भागीरथी नदी

भारत की पवित्र नदी गंगा की एक सहायक नदी, अन्य छोटी नदियों के साथ मिलकर गंगा की निर्मात्री
(भागीरथी से अनुप्रेषित)

भागीरथी भारत के उत्तराखण्ड राज्य में बहने वाली एक नदी है। इस नदी को किरात नदी के नाम से भी जाना जाता है। यह देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है। भागीरथी का उद्गम स्थल उत्तरकाशी ज़िले में गौमुख (गंगोत्री ग्लेशियर) है। भागीरथी यहाँ २५ कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। २०५ किमी बहने के बाद, भागीरथी व अलकनंदा का देवप्रयाग में संगम होता है, जिसके पश्चात वह गंगा के रूप में पहचानी जाती है।[2][3][4]

भागीरथी नदी
Bhagirathi river

गंगोत्री में भागीरथी पर बने स्नान घाट

हिमालय में भागीरथी के जलशीर्ष का मानचित्र, आंकड़े मीटर में ऊँचाई दर्शाते हैं।
नामोत्पत्ति भागीरथ द्वारा उत्पन्न
स्थान
देश  भारत
राज्य उत्तराखण्ड
मण्डल गढ़वाल
ज़िले उत्तरकाशी ज़िला, टिहरी गढ़वाल जिला
भौतिक लक्षण
नदीशीर्षगौमुख, गंगोत्री
 • निर्देशांक30°55′32″N 79°04′53″E / 30.925449°N 79.081480°E / 30.925449; 79.081480
 • ऊँचाई3,892 मी॰ (12,769 फीट)
Source confluenceअलकनन्दा नदी
नदीमुख गंगा नदी
 • स्थान
देवप्रयाग, उत्तराखण्ड, भारत
 • निर्देशांक
30°08′47″N 78°35′54″E / 30.146315°N 78.598251°E / 30.146315; 78.598251
 • ऊँचाई
475 मी॰ (1,558 फीट)
लम्बाई 205 कि॰मी॰ (127 मील)
जलसम्भर आकार 6,921 कि॰मी2 (7.450×1010 वर्ग फुट)
प्रवाह 
 • औसत257.78 m3/s (9,103 घन फुट/सेकंड)
 • अधिकतम3,800 m3/s (130,000 घन फुट/सेकंड)
जलसम्भर लक्षण
उपनदियाँ  
 • बाएँ केदारगंगा, भिलंगना, अलकनंदा
 • दाएँ जाध गंगा (जाह्नवी), सियागंगा
जालस्थल[1]

अवस्थिति

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भागीरथी गोमुख स्थान से 25 कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यह स्थान उत्तराखण्ड राज्य में उत्तरकाशी जिले में है। यह समुद्रतल से 618 मीटर की ऊँचाई पर, ऋषिकेश से 70 किमी दूरी पर स्थित है।

टिहरी बाँध

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भारत में टिहरी बाँध, टेहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है, जो उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी में स्थित है। यह बाँध भागीरथी नदी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 260 मीटर है, जो इसे विश्व का पाँचवा सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400 मेगा वाट विद्युत उत्पादन, 270,000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर प्रदेश एवँ उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित किया गया है।

सहायक नदियाँ

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  • रुद्रागंगा- गंगोत्री ग्लेशियर के पास रुद्रागेरा ग्लेशियर से निकलती है।
  • केदारगंगा- केदारताल से निकलकर गंगोत्री में भागीरथी से मिलती है।
  • जाडगंगा / जाह्नवी - भैरोघाटी नामक स्थान पर भागीरथी नदी से मिलती है।
  • सियागंगा- झाला नामक स्थान पर गंगा नदी से मिलती है।
  • असीगंगा- गंगोरी में भागीरथी से मिलती है ।
  • भिलंगना- खतलिंग ग्लेशियर टेहरी से निकलकर गणेशप्रयाग में भागीरथी से मिलती है । अब यह संगम टेहरी डैम में डूब चुका है।
  • भिलंगना की सहायक नदियां - मेडगंगा, दूधगंगा,बालगंगा।
  • अलकनंदा- यह देवप्रयाग में भााागिरथी से मिलती है।जो मिलकर गंगा नदी बनाती है।

शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल हके बाद नबद्वीप में जलांगी से मिलकर हुगली नदी बनाती है। 16वीं शताब्दी तक भागीरथी में गंगा का मूल प्रवाह था, लेकिन इसके बाद गंगा का मुख्य बहाव पूर्व की ओर पद्मा में स्थानांतरित हो गया। इसके तट पर कभी बंगाल की राजधानी रहे मुर्शिदाबाद सहित बंगाल के कई महत्त्वपूर्ण मध्यकालीन नगर बसे। भारत में गंगा पर फ़रक्का बांध बनाया गया, ताकि गंगा-पद्मा नदी का कुछ पानी अपक्षय होती भागीरथी-हुगली नदी की ओर मोड़ा जा सके, जिस पर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) पोर्ट कमिश्नर के कलकत्ता और हल्दिया बंदरगाह स्थित हैं। भागीरथी पर बहरामपुर में एक पुल बना है।

जैन ग्रंथो के अनुसार तीर्थंकर अजीतनाथ के काल मे सगर चक्रवती के पौत्र भागीरथ ने अपने पिता जुन्हू और अपने सभी चाचा की अस्थि गंगा जी में विसर्जन की थी।[5]

भागीरथी नदी के सम्बन्ध में एक कथा विश्वविख्यात है। भागीरथ की तपस्या के फलस्वरूप गंगा के अवतरण की कथा [1] है। कथा के अंत में गंगा के भागीरथी नाम का उल्लेख है-

गंगा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृता रोहित के कुल में बाहुक का जन्म हुआ। शत्रुओं ने उसका राज्य छीन लिया। वह अपनी पत्नी सहित वन चला गया। वन में बुढ़ापे के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। उसके गुरु ओर्व ने उसकी पत्नी को सती नहीं होने दिया क्योंकि वह जानता था कि वह गर्भवती है। उसकी सौतों को ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसे विष दे दिया। विष का गर्भ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। बालक विष (गर) के साथ ही उत्पन्न हुआ, इसलिए 'स+गर= सगर कहलाया। बड़ा होने पर उसका विवाह दो रानियों से हुआ-

सुमति- सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ। केशिनी- जिसके असमंजस नामक पुत्र हुआ। सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। इन्द्र ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा तपस्वी कपिल के पास ले जाकर खड़ा किया। उधर सगर ने सुमति के पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों को कहीं घोड़ा नहीं मिला तो उन्होंने सब ओर से पृथ्वी खोद डाली। पूर्व-उत्तर दिशा में कपिल मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाये और मुनि को बुरा-भला कहते हुए उधर बढ़े। फलस्वरूप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस तथा असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमान था। असमंजस पूर्वजन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, उसकी स्मृति खोयी नहीं थी, अत: वह सबसे विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को सरयू में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया। उसने अपने योगबल से बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन चला गया। यह देखकर सबको बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा। उनके चरणों में प्रणाम कर उसने विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल से प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र दिलीप ने भी असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा के वेग को शिव ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया।

इन्हें भी देखें

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  1. Catchment Area Treatment, Bhagirathi River Valley Development Authority, Uttaranchal
  2. "The Ganges River," Earle Rice, Mitchell Lane Publishers, 2012, ISBN 9781612283685
  3. "Dynamics of Climate Change and Water Resources of Northwestern Himalaya," Society of Earth Scientists Series; Rajesh Joshi, Kireet Kumar, Lok Man Palni (editors), Springer, 2014, ISBN 9783319137438
  4. "Himalayan Glaciers," Naseeruddin Ahmad and Sarwar Rais, APH Publishing, 1998, ISBN 9788170249467
  5. जैन आचार्य, अमर मुनि (1995). सचित्र तीर्थंकर चरित्र. दिल्ली: पदम प्रकाशन. पृ॰ 38.