प्लूटोनियम
प्लूटोनियम एक दुर्लभ ट्रांसयूरेनिक रेडियोधर्मी तत्त्व है। इसका रासायनिक प्रतीक Pu और परमाणु भार ९४ होता है। प्लूटोनियम के छः अपरूप होते हैं। यह एक ऐक्टिनाइड तत्त्व है जो दिखने में रुपहले श्वेत (सिल्वर व्हाइट) रंग का होता है। प्लूटोनियम-२३८ का अर्धायु काल ८७.७४ वर्ष होता है।[2] प्लूटोनियम-२३९, प्लूटोनियम का एक महत्वपूर्ण समस्थानिक है जिसकी अर्धायु काल २४,१०० वर्ष होता है। प्लूटोनियम-२४४, प्लूटोनियम का सर्वाधिक स्थाई समस्थानिक होता है। इसका अर्धायु काल ८ करोड़ वर्ष होता है।
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दर्शन | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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रुपहला श्वेत | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सामान्य | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
नाम, चिह्न, संख्या | प्लूटोनियम, Pu, ९४ | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
तत्त्व वर्ग | एक्टेनाइड | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
समूह, आवर्त, ब्लॉक | लागू नहीं, 7, f | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मानक परमाणु भार | (244) ग्रा•मोल−1 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
इलेक्ट्रॉन कॉन्फिगरेशन | [Rn] 5f6 7s2 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
इलेक्ट्रॉन प्रति शेल | २, ८, १८, ३२, २४, ८, २ (आरेख) | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भौतिक गुण | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अवस्था | ठोस | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
घनत्व (सामान्य तापमान पर) | १९.८१६ g•cm−3 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
तरल घनत्व गलनांक पर | १६.६३ g•cm−3 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गलनांक | ९१२.५ K, ६३९.४ °C, ११८२.९ °F | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
क्वथनांक | ३५०५ K, ५८४२ °F | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
विलय ऊष्मा | 2.82 कि.जूल•मोल−1 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
वाष्पीकरण ऊष्मा | ३३३.५ कि.जूल•मोल−1 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
विशिष्ट ऊष्मा क्षमता | (२५ °से.) ३५.५ जू•मोल−1•केल्विन−1 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
वाष्प दबाव | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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परमाण्विक गुण | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
ऑक्सीकरण स्थितियां | 7, 6, 5, 4, 3 (एक्फोटरिक ऑक्साइड) | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
इलेक्ट्रोनेगेटिविटी | 1.28 (पाइलिंग पैमाना) | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
आयनीकरण ऊर्जाएं | 1st: 584.7 कि.जूल•मोल−1 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
परमाणु त्रिज्या | 159 पीको-मी. | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
संयोजी त्रिज्या | 187±1 pm | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
विविध | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
क्रिस्टल संरचना | मोनोक्लीनिक | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
चुंबकीय क्रम | पैरामैग्नेटिक[1] | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
विद्युत प्रतिरोधकता | (0 °C) 1.460 µΩ•m | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
तापीय चालकता | (300 K) 6.74 W•m−1•K−1 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
ताप विस्तार | (25 °C) 46.7 µm•m−1•K−1 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
ध्वनि की गति | 2260 मी./सेकिंड | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
यंग्स मॉड्युलस | 96 GPa | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
शियर मॉड्युलस | 43 GPa | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पॉयज़न अनुपात | 0.21 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सी.ए.एस पंजी.संख्या | 7440-07-5 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सर्वाधिक स्थिर समस्थानिक | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मुख्य लेख: प्लूटोनियम के समस्थानिक | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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परिचय
