प्रेमा (हिंदी) अथवा हमख़ुर्मा व हमसवाब (उर्दू) प्रेमचंद का पहला उपन्यास है। यह १९०७ ई। में मूलतः उर्दू में प्रकाशित हुआ था। [1] इस उपन्यास में १२ अध्याय हैं। यह विधवा विवाह पर केंद्रित है। इसमें धार्मिक आडंबरों औ्र मंदिरों में व्याप्त पाखंड को उजागर किया गया है। यह प्रेमचंद के भविष्य की दिशा की ओर संकेत करने वाला उपन्यास है।

प्रेमा  
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मुखपृष्ठ
लेखक प्रेमचंद
देश भारत
भाषा हिंदी, उर्दू
विषय साहित्य
प्रकाशन तिथि

१ सच्ची क़ुर्बानी

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2 जलन बुरी बला है

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३ झूठे मददगार

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४ जवानी की मौत

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५ अँय ! यह गजरा क्या हो गया?

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६ आज से कभी मन्दिर न जाऊँगी

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७ कुछ और बातचीत

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८ तुम सचमुच जादूगर हो

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९ विवाह हो गया

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१० विरोधियों का विरोध

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११ एक स्त्री के दो पुरूष नहीं हो सकते

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१२ शोकदायक घटना

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. "गबन". भारतीय साहित्य संग्रह. मूल (पीएचपी) से 29 जून 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 जून 2008. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)