भगिनी निवेदिता

स्कॉट्स-आयरिश सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, शिक्षक और स्वामी विवेकानंद की शिष्या (1867-1911)

भगिनी निवेदिता (१८६७-१९११) एक अंग्रेज-आइरिश सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, शिक्षक एवं स्वामी विवेकानन्द की शिष्या थीं। उनका मूल नाम 'मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल' था।

भगिनी निवेदिता

भारत में आज भी जिन विदेशियों पर गर्व किया जाता है उनमें भगिनी निवेदिता का नाम पहली पंक्ति में आता है, जिन्होंने न केवल भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले देशभक्तों की खुलेआम मदद की बल्कि महिला शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। भगिनी निवेदिता का भारत से परिचय स्वामी विवेकानन्द के जरिए हुआ। स्वामी विवेकानन्द के आकर्षक व्यक्तित्व, निरहंकारी स्वभाव और भाषण शैली से वह इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने न केवल रामकृष्ण परमहंस के इस महान शिष्य को अपना आध्यात्मिक गुरु बना लिया बल्कि भारत को अपनी कर्मभूमि भी बनाया।

1884 में उन्होंने शिक्षिका के रूप में नौकरी की, और अध्यापन कार्य करने लगी। 1892 में विम्बल्डन में ‘रस्किन स्कुल’ नाम से स्कूल की स्थापना की। वहाँ नये प्रकार की शिक्षा मिलती थी। 1895 में स्वामी विवेकानंद इंग्लैंड गये तब उनके चिंतन से और नये जमाने के लिये बहुत उपयुक्त ऐसे विचारों से भरे व्याख्यान से मार्गरेट नोबल प्रभावित हुयी। 28 जनवरी 1898 को मार्गरेट नोबल भारत आयी। बाद में 25 मार्च 1898 को स्वामी विवेकानंद ने उनको विधि के साथ ‘ब्रम्हचारिणी’ व्रत की दीक्षा देकर उनका नाम ‘निवेदिता’ रखा। और वो आगे चल के मार्गारेट नोबल इन्होंने सच कर दिखाया। इसी साल कोलकाता मे ‘निवेदिता बालिका विद्यालय’ की स्थापना उन्होंने की। 1899 में कोलकाता में आये प्लेग रोग की महामारी में उन्होंने खुद की जान जोखिम में डालकर मरीजों की सेवा की। रामकृष्ण मिशन को मदद दिलाने के लिये उन्होंने इंग्लैंड, फ्रान्स, अमेरिका आदि देशों की यात्रा की। 1902 में पुणे जाकर देश के लिये शहादत किये हुवे चाफेकर बंधु के माता के चरण स्पर्श कर उनके कदमों की धूल उन्होंने अपने सिर पर लगाई। 1905 को बनारस में हुवे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने हिस्सा लिया।[उद्धरण चाहिए]

13 अक्टूबर 1911 को दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) में उनका स्वर्गवास हुवा।

परिचय एवं जीवनी

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शारदा देवी (बाएँ) के साथ भगिनी निवेदिता

मार्गरेट एलिजाबेथ नोबेल का जन्म 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैंड में हुआ था। प्रारंभिक जीवन में उन्होंने कला और संगीत का अच्छा ज्ञान हासिल किया। नोबेल ने पेशे के रूप में शिक्षा क्षेत्र को अपनाया। नोबेल के जीवन में निर्णायक मोड़ 1895 में उस समय आया जब लंदन में उनकी स्वामी विवेकानंद से मुलाकात हुई। स्वामी विवेकानंद के उदात्त दृष्टिकोण, वीरोचित व्यवहार और स्नेहाकर्षण ने निवेदिता के मन में यह बात पूरी तरह बिठा दी कि भारत ही उनकी वास्तविक कर्मभूमि है। इसके तीन साल बाद वह भारत आ गईं और भगिनी निवेदिता के नाम से पहचानी गईं।

