प्रवेशद्वार:उत्तर प्रदेश /चयनित जीवनी /२००८
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प्रवेशद्वार:उत्तर प्रदेश /चयनित जीवनी /२००८/जनवरी
==मार्च
लालबहादुर शास्त्री (2 अक्टूबर, 1904 - 11 जनवरी, 1966),भारत के तीसरे प्रधानमंत्री और दूसरे स्थायी प्रधानमंत्री थे । वह 1963-1965 के बीच भारत के प्रधान मन्त्री थे। उनका जन्म मुगलसराय, उत्तर प्रदेश मे हुआ था।
लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में मुग़लसराइ, उत्तर प्रदेश में लाल बहादुर श्रीवास्तव के रुप में हुवा था। उनके पिता शारदा प्रसाद एक गरीब शिक्षक थे, जो बाद में रेभेन्यु कार्यालय में क्लर्क बने।
भारत के स्वतंत्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सेक्रेटरी के रुप में नियुक्त किया गया था। वेह गोविंद बल्लभ पंत के प्रमुख मंत्री के कार्यकाल में प्रहरी एवं यातायात मंत्री बने। यातायात मंत्री के समय में उन्हौंनें प्रथम बार किसी महिला को कंडक्टर के पद में नियुक्त किया। प्रहरी विभाग के मंत्री होने के बाद उन्हौंने भीड को नियंत्रण में रखने के लिए लाठी के जगह पानी का फोहरा का प्रयोजन का प्रचलन का स्थापना किया। 1951 में, जवाहर लाल नेहरु द्वारा नेतृत्व किया गया अखिल भारत कंग्रेस कमिटी का जेनेरल सेक्रेटरी का पद में नियुक्त किया गया। उन्हौंने कंग्रेस की 1952, 1957 व 1962 की निर्वाचन में भारी बहुमत लाने के लिए बहुत परिश्रम किया।
जवाहरलाल नेहरू का मई 27, 1964 में प्रधानमंत्री के कार्यकाल में देहावसान होने के बाद उन्हौंने प्रधान मंत्री का पद जुन 9 में सम्भाला।
==जुलाई
गोस्वामी तुलसीदास (१४९७-१६२३; अंग्रेज़ी: Tulsidas) एक महान कवि थे। उनका जन्म राजापुर, (वर्तमान बाँदा जिला) उत्तर-प्रदेश मे हुआ था। उनके जीवनकाल मे तुलसीदासजी ने १२ ग्रन्थ लिखे और उन्हे संस्कृत विद्वान् होने के साथ ही हिन्दी भाषा का सर्वश्रेष्ट व प्रसिद्ध कवि माना जाता है। तुलसीदासजी को महर्षि वाल्मीकि का भी अवतार माना जाता है जो मूलभूत आदि काव्य रामायण के रचयिता थे। प्रयाग के पास चित्रकूट जिले में राजापुर नामक एक ग्राम है, वहाँ आत्माराम दुबे नामके एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण रहते थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी था। संवत १५५४ की श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में इन्हीं भाग्यवान् दम्पति के यहाँ बारह महीने तक गर्भ में रहने के पश्चात् गोस्वामी जी का जन्म हुआ ।
संवत् १६०७ की मौनी अमावस्या बुधवारके दिन उनके सामने भगवान् श्रीराम प्रकट हुए। हनुमानजी ने उन्हें विनय के पद रचनेको कहा, इसपर गोस्वामीजी ने विनय-पत्रिका लिखी और भगवानके चरणोंमें उसे समर्पित कर दी। संवत् १६८० मे श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार को गोस्वामीजी ने राम-राम कहते हुए अपना शरीर परित्याग किया।