प्रति". मूल से 9 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2016.
- ↑ NDTV. "Bangladesh Prime Minister: Latest News, Photos, Videos on ..." अभिगमन तिथि 19 मई 2016.
- ↑ "PM exchanges Eid greetings with people". The Daily Star. BSS. August 23, 2012. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2016.
- ↑ Habib, Haroon (4 January 2007). "Polls won't be fair: Hasina". The Hindu. मूल से 3 नवंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2016.
- ↑ Abdullah, Abir (22 March 2007). "Corruption has emerged as a great threat". Time Magazine. मूल से 24 अगस्त 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2016.