स्वामी विवेकानंद ने नोबेल को 25 मार्च 1898 को दीक्षा देकर मानव मात्र के प्रति भगवान बुद्ध के करुणा के पथ पर चलने की प्रेरणा दी। दीक्षा देते हुए स्वामी विवेकानंद ने अपने प्रेरणाप्रद शब्दों में उनसे कहा- जाओ और उस महान व्यक्ति का अनुसरण करो जिसने 500 बार जन्म लेकर अपना जीवन लोककल्याण के लिए समर्पित किया और फिर बुद्धत्व प्राप्त किया। दीक्षा के समय स्वामी विवेकानंद ने उन्हें नया नाम निवेदिता दिया और बाद में वह पूरे देश में इसी नाम से विख्यात हुईं। भगिनी निवेदिता कुछ समय अपने गुरु स्वामी विवेकानंद के साथ भारत भ्रमण करने के बाद अंतत: कलकत्ता में बस गईं। अपने गुरु की प्रेरणा से उन्होंने कलकत्ता में लड़कियों के लिए स्कूल खोला। निवेदिता स्कूल का उद्घाटन रामकृष्ण परमहंस की जीवनसंगिनी मां शारदा ने किया था। मां शारदा ने सदैव भगिनी निवेदिता को अपनी पुत्री की तरह स्नेह दिया और बालिका शिक्षा के उनके प्रयासों को हमेशा प्रोत्साहित किया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बांग्ला विभाग के पूर्व अध्यक्ष अमरनाथ गांगुली ने कहा कि मार्गरेट नोबेल को स्वामी विवेकानंद ने निवेदिता नाम दिया था। इसके दो अर्थ हो सकते हैं एक तो ऐसी महिला जिसने अपने गुरु के चरणों में अपना जीवन अर्पित कर दिया, जबकि दूसरा अर्थ निवेदिता पर ज्यादा सही बैठता है कि एक ऐसी महिला जिन्होंने स्त्री शिक्षा के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया।

 
भारत सरकार ने १९६८ में उनकी स्मृति में एक डाक टिकट निकाला।

गांगुली ने कहा कि सिस्टर निवेदिता में एक आग थी और स्वामी विवेकानंद ने उस आग को पहचाना। निवेदिता अपने गुरु की प्रेरणा से स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में उस समय उतरीं जब समाज के संभ्रांत लोग भी अपनी लड़कियों को स्कूल भेजना पसंद नहीं करते थे। ऐसे समाज में स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देना निवेदिता जैसी जीवट महिला के प्रयासों से ही संभव हो सका। कलकत्ता प्रवास के दौरान भगिनी निवेदिता के संपर्क में उस दौर के सभी प्रमुख लोग आये। उनके साथ संपर्क रखने वाले प्रमुख लोगों में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर, वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु, शिल्पकार हैमेल तथा अवनीन्द्रनाथ ठाकुर और चित्रकार नंदलाल बोस शामिल हैं। उन्होंने रमेशचन्द्र दत्त और यदुनाथ सरकार को भारतीय नजरिए से इतिहास लिखने की प्रेरणा दी। गांगुली ने सिस्टर निवेदिता के देशप्रेम की चर्चा करते हुए कहा कि आयरिश होने के कारण स्वतंत्रता प्रेम उनके रक्त में था। ऐसे में यह बेहद स्वाभाविक था कि उन्होंने भारत में स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों का समर्थन किया और उन्हें सहयोग दिया। भारत प्रेमी भगिनी निवेदिता दुर्गापूजा की छुट्टियों में भ्रमण के लिए दार्जीलिंग गई थीं। लेकिन वहां उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और अंत में 13 अक्टूबर 1911 को 44 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। दार्जीलिंग में ही हिन्दू रीति से उनका अन्तिम संस्कार किया गया। कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने वाले हुगली नदी पर बने एक सेतु का नाम 'निवेदिता सेतु' रखा गया है।

ग्रन्थावली

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  • स्टडीज फ्राम एन इस्टर्न होम (Studies from an Eastern Home). 1913. Archived from the original on 19 जनवरी 2013. Retrieved 6 फ़रवरी 2013.
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  • रिलिजन एन्ड धर्म (Religion and Dharma). Longmans, Green, and Co.,. 1915.{{cite book}}: CS1 maint: extra punctuation (link)
  • सिविक एन्ड नेशनल आइडियल्स् (Civic & national ideals). Udbodhan Office. 1929.

A newly annotated edition of The Ancient Abbey of Ajanta, that was serialized in The Modern Review during 1910 and 1911, has recently been published by Lalmati, Kolkata, with annotations, additions and photographs by Prasenjit Dasgupta and Soumen Paul

  • Volume 1: The Master as I Saw Him; Notes of Some Wanderings; Kedar Nath and Bhadri Narayan; Kali the Mother. ISBN AOE005-1
  • Volume 2: The Web of Indian Life; An Indian Study of Love and Death; Studies from an Eastern Home; Lectures and Articles. ISBN AOE005-2
  • Volume 3: Indian Art; Cradle Tales of Hinduism; Religion and Dharma; Aggressive Hinduism. ISBN AOE005-3
  • Volume 4: Footfalls of Indian History; Civic Ideal and Indian Nationality; Hints on National Education in India; Lambs Among Wolves. ISBN AOE005-4
  • Volume 5: On Education; On Hindu Life, Thought and Religion; On Political, Economic and Social Problems; Biographical Sketches and Reviews. ISBN AOE005-5

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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