फ़ाहियान

चीनी यात्री (भारत में ईसवी 399 से 412 तक)
(फाहयान से अनुप्रेषित)

फ़ाहियान या फ़ाशियान (चीनी: 法顯 या 法显, अंग्रेज़ी: Faxian या Fa Hien; जन्म: ३३७ ई; मृत्यु: ४२२ ई अनुमानित) एक चीनी बौद्ध भिक्षु, यात्री, लेखक एवं अनुवादक थे जो ३९९ ईसवी से लेकर ४१२ ईसवी तक भारत, श्रीलंका और आधुनिक नेपाल में स्थित गौतम बुद्ध के जन्मस्थल कपिलवस्तु धर्मयात्रा पर आए। उनका ध्येय यहाँ से बौद्ध ग्रन्थ एकत्रित करके उन्हें चीन ले जाना था। उन्होंने अपनी यात्रा का वर्णन अपने वृत्तांत में लिखा जिसका नाम बौद्ध राज्यों का एक अभिलेख : चीनी भिक्षु फ़ा-शियान की बौद्ध अभ्यास-पुस्तकों की खोज में भारत और श्रीलंका की यात्रा था। उनकी यात्रा के समय भारत में गुप्त राजवंश के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का काल था और चीन में जिन राजवंश काल चल रहा था।

फ़ाहियान के यात्रा-वृत्तान्त का पहला पन्ना

फाहियान पिंगगयांग का निवासी था जो वर्तमान शांसी प्रदेश में है। उसने छोटी उम्र में ही सन्यास ले लिया था। उसने बौद्ध धर्म के सद्विचारों के अनुपालन और संवर्धन में अपना जीवन बिताया। उसे प्रतीत हुआ कि विनयपिटक का प्राप्य अंश अपूर्ण है, इसलिए उसने भारत जाकर अन्य धार्मिक ग्रंथों की खोज करने का निश्चय किया।

लगभग ६५ वर्ष की उम्र में कुछ अन्य बंधुओं के साथ, फाहिएन ने सन् ३९९ ई. में चीन से प्रस्थान किया। मध्य एशिया होते हुए सन् ४०२ में वह उत्तर भारत में पहुँचा। यात्रा के समय उसने उद्दियान, गांधार, तक्षशिला, उच्छ, मथुरा, वाराणसी, गया आदि का परिदर्शन किया। पाटलिपुत्र में तीन वर्ष तक अध्ययन करने के बाद दो वर्ष उसने ताम्रलिप्ति में भी बिताए। यहाँ वह धर्मसिद्धांतों की तथा चित्रों की प्रतिलिपि तैयार करता रहा। यहाँ से उसने सिंहल की यात्रा की और दो वर्ष वहाँ भी बिताए। फिर वह यवद्वीप (जावा) होते हुए ४१२ ई में शांतुंग प्रायद्वीप के चिंगचाऊ स्थान में उतरा। अत्यंत वृद्ध हो जाने पर भी वह अपने पवित्र लक्ष्य की ओर अग्रसर होता रहा। चिएन कांग (नैनकिंग) पहुँचकर वह बौद्ध धर्मग्रंथों के अनुवाद के कार्य में संलग्न हो गया। अन्य विद्वानों के साथ मिलकर उसने कई ग्रंथों का अनुवाद किया, जिनमें से मुख्य हैं-परिनिर्वाणसूत्र और महासंगिका विनय के चीनी अनुवाद। 'फौ-कुओ थी' अर्थात् 'बौद्ध देशों का वृत्तांत' शीर्षक जो आत्मचरित् उसने लिखा है वह एशियाई देशों के इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। विश्व की अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद किया जा चुका है।

प्राचीन काल में ईसा से पूर्व ही धर्म, कला, नीति सभ्यता व संस्कृति के क्षेत्र में भारत की ख्याति विदेशों में फैल चुकी थी। यही कारण है कि भारत सदैव विदेशियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। चौथी शताब्दी में फाहियान नाम का एक बौद्ध भिक्षु अपने तीन अन्य भिक्षु-साथियों के साथ भारत आया। चूंकि बौद्ध धर्म भारत से ही चीन गया था अत: फाहियान का यहां आने का प्रमुख उद्देश्य बौद्ध धर्म के आधारभूत ग्रन्थ 'त्रिपिटक' में से एक ‘विनयपिटक’ को ढूंढ़ना था। फाहियान पहला चीनी यात्री था, जिसने अपने यात्रा-वृत्तांत को लिपिबद्ध किया।

फ़ाहियान चीन से रेशम मार्ग पर होते हुए आये और उन्होने अपने यात्रा-वृत्तांत में रास्ते के मध्य एशियाई देशों के बारे में लिखा है। सर्द रेगिस्तानों और विषम पहाड़ी दर्रों से गुज़रते हुए वे भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तरी क्षेत्र में दाख़िल हुए और पाटलिपुत्र पहुँचे। फिर वे दक्षिण में श्रीलंका भी गए जहाँ उन्होंने कहा कि वहाँ के मूल निवासी दैत्य और अझ़दहे (ड्रैगन) हुआ करते थे।[1] स्थान-स्थान से एकत्रित की बौद्ध ग्रन्थ और प्रतिमाएँ लेकर वे समुद्री रास्ते से श्रीलंका से पूर्व को निकले जहाँ एक भयंकर तूफ़ान ने उनके जहाज़ को भटका दिया और १०० दिनों तक सागर में भटककर वे जावा द्वीप (आधुनिक इंडोनेशिया) पर जा पहुँचें। वहाँ से वे आगे निकले और चीन के आधुनिक शानदोंग प्रान्त में लाओशान पहुँचे।[2] फिर शानदोंग की उस समय की राजधानी, चिंगझोऊ नगर, में उन्होने एक वर्ष तक रूककर अपने साथ लाइ गई सामग्री को संगठित और अनुवादित किया।

इन्हें भी देखें

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  1. The Medical times and gazette, Volume 1, John Churchill, 1867, ... According to Fa Hian, the Chinese traveller, the first people in Ceylon were demons and dragons, who are probably intended for the original Yakkahs ...
  2. Maritime silk road Archived 2016-05-09 at the वेबैक मशीन, Qingxin Li, China Intercontinental Press, 2006, ISBN 978-7-5085-0932-7, ... In the autumn of 411 AD, Faxian set sail for home on a commercial ship carrying over 200 passengers. ... Lao Mountain in Qingdao, Shandong Province ... warm hospitality from Li Yi, the viceroy of Changguang Prefecture ...