संपादित करेंप्लूटोनियम का आविष्कार परमाणु बम तैयार करने के समय १९४० ई. में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाओं में हुआ था। प्लूटो नामक ग्रह के नाम पर इसका नाम प्लूटोनियम (Plutonium) पड़ा। प्लूटोनियम के कई समस्थानिक हैं, सभी संश्लेषण से प्राप्त हुए हैं और रेडियोऐक्टिव हैं। समस्थानिकों की द्रव्यमान संख्या उनकी प्राप्ति की विधि पर निर्भर करती है। सबसे अधिक समस्थानिक की द्रव्यमान संख्या २३९ है। सबसे पहले जो समस्थानिम आवर्त सारणी के उस समूह में आता है जिस समूह में यूरेनियम और नेप्चूनियम हैं।
प्लूटोनियम की खोज वैज्ञानिक एनरिको फर्मी और उनके दल के सदस्यों ने १९३४ में की थी। उस समय फर्मी ने इसे 'हेस्पेरियम' नाम दिया था। उन्होंने १९३८ में अपने नोबेल सम्मान के भाषण में इस तत्त्व के बारे में बताया था। प्लूटोनियम का पहली बार उत्पादन १४ दिसंबर, १९४० को किया गया था और २३ फरवरी, १९४१ को ग्लेन टी. सीबोर्ग, एडविन एम. मैकमिलन, जे.डब्लयू केनेडी ने इसकी रासायनिक पहचान की थी।[2] मैकमिलन ने इसका नाम प्लूटो नामक तत्कालीन ग्रह के आधार पर रखा था। प्लूटोनियम-२३९ का प्रयोग नाभिकीय हथियारों में मुख्य विखंडनीय तत्व के रूप में होता है। यह बड़ी मात्र में ऊष्मीय ऊर्जा और कम स्तर के गामा कणों का उत्सजर्न करता है।
रेडियोधर्मिता के गुण के कारण प्लूटोनियम के समस्थानिक और यौगिक विषैले होते हैं। जहां तक रासायनिक तौर पर इसके जहरीलेपन की बात है, यह आर्सेनिक और सायनाइड से अपेक्षाकृत कम विषैला होता है। अन्य धातुओं की तरह प्लूटोनियम ऊष्मा और विद्युत का सुचालक नहीं होता। प्लूटोनियम एलॉय बना सकने में सक्षम होता है।
अयस्क एवं यौगिक
संपादित करेंप्लूटोनियम के शुद्ध रासायनिक यौगिक की प्राप्ति १९४२ ई. में हुई थी। यह पहला धात्विक तत्व है जो केवी संश्लेषण से पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हुआ था। आज भी इसकी प्राप्ति नाभिकीय रिऐक्टर में ही होती है। प्लूटोनियम बड़ी अल्प मात्रा में यूरेनियम अयस्कों, पिचब्लेंड और मोनेज़ाइट, में पाया जाता है। यूरेनियम २३८ पर न्यूट्रॉन द्वारा बम वर्षा से नयूट्रॉन का अवशोषण कर यह बनता है। ये न्यूट्रॉन यूरेनियम के स्वत: विखंडन से उत्सर्जित होते हैं। यह क्रिया नाभिकीय रिऐक्टर में संपन्न होती है। यूरेनियम २३८ कुछ न्यूट्रॉन का अवशोषण कर यूरेनियम २३९ बनता है। यह दो उत्तरोत्तर बीटाकणों के उत्सर्जन से प्लूटोनियम २३९ बनाता है। प्लूटोनियम २३९ के बनने पर इसे रासायनिक विधि से अन्य तत्वों से पृथक् करते हैं। यह इतनी अधिक मात्रा में प्राप्त हो गया है कि इसके यौगिकों का विस्तार से अध्ययन हुआ है।
प्लूटोनियम के अनेक यौगिक प्राप्त हुए हैं। इसके तीन ऑक्साइड, प्लूटोनियम मोनोक्साइड, प्लूटोनियम सेस्क्विऑक्साइड और प्लूटोनियम डाइऑक्सइड महत्व के हैं। इन ऑक्साइडों के सहयोग से ही प्लूटोनियम के हैलाइड और आक्सीहैलाइड प्राप्त हुए हैं। प्लूटोनियम ट्राइफ्लोराइड को छोड़कर अन्य सब हैलाइड आर्द्रताग्राही होते हैं। प्लूटोनिय के कार्बाइड, नाइट्राइड, सिलिसइड और सल्फाइड भी प्राप्त हुए हैं। ये बहुत ऊँचे ताप पर भी स्थायी होते हैं। प्लूटोनियम के यौगिकों की संख्या आज बहुत अधिक बढ़ गई है और इनके गुण का भी अध्ययन बड़े विस्तार से हुआ है।
प्लूटोनियम के उपयोग
संपादित करेंपरमाणु ऊर्जा में प्लूटोनियम-२३९ काम आता हे। नाभिकीय रिएक्टर में यह ईंधन का कार्य करता है। ऐसे रिऐक्टर यूरेनियम-२३८ के साथ मिलकर ऊर्जा उत्पन्न करते हैं और साथ साथ न्यूट्रॉन के अवशोषण से प्लूटोनियम-२३९ भी बनता है। प्लूटोनियम २३८ के विखंडन से जो ऊर्जा प्राप्त होती है वह ऊर्जा पूर्ण विखंडन में प्रति पाउंड १०,०००,००० किलोवाट घंटा ऊष्मा ऊर्जा के बराबर होती है। इस ऊर्जा को ऊष्मा के रूप में, या विद्युत् के रूप में, परिणत कर सकते हैं। इससे समस्त ऊर्जा के २० से ३० प्रतिशत तक की उपलब्धि हो सकती है। ऊर्जा की उपलब्धि वस्तुत: यंत्र की दक्षता पर निर्भर करती है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ तत्वों और अकार्बनिक यौगिकों के चुंबकीय संवेदनशीलता, हैंडबुक ऑफ कैमिस्ट्री एंड फिज़िक्स, ८१वां संस्करण, सी.आर.सी मुद्रक
- ↑ अ आ प्लूटोनियम Archived 2015-10-17 at the वेबैक मशीन। हिन्दुस्तान लाइव। १० दिसम्बर २००९
इन्हें भी देखें
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