बलिया (Ballia) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है। यह दो नदियों, गंगा और घाघरा, के संगम के समीप बसा हुआ है। यह वाराणसी से 140 किमी और राज्य राजधानी, लखनऊ, से 380 किमी पूर्व में, बिहार की राज्य सीमा से 4 किमी दूर स्थित है।[1][2]

बलिया
बलिया रेलवे स्टेशन
बलिया रेलवे स्टेशन
बलिया is located in उत्तर प्रदेश
बलिया
बलिया
उत्तर प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 25°45′36″N 84°08′49″E / 25.760°N 84.147°E / 25.760; 84.147निर्देशांक: 25°45′36″N 84°08′49″E / 25.760°N 84.147°E / 25.760; 84.147
देश भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
जनसंख्या (2011)
 • कुल1,04,424
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी, भोजपुरी
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)
पिनकोड277001
दूरभाष कोड05498
वाहन पंजीकरणUP-60

लोक उपाधि

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बलिया को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपने उल्लेखनीय योगदान के वजह से बागी बलिया (Rebel Ballia) के नाम से बुलाया जाता है।

 
लिट्टी चोखा, बलिया, उत्तर प्रदेश के अन्य पूर्वी भागों, बिहारझारखंड का एक व्यंजन
 
श्री राम जानकी मंदिर

इस शहर की पूर्वी सीमा गंगा और सरयू के संगम द्वारा बनायी जाती है। यह शहर वाराणसी से 140 किलोमीटर, लखनऊ से 390 किलोमीटर, गोरखपुर से 165 किलोमीटर और देश की राजधानी नई दिल्ली से 900 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। भोजपुरी यहाँ की प्राथमिक स्थानीय भाषा है। यह क्षेत्र गंगा और घाघरा के बीच के जलोढ़ मैदानों में स्थित है। अक्सर बाढ़ग्रस्त रहने वाले इस उपजाऊ क्षेत्र में चावल, जौ, मटर, ज्वार-बाजरा, दालें, तिलहन और गन्ना उगाया जाता है। शहर की पूर्वी सीमा गंगा और घाघरा के संगम में निहित है। वहाँ पर एक बहुत प्रसिद्ध भगवती जी का मन्दिर है जो रेवती के बगल में एक छोटे गाँव सोभनाथपुर में स्थित है।

बलिया एक प्राचीन शहर है। भारत के कई महान संत और साधु जैसे जमदग्नि, वाल्मीकि, भृगु, दुर्वासा आदि के आश्रम बलिया में थे। बलिया प्राचीन समय में कोसल साम्राज्य का एक भाग था। यह भी कुछ समय के लिए बौद्ध प्रभाव में आया था। पहले यह् गाजीपुर जिले का एक हिस्सा था, लेकिन बाद में यह जिला हो गया। यह राजा बलि की धरती मानी जाती हैं। उन्ही के नाम पर इसका नाम बलिया पड़ा। 1942 के अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन के वक़्त बलिया के क्रांतिकारियों ने चित्तू पाण्डे के नेतृत्व में बलिया को आजाद करा लिया गया था।चित्तू पाण्डे के नेतृत्व में स्वतंत्र सरकार की स्थापना कर ली गई थी।[उद्धरण चाहिए]

चित्तू पाण्डे (10 मई 1865 - 1946) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे। उन्हें 'बलिया का शेर' के नाम से जाना जाता है। उन्होने १९४२ में बलिया में भारत छोड़ो आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। १९ अगस्त १९४२ को एक 'राष्ट्रीय सरकार' की घोषणा करके वे उसके अध्यक्ष बने जो कुछ दिन चलने के बाद अंग्रेजों द्वारा दबा दी गई। यह सरकार बलिया के कलेक्टर को सत्ता त्यागने एवं सभी गिरफ्तार कांग्रेसियों को रिहा कराने में सफल हुई थी। वे अपने आप को गांधीवादी मानते थे।

