बालमणि अम्मा की काव्यगत विशेषताएँ

बालमणि अम्मा केरल की राष्ट्रवादी कवयित्री थीं। उन्होंने राष्ट्रीय उद्बोधन वाली कविताओं की रचना की। वे मुख्यतः वात्सल्य, ममता, मानवता के कोमल भाव की कवयित्री के रूप में विख्यात हैं। फिर भी स्वतंत्रतारूपी दीपक की उष्ण लौ से भी वे अछूती नहीं रहीं। सन् 1929-39 के बीच लिखी उनकी कविताओं में देशभक्ति, गाँधी का प्रभाव, स्वतंत्रता की चाह स्पष्ट परिलक्षित होती है। इसके बाद भी उनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहीं। अपने सृजन से वे भारतीय आजादी में अनोखा कार्य किया।[1]

बालमणि अम्मा की पेंटिंग
यह पृष्ठ मलयालम भाषा एवं साहित्य से संबंधित निम्न लेख श्रृंखला का हिस्सा है-
नालापत बालमणि अम्मा

वर्ष 1928 में अम्मा का विवाह वी॰ एम॰ नायर के साथ हुआ और वे उनके साथ कलकत्ता में रहने लगीं। कलकत्ता- वास के अनुभवों ने उनकी काव्य चेतना को प्रभावित किया। अपनी प्रथम प्रकाशित और चर्चित कविता 'कलकत्ते का काला कुटिया'उन्होने अपने पतिदेव के अनुरोध पर लिखी थी, जबकि अंतररतमा की प्रेरणा से लिखी गई उनकी पहली कविता 'मातृचुंबन' है। उनकी प्रारंभिक कविताओं में से एक 'गौरैया' शीर्षक कविता उस दौर में अत्यंत लोकप्रिय हुई। इसे केरल राज्य की पाठ्य-पुस्तकों में सम्मिलित किया गया। बाद में उन्होने गर्भधारण, प्रसव और शिशु पोषण के स्त्रीजनित अनुभवों को अपनी कविताओं में पिरोया। उनकी प्रारंभिक कविताओं में से एक 'गौरैया' शीर्षक कविता उस दौर में अत्यंत लोकप्रिय हुई। इसे केरल राज्य की पाठ्य-पुस्तकों में सम्मिलित किया गया। बाद में उन्होने गर्भधारण, प्रसव और शिशु पोषण के स्त्रीजनित अनुभवों को अपनी कविताओं में पिरोया। इसके एक दशक बाद उन्होने घर और परिवार की सीमाओं से निकलकर अध्यात्मिकता के क्षेत्र में दस्तक दी। तब तक यह क्षेत्र उनके लिए अपरिचित जैसा था। थियोसाफ़ी का प्रारंभिक ज्ञान उनके मामा से उन्हें मिला। हिन्दू शास्त्रों का सहज ज्ञान उन्हें पहले से ही था। इसलिए थियोसाफ़ी और हिन्दू मनीषा का संयोजित स्वरूप ही उनके विचारों के रूप में लेखन में उतरा।[1]

अम्मा के दो दर्जन से अधिक काव्य-संकलन, कई गद्य-संकलन और अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने छोटी अवस्था से ही कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था। उनकी पहला कविता संग्रह "कूप्पुकई" 1930 में प्रकाशित हुआ था। उन्हें सर्वप्रथम कोचीन ब्रिटिश राज के पूर्व शासक राम वर्मा परीक्षित थंपूरन के द्वारा "साहित्य निपुण पुरस्कारम" प्रदान किया गया। 1987 में प्रकाशित "निवेद्यम" उनकी कविताओं का चर्चित संग्रह है। कवि एन॰ एन॰ मेनन की मौत पर शोकगीत के रूप में उनका एक संग्रह "लोकांठरांगलील" नाम से आया था।[2]

उनकी कविताएँ दार्शनिक विचारों एवं मानवता के प्रति अगाध प्रेम की अभिव्यक्ति होती हैं। बच्चों के प्रति प्रेम-पगी कविताओं के कारण मलयालम-कविता में वे "अम्मा" और "दादी" के नाम से समादृत हैं।[3] केरल साहित्य अकादमी, अखितम अच्युतन नंबूथरी में एक यादगार वक्तव्य के दौरान उन्हें "मानव महिमा के नबी" के रूप में वर्णित किया गया था और कविताओं की प्रेरणास्त्रोत कहा गया था।[4]उन्हें 1987 में भारत सरकार ने साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।[5][6]

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी चित्र
  बालमणि अम्मा सृजन के दौरान फ्लिकर डॉट कॉम

टीका-टिप्पणी संपादित करें

  1. टंडन, विशण नारायण. "सरस्वती सम्मान, पुरस्कृत रचनाकार का वक्तव्य". मूल से 6 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जून 2014.
  2. "A prolific writer" [एक विपुल लेखिका]. द हिन्दू (अंग्रेज़ी में). 30 सितम्बर 2004. मूल से 28 जनवरी 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2014.
  3. "Balamaniamma" [बालमणि अम्मा] (मलयालम में). मलयाला मनोरमा. मूल से 28 जनवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2014.
  4. "Balamaniyamma remembered" [बालमणि अम्मा स्मृति शेष]. द हिन्दू (अंग्रेज़ी में). 8 अक्टूबर 2004. मूल से 6 जुलाई 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2014.
  5. जॉर्ज, के॰एम॰ (1998). Western influence on Malayalam language and literature [मलयालम भाषा और साहित्य पर पश्चिमी प्रभाव] (अंग्रेज़ी में). साहित्य अकादमी. पृ॰ 132. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-260-0413-3. मूल से 2 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2014.
  6. "Balamani Amma no more" जाँचें |url= मान (मदद) [बालमणि अम्मा नहीं रहीं]. द इंडियन एक्स्प्रेस (अंग्रेज़ी में). 30 सितम्बर 2004. अभिगमन तिथि 3 मई 2014.[मृत कड़ियाँ]

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें