बद्रीनाथ प्रसाद (१२ जनवरी १८९९ - १८ जनवरी १९६६) भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं शिक्षाशास्त्री थे। उन्हे साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६३ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

जीवनी संपादित करें

बद्रीनाथ प्रसाद का जन्म 12 जनवरी 1899 ई. को जिला आजमगढ़ के मुहम्मदाबाद गोहना ग्राम के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। इनकी पढ़ाई अपने ग्राम मुहम्मदाबाद, सीवान (सारन), पटना और वाराणसी में हुई। पटना विश्वविद्यालय से सन् 1919 में बी. एस-सी. उतीर्ण कर इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एम. एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। लिवरपूल विश्वविद्यालय से 1931 ई. में पी-एच. डी. की और 1932 ई. में पैरिस विश्वविद्यालय से स्टेट डी. एस-सी. की उपाधि प्राप्त की। लिवरपूल और पेरिस विश्वविद्यालयों में सुप्रसिद्ध गणितज्ञों के अधीन इन्होंने अध्ययन और अनुसंधान कार्य संपन्न किया था।

ये हिंदू विश्वविद्यालय में सुप्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ डॉ॰ गणेश प्रसाद के प्रिय शिष्यों में से थे और उनके अधीन इन्होंने वास्तविक चरवाले फलनों के सिद्धांतों तथा श्रेणियों, विशेषतया फूर्यें श्रेणी, तथा उनसे संबद्ध अन्य श्रेणियों की, आकलनीयता पर गवेषणा की। इंग्लैंड में अपने एक प्रोफेसर के साथ आबेल आकलनीयता की निरपेक्ष विधि ज्ञात करने तथा उपयोग करने का सम्मान बँटाने का श्रेय प्राप्त किया। दो वर्ष (1922-24) तक हिंदू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहने के पश्चात् ये जुलाई, 1924 ई. में इलाहाबाद विश्वविद्यालय चले गए, जहाँ लेक्चरर, रीडर, प्रोफेसर तथा गणित विभाग के अध्यक्ष पद पर रहे। बीच में दो वर्षों के लिए ये पटना कालेज में भी गणित के प्रोफेसर तथा अध्यक्ष पद पर चले गए थे। इन्होंने भारत के बाहर अनेक देशों की यात्रा की थी। विज्ञान के नैशनल इंस्टिट्यूट तथा नैशनल एकेडेमी के ये पुराने फेलो थे। इंडियन मैथेमैटिकल सोसायटी और विज्ञान परिषद के अध्यक्ष थे। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के पुराने सदस्य और उत्साही कार्यकर्ता थे। 1945 ई. में गणित तथा सांख्यिकी अनुभाग की अध्यक्षता भी आपने की थी। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 53वें अधिवेशन (1965) के प्रधान अध्यक्ष रहे।

भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण की उपाधि से 1963 ई. में विभूषित किया था और 1964 ई. में संसद् राज्य सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 18 जनवरी 1966 ई. को हृदयगति बंद हो जाने से आपकी सहसा मृत्यु हो गई।