अतिनूतन युग या प्लायोसीन युग (Pliocene epoch) पृथ्वी के भूवैज्ञानिक इतिहास का एक भूवैज्ञानिक युग है जो आज से लगभग 53.33 लाख वर्ष पहले आरम्भ हुआ और 25.88 लाख वर्ष पहले तक चला। यह नियोजीन कल्प (Neogene) का द्वितीय और अंतिम युग था। इस से पहले मध्यनूतन युग (Miocene) चल रहा था और इसके बाद चतुर्थ कल्प (Quaternary) तथा उसके प्रथम युग, अत्यंतनूतन युग (Pleistocene), का आरम्भ हुआ।[1]

सिन्थेटोकेरास, अतिनूतन युग का एक सम-ऊँगली खुरदार
मध्य-अतिनूतन में समुद्र का अनुमानित सतही तापमान

सन्‌ 1833 ई. में प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक लायल महोदय ने "प्लायोसीन" शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया था। प्लायोसीन शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा की धातुओं (प्लाइआन - अधिक, कइनास - नूतन) से हुई है जिसका तात्पर्य यह है कि मध्यनूतन की अपेक्षा, इस युग में पाए जाने वाले जीवों की जातियाँ और गण आज भी अधिक संख्या में जीवित हैं। यूरोप में इस युग के शैल इंग्लैंड, फ्रांस, बेल्जियम, इटली आदि देशों में पाए जाते हैं। अफ्रीका में इस युग के शैल कम मिलते हैं और अधिकांशतः समुद्र तट पर पाए जाते हैं। आस्ट्रेलिया में इस युग के स्तरों का निर्माण मुख्यत नदियों और झीलों में हुआ। अमरीका में भी इस युग के शैल पाए जाते हैं।

इस युग में कई स्थानों पर की भूमि समुद्र से बाहर निकली। उत्तरी और दक्षिणी अमेरीका, जो इस युग से पहले अलग-अलग थे, बीच में भूमि उठ आने के कारण जुड़ गए। इस युग में उत्तरी अमरीका यूरोप से जुड़ा था। युग के आरंभ में भूमध्यसागर (मेडिटरेनियन समुद्र) यूरोप के निचले भागों में चढ़ आया था, परंतु युग के अंत तक फिर हट गया और भूमि की रूपरेखा बहुत कुछ वैसी हो गई जैसी अब है। आरंभ में लंदन के पड़ोस की भूमि समुद्र के भीतर थी, परंतु इस युग के अंत में समुद्र हट गया। कई अन्य स्थानों में भी थोड़ी बहुत उथल पुथल हुई। कई स्थानों में समुद्र का पेंदा धँस गया, जिससे पानी खिंच गया और किनारे की भूमि से समुद्र हट गया। अतिनूतन युग में जो दूसरी मुख्य घटना घटित हुई, वह भारत, आस्ट्रेलिया, अफ्रका और दक्षिण अमरीका का पृथक्करण है। मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic) तक ये सारे क्षेत्र एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, परंतु जिस समय हिमालय का उत्थान प्रारंभ हुआ उसी समय भूगतियों ने इन्हें एक-दूसरे से पृथक्‌ कर दिया।

जलवायु संपादित करें

अतिनूतन युग में औसत वश्विक तापमान आज से 2–3 °सेंटीग्रेड अधिक था।[2] वायुमण्डल में कार्बन डाईऑक्साइड लगभग आज के बराबर था।[3] and global sea level was 25 m higher.[4] समुद्रतल आज से 25 मीटर अधिक था।[5]

अतिनूतन युग और भारत संपादित करें

भारतवर्ष में अतिनूतन युग का प्रतीक शिवालिक तंत्र (सिस्टम) में मिलता है। उच्च शिवालिक तंत्र के टेट्राट और पिंजर नामक भाग ही अतिनूतन के अधिकांश भाग के समकालिक हैं। हरिद्वार के समीप प्रसिद्ध शिवालिक पर्वतमाला के ही आधार पर इस तंत्र का नाम शिवालिक तंत्र पड़ा है। अतिनूतन युग के शैल सिंध तथा बलूचिस्तान में, पंजाब, कुमाऊँ तथा असम की हिमालय श्रेणियों में और बर्मा में पाए जाते हैं।

शैल निर्माण की दृष्टि से भारत में अतिनूतन युग के शैल अधिकांशत बालुकाश्म हैं जिनकी मोटाई लगभग 6,000 और 9,000 फुट के बीच में है। इन शैलों के देखने से यह पता लग जाता है कि ये ऐसे प्रकार के जलोढ (अलूवियल) अवसाद हैं जिनका निर्माण पर्वतों के अपक्षरण से हुआ। ये अवसाद हिमालय से निकलने वाली अनेक नदियों द्वारा आकर उसके चरणों पर निक्षेपित हुए।

भारत के अतिनूतन युग के शैलों में पृष्ठवंशियों, विशेषत स्तनधारियों के जीवाश्म प्रचुरता से मिलते हैं। इस युग में बसने वाले जीव, जिनके जीवाश्म हमको इस युग के शैलों में मिलते हैं, उन जंगलों और महापंकों में रहते थे जो नवनिर्मित हिमालय पर्वत की बाहरी ढाल में थे। इन जीवों को करोटियाँ (खोपड़ियाँ) और जबड़े जैसे अति टिकाऊ भाग पर्वतों से नीचे बहकर आने वाली नदियों द्वारा बहा लाए गए और अंततोगत्वा अति शीघ्र संचित होने वाले अवसादों में समाधिस्थ हो गए। इस प्रकार प्रतिरक्षित जीवाश्मों के आधार पर उस समय में रहने वाले अनेक प्रकार के जीवों के विषय में सुगमता से पता लग जाता है। इनमें से कुछ प्रकार के हाथी, जिराफ़, दरियाई घोड़ा, गैंडा आदि उल्लेखनीय हैं।[6][7]

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Haines, Tim; Walking with Beasts: A Prehistoric Safari, (New York: Dorling Kindersley Publishing, Inc., 1999)
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  3. "Solutions: Responding to Climate Change". Climate.Nasa.gov. मूल से 12 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 September 2016.
  4. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  5. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  6. डी.एन. वाडिया रिपोर्ट, एट्टींथ इंटरनेशनल जिओलॉजिकल कांग्रेस (1951)
  7. डी.एन. वाडिया जिऑलोजी ऑव इंडिया।