चयनित लेख सूची

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प्रवेशद्वार:भाषा/चयनित लेख/1

 
First title page, November 4, 1869

नेचर, (अंग्रेज़ी: Nature) एक प्रमुख ब्रिटिश वैज्ञानिक पत्रिका है जो पहली बार 4 नवम्बर 1869 को प्रकाशित की गयी थी। दुनिया की अंतर्विषय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में इस पत्रिका का उल्लेख सबसे उच्च स्थान पर किया जाता है। अब तो अधिकांश वैज्ञानिक पत्रिकाएं अति-विशिष्ट हो गयीं हैं और नेचर उन गिनी-चुनी पत्रिकाओं में से है [अन्य प्रमुख साप्ताहिक पत्रिकाएं हैं - सायंस (Science) और प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नैशनल अकैडमी ऑफ़ सायन्सेस ] जो आज भी, वैज्ञानिक क्षेत्र की विशाल श्रेणी के मूल अनुसंधान लेख प्रकाशित करती है। वैज्ञानिक अनुसंधान के ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जिनमें किये जाने वाले नए व महत्वपूर्ण विकासों की जानकारी तथा शोध-सम्बन्धी मूल-लेख या पत्र 'नेचर ' में प्रकाशित किये जाते हैं।

हालांकि इस पत्रिका के प्रमुख पाठकगण अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक हैं, पर आम जनता और अन्य क्षेत्र के वैज्ञानिकों को भी अधिकांश महत्वपूर्ण लेखों के सारांश और उप-लेखन आसानी से समझ आते हैं। हर अंक के आरम्भ में सम्पादकीय, वैज्ञानिकों की सामान्य दिलचस्पी वाले मुद्दों पर लेख व समाचार, ताज़ा खबरों सहित विज्ञान-निधिकरण, व्यापार, वैज्ञानिक नैतिकता और अनुसंधानों में हुए नए-नए शोध सम्बन्धी लेख छापे जाते हैं। पुस्तकों और कला सम्बन्धी लेखों के लिए भी अलग-अलग विभाग हैं। पत्रिका के शेष भाग में ज़्यादातर अनुसंधान-सम्बन्धी लेख छापे जाते हैं, जो अक्सर काफ़ी गहरे और तकनीकी होते हैं। चूंकि लेखों की लम्बाई पर एक सीमा निर्धारित है, अतः पत्रिका में अक्सर अनेक लेखों का सारांश ही छापा जाता है और अन्य विवरणों को पत्रिका के वेबसाइट पर पूरक सामग्री के तहत प्रकाशित किया जाता है। अधिक पढ़ें…


प्रवेशद्वार:भाषा/चयनित लेख/2

 
यूरोप के कई भागों में उपभाषा सतति देखी जाती है

उपभाषा सतति (dialect continuum) किसी भौगोलिक क्षेत्र में विस्तृत उपभाषाओं की ऐसी शृंखला को कहते हैं जिसमें किसी स्थान की उपभाषा पड़ोस में स्थित स्थान से बहुत कम भिन्नता रखती है। बोलने वालों को वह दोनों उपभाषाएँ लगभग एक जैसी प्रतीत होती हैं, लेकिन यदी एक-दूसरे से दूर स्थित उपभाषाओं की तुलना की जाये तो वे काफ़ी भिन्न प्रतीत होती हैं और बहुत दूर स्थित उपभाषाओं को बोलने वालो को एक-दूसरे को समझने में कठिनाई हो सकती है।

भारतीय उपमहाद्वीप में यह कई स्थानों पर देखा जाता है। मसलन ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा की हिन्दको भाषा से दक्षिण चलकर पोठोहारी भाषा, पंजाबी भाषा, सराइकी भाषा, सिन्धी भाषा, कच्छी भाषा, गुजराती भाषा, अहिराणी भाषा, और फिर मुम्बई क्षेत्र में मराठी भाषा तक एक विशाल उपभाषा सतति है, जिसमें एक बस्ती से पड़ोस की बस्ती तक कहीं भी लोगों को आपस में बोलचाल में कठिनाई नहीं होती लेकिन यदी हिन्दको की मराठी से सीधी तुलना की जाये तो वे बहुत भिन्न हैं। यूरोप, उत्तर अफ़्रीका के मग़रेब क्षेत्र और विश्व के अन्य भागों में यह बहुत देखा जाता है। पिछले १०० वर्षों में कई देशों में भाषाओं के मानकीकरण से कई उपभाषाएँ विलुप्त हो गई हैं, जिस से ऐसे कई उपभाषा सतति क्षेत्रों का भी अन्त हो गया है। अधिक पढ़ें…


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