बरार सल्तनत
बरार, दक्खिन की सल्तनतों में से एक थी। यह बहमनी सल्तनत के विघटन के बाद 1490 में स्थापित किया गया था।[1] सबसे पहले बहमनी साम्राज्य से अलग होने वाला क्षेत्र बरार था, जिसे फतहउल्ला इमादशाह 1484 ई. में स्वतंत्र घोषित करके इमादशाही वंश की नींव डाली। 1574 ई. में बरार को अहमद नगर ने हङप लिया था।
इमादशाही वंश बरार सल्तनत वऱ्हाड | |||||||||
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सल्तनत of दक्खिन | |||||||||
1490–1572 | |||||||||
गाविलगढ़ किला, बरार के फतुल्लाह इमाद-उल-मुल्क (1490 – 1504) द्वारा निर्मित। | |||||||||
Capital | अचलपुर | ||||||||
Area | |||||||||
• | 29,340 कि॰मी2 (11,330 वर्ग मील) | ||||||||
History | |||||||||
• दक्खिन सल्तनत की स्थापना | 1490 | ||||||||
• अहमदनगर सल्तनत द्वारा जीत लिया गया। | 1572 | ||||||||
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Today part of | भारत |
इतिहास
संपादित करेंपृष्ठभूमि
संपादित करेंबरार या वरहाड (वऱ्हाड) नाम की उत्पत्ति ज्ञात नहीं है। इसके पहले प्रामाणिक रिकॉर्ड से पता चलता है कि यह आंध्र या सातवाहन साम्राज्य का हिस्सा रहा होगा। 12वीं शताब्दी में चालुक्यों के पतन के बाद, बरार देवगिरि के यादवों के अधीन आ गया, और 13वीं शताब्दी के अंत में मुस्लिमों के आक्रमण तक उनके कब्जे में रहा। दक्खन में बहमनी सल्तनत (1348) की स्थापना के बाद, साम्राज्य को पांच प्रांतों में बाटा गया था, जिसमें से बरार भी उन पांच प्रांतों में से एक था, जिसका शासन शाही व्यक्ति द्वारा किया जाता था, और उसके पास एक अलग सेना भी उपलब्ध थी। आगे चल कर प्रांत को दो अलग-अलग प्रांतों में विभाजित (1478 या 1479 में) किया गया, जिसका नाम उनकी राजधानियों गाविल और माहुर के नाम पर रखा गया। हालाँकि बहमनी राजवंश पहले से ही अपने पतन की ओर बढ़ रहा था।
बरार सल्तनत की स्थापना
संपादित करेंबहमनी सल्तनत के विघटन, 1490 में के दौरान फतहउल्ला इमाद-उल-मुल्क, गाविल का राज्यपाल, जो पूर्व में पूरे बरार को संचालित किया करता था, इसे स्वतंत्र घोषित कर दिया और बरार सल्तनत की इमाद शाही राजवंश की स्थापना की। उसने माहुर को भी अपने नए राज्य में मिला लिया और अचलपुर में अपनी राजधानी ले गया। इमाद-उल-मुल्क जन्म से एक कनारी हिंदू था, लेकिन विजयनगर साम्राज्य के खिलाफ अभियानों दौरान उसे बाल्यवस्था में ही अपहरण कर ले आया गया और एक मुस्लिम के रूप में पाला गया था। गाविलगढ़ और नरनाला में भी उसके द्वारा गढ़ बनाये गए थे।
1504 में उसकी मृत्यु हो गई और उसके उत्तराधिकारी, अला-उद-दीन ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह की मदद से अहमदनगर की आक्रामकता का सामना किया। अगले शासक, दरिया ने अहमदनगर की आक्रामकता को रोकने के लिए बीजापुर के साथ गठबंधन करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा। 1568 में जब बुरहान इमाद शाह को उसके मंत्री तुफैल खान ने पदच्युत कर दिया था, और राजा बन गए। इसने अहमदनगर के मुर्तजा निज़ाम शाह को आक्रमण करने का एक बहाना मिल गया, और उसने बरार पर आक्रमण कर दिया, और तुफैल खान, उसके बेटे शम्स-उल-मुल्क, और पूर्व राजा बुरहान को कैद कर मौत की सजा दे दी और बरार को अहमदनगर सल्तनत में मिला लिया।
बरार के सुल्तान
संपादित करेंबरार के सुल्तान इमाद शाही राजवंश के थे:
- फतुल्लाह इमाद-उल-मुल्क 1490 - 1504
- अलादीन इमाद शाह 1504 - 1529
- दरिया इमाद शाह 1529 - 1562 उन्होंने चंद्रभागा नदी के किनारे एक शहर दरियापुर विकसित किया जो आज अमरावती जिले के अंतर्गत एक नगरपालिका परिषद है
- बुरहान इमाद शाह 1562 - 1568
- तुफैल खान (हड़पनेवाला) 1568 - 1572 [2]
इन्हें भी देखें
संपादित करें- शिया मुस्लिम राजवंशों की सूची
- तालीकोटा की लड़ाई
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Sen, Sailendra (2013). A Textbook of Medieval Indian History. Primus Books. पपृ॰ 117–119. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-9-38060-734-4.
- ↑ Robert Sewell. Lists of inscriptions, and sketch of the dynasties of southern India (The New Cambridge History of India Vol. I:7), Printed by E. Keys at the Government Press, 1884,, p.166