जनसांख्यिकी

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2011 की भारतीय जनगणना में,[3] बलिया की आबादी 32,39,774 थी। जनसंख्या में पुरुषों और महिलाओं की आबादी 16,72,902 और 15,66,872 थी। यहाँ 59.75% महिलाओं एव 81.49% पुरुष साक्षरता के साथ 70.94% की औसत साक्षरता थीं। जनसंख्या के ग्यारह प्रतिशत उम्र के छह वर्षों के तहत किया गया।

बलिया में जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय स्थित है, जिसकी स्थापना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2016 में कई गयी थी। विश्वविद्यालय से बलिया तथा आस-पास के क्षेत्रों के 122 कॉलेज सम्बद्ध हैं। बलिया जिला उत्तर प्रदेश राज्य का सबसे पूर्वी भाग है और बिहार राज्य की सीमाएँ हैं। इसमें एक अनियमित आकार का मार्ग शामिल है जो गंगा और घाघरा के संगम से पश्चिम की ओर फैला हुआ है, पूर्व इसे दक्षिण में बिहार से अलग करता है और बाद में क्रमशः उत्तर और पूर्व में देवरिया और बिहार से अलग करता है। बलिया और बिहार के बीच की सीमा इन दोनों नदियों की गहरी धाराओं से निर्धारित होती है। यह पश्चिम में मऊ, उत्तर में देवरिया, उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व में बिहार और दक्षिण-पश्चिम में गाजीपुर से घिरा है। यह जिला 25º33' और 26º11' उत्तरी अक्षांशों और 83º38' और 84º39' पूर्वी देशांतरों के बीच स्थित है। बलिया भारत के सबसे कम वन आच्छादित जिलों में से एक है। भारत की जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार, भारत के उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में 2361 गाँव हैं। ये गांव बैरिया, बलिया, बांसडीह, बेल्थरा रोड, रसरा और सिकंदरपुर तहसील में स्थित हैं। बलिया "ददरी मेला" के लिए भी जाना जाता है जो पशु मेले के साथ-साथ एक मेला भी है। यह मेला "भीरगुनाथ बाबा" की स्मृति में आयोजित किया जाता है।

आसपास के स्थल

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"श्री बाबा बालेश्वर नाथ" का मंदिर, लोकप्रिय भगवान शिव की मंदिर यही पर है, विभिन्न स्थानों से श्रधालु दर्शन के लिए यहाँ आते है।

एक वार्षिक मेले के ददरी मेला, एक मैदान पर शहर की पूर्वी सीमा पर गंगा और सरयू नदियों के संगम पर मनाया जाता है। मऊ, आजमगढ़, देवरिया, गाजीपुर और वाराणसी के रूप में पास के जिलों के साथ नियमित संपर्क में रेल और सड़क के माध्यम से मौजूद है। रसड़ा यहाँ से ३५ किलोमीटर पश्चिम में स्थित एक क़स्बा है। यहाँ नाथ बाबा का मंदिर है जो स्थानीय सेंगर राजपूतों के देवता हैं। इसके अलावा यहाँ दरगाह हज़रत रोशन शाह बाबा, दरगाह हज़रत सैयद बाबा और लखनेसर डीह के प्राचीन अवशेष दर्शनीय स्थल हैं। नरही थाना क्षेत्र में बाबू राय बाबा का मंदिर है। जो कि नरही वाशियों की लोकप्रिय देवताओं में से एक माने जाते हैं यहाँ ग्राम नरही मे पूरब तरफ टेढ़वा के मठिया के समीप सुप्रसिद्ध श्री भीम ब्रम्ह बाबा का मंदिर स्थिति है, जिनकी ख्याति दूर दूर तक फैली है, का निर्माण मठिया के निवासी श्री कन्हैया यादव ने ही जनसहयोग से कराया था |

उल्लेखनीय व्यक्ति

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इन्हें भी देखें

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  1. "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
  2. "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975
  3. "भारत की जनगणना २००१: २००१ की जनगणना के आँकड़े, महानगर, नगर और ग्राम सहित (अनंतिम)". भारतीय जनगणना आयोग. अभिगमन तिथि 2007-09-03.

बाहरी कड़ियाँ

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